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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

"मैंने स्वीकार किया कि मैंने दसों अँगुलियोंके निशानोंके बारेमें पहले जो कुछ भी लिखा है, मैं उसपर आज भी कायम हूँ । हिन्दुस्तानमें दसों अँगुलियोंके निशान अपराधी जातियोंसे लिये जाते हैं, यह बात में आज भी कहता हूँ। खूनी कानूनके मुताबिक दसों अँगुलियोंके निशान तो क्या अपने हस्ताक्षर भी देना पाप है, यह मैंने कहा है और आज भी कहता हूँ । मैंने दसों अँगुलियोंके निशानोंके मामलेमें बहुत जोर दिया है, यह बात भी सच और मैं यह मानता हूँ कि इस तरहका जोर देकर मैंने समझदारी की थी। खूनी कानूनकी जिन छोटी-छोटी बातोंको हम आजतक भी व्यवहारमें लाते हैं उनपर जोर देकर कौमको समझानेकी अपेक्षा दसों अँगुलियोंके निशान देनेकी मोटी और नई बातपर जोर देना आसान था और मैंने देखा कि कौम इस बातको तुरन्त समझ गई है। किन्तु आजकी स्थिति भिन्न प्रकार की है। जो बात कल अपराध थी वही आजकी नई स्थितिमें सज्जनता अथवा भलमनसाहत- की निशानी है, मैं इस बातको जोर देकर कहता हूँ । आप मुझसे जबरदस्ती सलाम कराना चाहें और मैं सलाम करूँ तो ऐसा करके मैं आपकी, लोगोंकी और अपनी नजरमें भी हीन ठहरूँगा । किन्तु यदि मैं आपको अपना भाई अथवा इनसान समझकर अपने-आप सलाम करूँ तो इससे मेरी नम्रता और भलमनसाहत जाहिर होगी । यह बात खुदाके दरबारमें भी मेरे हिसाबमें जमाके खाते में जायेगी । मैं इसी दलीलसे कौमको दसों अँगुलियोंके निशान देनेकी सलाह देता हूँ ।'

'हमने सुना है कि आपने कोमसे दगा की है और उसे १५००० पौंड लेकर जनरल स्मट्सको बेचा है । मैं तो दस अँगुलियोंके निशान हरगिज नहीं दूंगा और किसी दूसरेको नहीं देने दूंगा। मैं खुदाकी कसम खाकर कहता हूँ कि जो आदमी एशियाई दफ्तर में जानेकी पहल करेगा उसे मैं जानसे मार दूंगा ।

" मैं पठान भाइयोंकी भावनाको समझ सकता हूँ। मैंने रिश्वत लेकर कौमको बेचा है, मुझे विश्वास है कि इसे कोई भी सही नहीं मानेगा । जिन्होंने दसों अँगुलियों- के निशान न देनेकी सौगन्ध खाई हो उनको अँगुलियोंके निशान देनेके लिए कोई मजबूर नहीं कर सकता, यह मैं पहले ही समझा चुका हूँ । इसलिए मैं पठानों अथवा दूसरे मनुष्यों को भी, जो अँगुलियोंके निशान दिये बिना परवाना लेना चाहेंगे, पर- वाना दिलाने में पूरी मदद करूँगा। मैं विश्वास दिलाता हूँ कि वे अपने अँगुलियोंके निशान दिये बिना ऐच्छिक परवाने ले सकेंगे। जानसे मारनेकी धमकी मुझे नहीं रुचती, यह बात मुझे स्वीकार करनी पड़ेगी। मैं यह भी मानता हूँ कि किसीको मारनेकी कसम खुदाके नामपर नहीं खाई जा सकती। इसलिए मैं तो यही समझँगा कि इस भाईने क्रोधके आवेशमें आकर ही जानसे मारनेकी कसम खाई है। वे इस कसमको चाहे अमलमें लायें चाहे न लायें, किन्तु इस समझौतेको करवानेवाले मुख्य मनुष्य के रूपमें और जातिके सेवकके रूपमें मेरा स्पष्ट कर्त्तव्य यह है कि अँगुलियोंके निशान सबसे पहले मैं ही दूँ। मैं तो ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ कि वह इस कार्य में मुझको ही पहल करने दे । मरना तो सबके भाग्य में है ही । रोगसे अथवा किसी ऐसे ही दूसरे कारणसे मरनेकी अपेक्षा यदि मैं अपने ही किसी भाईके हाथसे मरूँ तो मुझे

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