पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 29.pdf/१४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
११५
दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

स्मरण नहीं है। मैं अदालतमें सैकड़ों हिन्दुस्तानी भाइयों, वकीलों और मित्रोंके सामने खड़ा था । ज्यों ही मुझे सजा सुनाई गई त्यों ही मुझे एक सिपाही दरवाजेसे उस जगह ले गया जहाँ कैदी बाहर ले जाने से पहले रखे जाते थे।

उस समय मुझे अपने आसपास सब सुनसान दिखाई दिया। वहीं कैदियों के बैठनेकी बेंच पड़ी थी। सिपाही मुझे उसपर बैठनेका आदेश देकर दरवाजा बन्द करके चला गया । यहाँ मुझे अवश्य क्षोभ हुआ। मैं गहरे विचारमें डूब गया । कहाँ है मेरा घर- बार ! कहाँ है मेरी वकालत ! कहाँ हैं वे सभाएँ! यह सब स्वप्नवत् हो गया । आज मैं कैदी हूँ ! दो महीनेमें क्या होगा? क्या दो महीनेकी कैद पूरी काटनी पड़ेगी ? यदि सब लोग अपने वचनके अनुसार जेलमें आयेंगे तो दो महीनेकी कँद क्यों काटनी पड़ेगी ? किन्तु यदि सब जेलमें नहीं आयेंगे तो दो महीने कितने लम्बे हो जायेंगे ? इन विचारोंको लिखनेमें जितना समय लग रहा है, उनको मेरे मनमें आनमें उसका सौवाँ भाग भी नहीं लगा होगा। यह विचार जैसे ही मेरे मनमें आये मैं वैसे ही लजा गया। यह कितना बड़ा मिथ्या अभिमान है। मैं तो लोगोंसे कहता था कि वे जेलको महल मानें। खूनी कानूनका विरोध करते हुए जो कष्ट सहन करने पड़ें उन्हें सुख समझें और इस कानूनके विरुद्ध सत्याग्रह करते हुए प्राण देने में और सम्पत्तिका त्याग करनेमें आनन्द मानें । मेरा यह सब ज्ञान कहाँ चला गया ? ये विचार मनमें आते ही मैं फिर सुस्थिर हो गया और मुझे अपनी मूर्खतापर हँसी आ गई। उसके बाद मैं इन व्यावहारिक विचारोंमें पड़ गया कि दूसरे भाइयोंको कैसी कैद मिलेगी और क्या वे भी मेरे ही साथ रखे जायेंगे। मैं इस उघड़बुनमें पड़ा ही था कि इतनमें दरवाजा खुला और पुलिसके सिपाहीने मुझे अपने पीछे आनको कहा। मैं उसके पीछे चला। उसके बाद उसने मुझे आगे कर लिया और वह मेरे पीछे- पीछे चला । वह मुझे जेलकी सींखचेदार गाड़ीके पास ले गया और मुझे उसमें बैठ जानेको कहा। वहाँसे मैं गाड़ीमें जोहानिसबर्ग जेलकी ओर ले जाया गया।

जेलमें पहुँचनेपर मेरे कपड़े उतरवाये गये। मैं जानता था कि जेलमें कैदियोंको नंगा किया जाता है। हम सबने निश्चय किया कि हम जेलके कायदे कानूनोंको जबतक वे अपमानजनक और धर्म-विरुद्ध न होंगे स्वेच्छासे मानेंगे। हमने यह सत्याग्रहीका धर्म माना था। मुझे जो कपड़े पहननेको दिये गये वे बहुत गन्दे थे। मुझे उन कपड़ोंको पहनना तनिक भी नहीं रुचा । उनको पहननेके लिए अपने मनको दबाते हुए मुझे दुःख हुआ, किन्तु कुछ गन्दगी तो सहन करनी ही पड़ेगी, यह सोचकर मैंने अपने मनपर अंकुश रखा। मेरा नाम-धाम लिखकर जेल कर्मचारी मुझे एक बड़ी कोठरीमें ले गये। मैं वहाँ थोड़ी ही देर बैठा था कि मेरे साथी भी हँसते-बोलते वहाँ आ गये । उन्होंने मुझे बताया कि मेरे बाद उनका मुकदमा किस तरह चला और क्या-क्या हुआ । उन्हें भी मेरे बराबर सादे कैदकी सजा दी गई थी। उन्होंने बताया कि मेरा मुक-

१. जोहानिसबर्ग जेलके अनुभवोंके लिए देखिए खण्ड ८ ।

२. यह वाक्य अंग्रेजीसे अनूदित है।

Gandhi Heritage Portal