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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

मैंने कहा: “ऐसा नहीं हो सकता; मेरी प्रतिज्ञा है कि यदि मैं जीता रहूँगा और ईश्वरको स्वीकार होगा तो सबसे पहले मैं ही परवाना लूंगा। इसलिए मेरा यह अनुरोध है कि आप कागज यहाँ ले आयें । "

इसलिए वे कागज लेने चले गये ।

मैंने इसके बाद दूसरा काम यह किया कि अटर्नी जनरल अर्थात् बड़े सरकारी वकीलको इस तरहका तार' दिया, “मीर आलम और उसके साथियोंने मेरे ऊपर जो आक्रमण किया है उसके लिए मैं उन्हें दोषी नहीं मानता। कुछ भी हो, मैं नहीं चाहता कि उनपर फौजदारीका मुकदमा चलाया जाये। मुझे आशा है कि आप उन्हें मेरी खातिर छोड़ देंगे । " मेरे इस तारपर मीर आलम और उसके साथी छोड़ दिये गये। किन्तु जोहानिसबर्गके गोरोंने अटर्नी जनरलको इस प्रकारका कड़ा पत्र लिखा : राधियोंको दण्ड देनेके सम्बन्धमें गांधीजीके विचार कुछ भी हों, किन्तु वे इस देशमें नहीं चल सकते। उन्हें जो मारा-पीटा गया है, वे चाहे स्वयं उसके सम्बन्ध में कुछ भी न करें, किन्तु अपराधियोंका यह काम उनके अपने घरके कोनेमें नहीं हुआ है; बल्कि यह अपराध आम रास्ते में हुआ। यह सार्वजनिक अपराध माना जायेगा। इस अपराधकी साक्षी कुछ गोरे भी दे सकते हैं। अपराधी गिरफ्तार किये ही जाने चाहिए।” सरकारी वकीलने इस आन्दोलनके कारण मीर आलम और उसके एक साथीको फिर गिरफ्तार कर लिया और उनको तीन-तीन महीनेकी कैदको सजा दी गई। इतना अवश्य हुआ कि में साक्षीके रूपमें नहीं बुलाया गया।

अब हम फिर घायलके कमरेमें निगाह डालें । श्री चैमने कागज लेने गये, इतनेमें ही डाक्टर थ्वंट्स आ गये। उन्होंने मेरी चोटें देखीं। मेरा ऊपरका ओठ फट गया था, उन्होंने उसे सिया और गालमें भी टाँके लगाये। उन्होंने पसलियोंकी परीक्षा करके उनपर लगानेकी दवा दी। उन्होंने हिदायत की कि जबतक टाँके न काटे जायें तबतक मैं बोलूं नहीं। उन्होंने खानेमें दूध जैसे तरल पदार्थोंके सिवा दूसरी चीजें खानेकी मनाही की। उन्होंने बताया कि मुझे कहीं भी कोई गहरी चोट नहीं आई है। मैं एक सप्ताहमें अपने बिस्तरसे उठ सकूंगा और अपने सामान्य कामकाजमें लग सकूँगा । मुझे केवल दो-एक महीनेतक शरीरको अधिक श्रमसे बचानेकी आवश्यकता होगी। इतना कहकर वे चले गये ।

इस प्रकार मेरे बोलनेपर रोक लग गई, किन्तु मैं अपना हाथ हिला-डुला सकता था। मैंने अध्यक्षकी मार्फत कौमके नाम गुजरातीमें एक छोटा-सा सन्देश लिखकर प्रकाशनार्थ भेजा। मैंने लिखा:

"मेरी तबीयत अच्छी है। श्री डोक और उनकी पत्नी मेरी सेवामें तन-मनसे लगे हैं, अतः मैं कुछ दिनमें ही फिर सेवाकार्य आरम्भ कर सकूँगा।"

जिन लोगोंने मुझसे मारपीट की है मेरे मनमें उनके प्रति कोई क्रोध नहीं है। उन्होंने यह काम अज्ञानमें किया है। उनपर कोई मुकदमा चलानेकी जरूरत नहीं है। यदि दूसरे लोग शान्त रहेंगे तो इस घटनासे भी लाभ ही होगा।

१. यह तार उपलब्ध नहीं है।

२. देखिए खण्ड ८, पृष्ठ ७४ ।

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