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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

नेसे रोक दिया। मैंने यह अनुरोध किया (यह भी लिखकर ही) कि यदि उनकी पुत्री ऑलिव, जो उस समय बिलकुल बालिका ही थी, मुझे मेरा प्रिय अंग्रेजी भजन ‘लीड काइंडली लाइट' (प्रेमल ज्योति) सुना देगी तो मैं बिलकुल शान्त होकर सो जाऊँगा । नरसिंहरावके गुजराती अनुवादसे बहुतसे गुजराती इस भजनका अर्थ जानते हैं। इसकी पहली पंक्ति इस प्रकार है:

प्रेमल ज्योति तारो दाखवी

मुज जीवनपंथ उजाल

श्री डोकको मेरी यह प्रार्थना बहुत रुची । मीठी हँसी हँसते हुए उन्होंने मुझे यह बात बताई और संकेतसे ऑलिवको बुलाकर दरवाजेके बाहर खड़ी होकर धीरे-धीरे सरलतासे उस भजनको गानेका आदेश दिया। यह बात लिखाते वक्त वह सारा दृश्य मेरी आँखोंके आगे फिर रहा है और ऑलिवका वह पवित्र स्वर मेरे कानोंमें गूंज रहा है।

मैं इस प्रकरणमें ऐसी बहुत-सी बातें लिख गया हूँ जो मेरे विचारसे इसके लिए अप्रासंगिक हैं और जिन्हें पाठक भी अप्रासंगिक मानेंगे। फिर भी, मैं एक संस्म- रण जोड़े बिना इस प्रकरणको समाप्त नहीं कर सकता। इस समयके सभी संस्मरण मेरे लिए इतने पवित्र हैं कि मैं उन्हें भुला नहीं सकता। डोक परिवारकी सेवाका वर्णन में किस प्रकार कर सकता हूँ?

जोजेफ डोक बेप्टिस्ट सम्प्रदायके पादरी थे। वे दक्षिण आफ्रिकामें आने से पहले न्यूजीलैंडमें थे। मेरे ऊपर आक्रमण होनेकी घटनासे कोई ६ महीने पहले वे मेरे दफ्तरमें आये थे और उन्होंने अपना नाम मेरे पास भेजा था। उसमें नामके आगे 'रेवरेंड' विशेषण लगा था। इससे मैंने उनके सम्बन्धमें यह अनुचित कल्पना कर ली कि जैसे कुछ दूसरे पादरी ईसाई बनानेके खयालसे अथवा इस आन्दोलनको बन्द करवाने के विचारसे अथवा मेरे हितैषीके रूपमें इस आन्दोलनके प्रति सहानुभूति दिखाने के अभिप्रायसे मुझे समझाने आते हैं वैसे ही ये भी आये होंगे। किन्तु श्री डोकने अन्दर आकर मुझसे कुछ मिनट ही बात की थी, इतने में ही मुझे इस सम्बन्धमें अपनी भूल मालूम हो गई और मैंने मन ही मन उसके लिए उनसे क्षमा माँगी। उसी दिनसे हम दोनों गाढ़े मित्र बन गये। आन्दोलनके सम्बन्धमें पत्रोंमें जो भी बातें छपती थीं उनसे उन्होंने अपनी पूरी जानकारी बताई। उन्होंने कहा : "आप इस आन्दोलनमें मुझे अपना मित्र ही मानें । मुझसे जो भी सेवा हो सके उसे मैं अपना धर्म समझकर करना चाहता हूँ। यदि मैंने ईसाके जीवनका चिन्तन करके कुछ सीखा है तो वह दुःखी लोगोंके दुःखोंको दूर करनेमें भाग लेना ही सीखा है।" इस तरह हमारी जान-पहचान हुई और हमारा यह स्नेह और सम्बन्ध उसके बाद दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही गया। पाठक इस इतिहासमें यहाँसे आगे डोकका नाम बहुत-से प्रसंगोंमें

१. विस्तृत विवरणके लिए देखिए खण्ड ८, १४ ९०-४।

२. अंग्रेजी अनुवादमें यहाँ है उनकी आयु ४६ वर्ष थी।