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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हिन्दुओंको अपने मनमें तनिक भी रोष नहीं रखना चाहिए। मैं चाहता हूँ कि इस घटनासे हिन्दुओं और मुसलमानोंमें कड़वाहटके बजाय मिठास पैदा हो । मैं खुदासे - - ईश्वरसे -यही प्रार्थना करता हूँ ।

मुझे मारा-पीटा गया; इससे भी अधिक मारा-पीटा जाये तो भी मैं एक ही सलाह दूंगा और वह यह है कि लगभग सभी लोग दसों अँगुलियोंके निशान दें दें। इसमें जिन लोगोंको कोई भारी धार्मिक आपत्ति होगी उनको सरकार इससे मुक्त कर देगी। इसीमें कौमकी और गरीबोंकी भलाई और रक्षा है।

यदि हम सच्चे सत्याग्रही होंगे तो हम मारपीटसे अथवा भविष्यमें विश्वास- घातके भयसे तनिक भी नहीं डरेंगे।

जो लोग दसों अँगुलियोंके निशान न देनेकी बातपर अड़े हुए हैं, उन्हें मैं नादान मानता हूँ ।

मैं ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ कि वह कौमका कल्याण करे, उसे सत्पथपर ले जाये और हिन्दुओं और मुसलमानोंको मेरे खूनसे जोड़े। "

श्री चैमने आ गये। मैंने जैसे-तैसे अपनी अँगुलियों के निशान दिये। उस समय मैंने उनकी आँखोंमें आँसू छलकते देखे। उनके विरुद्ध तो मुझे तोखे लेख भी लिखने पड़े थे; किन्तु प्रसंग आनेपर मनुष्यका हृदय कितना कोमल हो सकता है, इसका चित्र मेरी आँखोंके सामने अब भी घूम रहा है।

पाठक अनुमान कर सकते हैं कि इस सब विधिको पूरा करनेमें कुछ ज्यादा समय नहीं लगा होगा। मैं बिलकुल शान्त और स्वस्थ चित्त हो जाऊँ इस बातके लिए श्री डोक और उनकी भली पत्नी चिन्तित थे। घायल होनेके बाद मुझे यह मानसिक श्रम करते देखकर उन्हें व्यथा होती थी । उनको यह भय था कि कहीं इसका दुष्प्रभाव मेरे स्वास्थ्यपर न पड़े। अतः उन्होंने सभी लोगोंको संकेत करके और अन्य युक्तियोंसे मेरे पलंगके पाससे हटा दिया और मुझे कुछ भी लिखने अथवा कुछ और काम कर-

१. अंग्रेजी अनुवादमें ये अनुच्छेद इस प्रकार हैं:

“ यह जानकर कि प्रहार मुसलमान या मुसलमानों द्वारा किया गया था, हिन्दू लोग कदाचित् क्षुब्ध होंगे। यदि ऐसा हुआ तो वे संसारके सामने और परमपिता ईश्वरके सामने गुनहगार होंगे। मैं तो यही कह सकता हूँ कि जो रक्त बहा है वह दोनों जातियोंके बीच स्थायी मैत्री स्थापित करे। मैं हृदयसे पही प्रार्थना करता हूँ। ईश्वर करे वह फलवती हो ।

वारदातके होने न होनेसे मेरी सलाहमें अन्तर नहीं आ सकता। एशियाई लोगोंके इस बहुत बड़े समाजको अँगुलियोंकी छाप देनी चाहिए। जिन्हें कोई ऐसी आपत्ति हो, जिसका सम्बन्ध अन्तरात्मासे है, उन्हें सरकारसे छूट मिल जायेगी। इससे अधिककी याचना करनी लड़कपन प्रकट करनेके समान होगा।

सत्याग्रहकी भावनाको अच्छी तरहसे समझ लेनेपर ईश्वरके सिवा और किसीसे डरनेकी बात ही नहीं जाती। इसलिए विवेकशील और गम्भीर हृदयवाले ज्यादातर भारतीय लोगोंको चाहिए कि वे अपने कर्तव्यपालनके मार्गमें किसी प्रकारके कायरतापूर्ण भपके द्वारा बाधा उत्पन्न न होने दें। स्वेच्छासे कराये गये पंजीधनके खिलाफ कानूनको मंसूख कर देनेका वादा किया ही जा चुका है; इसलिए प्रत्येक नेक भारतीयका यह पवित्र कर्तव्य हो जाता है कि वह भरसक सरकारकी तथा उपनिवेशको सहायता करे।”

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