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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आप पकानेकी ही मंजूरी मिली थी। यह व्यवस्था हमारे हाथमें आ जानेपर हमें अपने खाने से कुछ सन्तोष होने लगा ।

किन्तु ये सब सुविधाएँ मिले अथवा न मिले, हमें अपनी सजा हँसी-खुशी काटनी है, हमारी टुकड़ीमें कोई भी इस निश्चयसे विचलित नहीं हुआ था । सत्याग्रही कैदियों- की संख्या बढ़ते-बढ़ते १५० से अधिक हो गई थी। सादी कैदके कैदी होनेसे हमारे पास अपनी कोठरी साफ करने के सिवा दूसरा कोई काम नहीं था। हमने सुपरिन्टेन्डेन्ट- से काम माँगा । उसने उत्तर दिया, “यदि मैं आपको काम दे दूं तो यह माना जायेगा कि मैंने अपराध किया। इसलिए मैं मजबूर हूँ। आप सफाईमें और दूसरे अपने कामों- में चाहे जितना वक्त लगा सकते हैं।" हमने यह भी माँग की कि हमें कवायद वगैरा कसरत करवाई जाये, क्योंकि हम देखते थे कि कड़ी कैदवाले हब्शी कैदियोंसे भी कवायद करवाई जाती थी। इसका जवाब यह मिला "यदि आपके वार्डरको वक्त मिले और वह आपसे कसरत करवाये तो मैं विरोध नहीं करूंगा, किन्तु मैं उसे इसके लिए बाध्य नहीं करूंगा। आपकी संख्या बेहद बढ़ गई है इसलिए उसे बहुत काम रहता है। " वार्डर बहुत अच्छा आदमी था। उसे तो इतनी ही मंजूरीकी जरूरत थी । उसने हमें रोज सुबह मन लगाकर कवायद कराना शुरू कर दिया। हम इसे अपनी कोठरीके छोटेसे आँगनमें ही करते थे। वार्डर सिखाकर चला जाता तब एक पठान भाई नवाब खाँ उसे वैसे ही जारी रखते और कवायदके अंग्रेजी आदेशोंका उर्दू उच्चा- रण करके हमें हँसते-हँसाते लोट-पोट कर देते। वे 'स्टेण्ड एट ईज' को 'टंडलीज' कहते। कुछ दिनतक तो मेरी समझमें यही नहीं आया कि यह कौन-सा हिन्दुस्तानी शब्द है। किन्तु मुझे बादमें यह सुझा कि यह नवाबखानी अंग्रेजी है।

अध्याय २१

पहला समझौता

इस तरह जेलमें रहते एक पखवाड़ा हो गया होगा कि तबतक नये आनेवाले यह खबर लाने लगे कि सरकारके साथ समझौतेकी कुछ बातचीत चल रही है। इसके दो-तीन दिन बाद जोहानिसबर्गके 'ट्रान्सवाल लीडर' नामक दैनिक पत्रके सम्पादक अल्बर्ट कार्टराइट मुझसे मिलनेके लिए आये ।

उस समय जोहानिसबर्ग में जो दैनिक पत्र चलते थे उनमें से प्रत्येकका स्वामित्व सोनेकी खानोंके किसी न किसी गोरे मालिकके हाथमें था । परन्तु जिन मामलोंमें इन मालिकोंका अपना खास स्वार्थ न होता उनमें इन पत्रोंके सम्पादक अपने विचार स्वतन्त्रतापूर्वक व्यक्त कर सकते थे। इन पत्रोंके सम्पादक विद्वान् और ख्याति प्राप्त लोग ही चुने जाते हैं। उदाहरणके लिए दैनिक पत्र 'स्टार' के सम्पादक किसी समय " लॉर्ड मिलनरके निजी मन्त्री थे और बादमें वे 'स्टार' से 'टाइम्स' के सम्पादक श्री बकलका स्थान लेनेके लिए इंग्लैंड गये थे । अल्बर्ट कार्टराइट समझदार होनेके साथ-

१. २१ जनवरी, १९०८ को ।

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