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संपूर्ण गांधी वाङ्मय

और सायंकालको नियमपूर्वक भोजन करने जाता था। वेस्ट भी उसीमें भोजलिए आते। हम दोनोंकी जान-पहचान वहीं हुई थी। वे तब एक दूसरे गोरेके साझेमें एक छापाखाना चलाते थे ।

१९०४ में जोहानिसबर्गके हिन्दुस्तानियोंमें जबर्दस्त प्लेग फैली; उस समय मैं बीमारोंकी सार-सम्भालमें व्यस्त हो गया और उक्त भोजन-गृहमें मेरा जाना अनियमित हो गया। मैं वहाँ जब जाता तब भी दूसरोंको बीमारीकी छूत लग जानेका भय न रहे इस विचारसे में दूसरोंके आने से पहले ही भोजन करके चला जाता। जब वेस्टने मुझे लगातार दो दिनतक वहाँ नहीं देखा तब उनको चिन्ता हुई। उन्होंने पत्रोंमें पढ़ा कि मैं बीमारोंकी सार-सँभालमें लगा हूँ । अतः उन्होंने तीसरे दिन सुबह ६ बजे, जब मैं हाथ-मुँह घो रहा था मेरे कमरेके किवाड़ खटखटाये । किवाड़ खोले तो सामने वेस्ट मुस्कराते हुए खड़े थे।

वे बहुत प्रसन्न जान पड़े और तुरन्त बोले, “आपको देखकर चित्तको शान्ति हुई। आपको भोजन-गृहमें नहीं देखा तो मुझे चिन्ता हो गई थी। मेरे लायक कुछ काम हो तो मुझे अवश्य बतायें। "

मैने हँसकर पूछा, “बीमारोंकी सार सँभालमें ? "


"क्यों नहीं ? बेशक में उसके लिए तैयार हूँ ।"

इस बीच मैंने काम सोच लिया था। मैंने कहा, “आपसे दूसरे किसी उत्तरकी आशा तो हो ही नहीं सकती थी। इस कार्य में सहायता देनेवाले बहुत लोग हैं। मैं तो आपसे इससे भी अधिक कड़ा काम लेना चाहता हूँ । मदनजीत यहाँ आ गये हैं; इसलिए 'इंडियन ओपिनियन' के छापेखानेको सँभालनेवाला कोई नहीं है। मैंने मदन- जीतको प्लेगके निवारणके काममें लगा दिया है। यदि आप डर्बन जाकर छापाखाना सँभाल लें तो यह सच्ची सहायता होगी। उसमें लुभावनी बात तो कुछ है नहीं। मैं आपको थोड़ा ही दे पाऊँगा, अर्थात् दस पौंड प्रति मास । इसके अतिरिक्त छापे- खानेमें कुछ लाभ होगा तो उसका आधा आपका होगा। "

'यह काम कुछ अटपटा अवश्य है। मुझे अपने साझेदारसे स्वीकृति लेनी होगी। कुछ उगाही बाकी है; किन्तु चिन्ताकी कोई बात नहीं। आप मुझे आज सायंकालतक की छुट्टी तो देंगे न ? "

" हाँ, हम ६ बजे पार्कमें मिलें । "

"मैं अवश्य आऊँगा ।"

हम तदनुसार मिले। वेस्टने अपने साझेदारसे स्वीकृति ले ली थी। उन्होंने अपना उगाहीका काम मुझे सौंपा और दूसरे दिन सायंकालकी गाड़ीसे रवाना हो गये। एक महीनेके भीतर उनकी यह रिपोर्ट आई कि छापेखानेमें लाभ तो कुछ है ही नहीं, घाटा बहुत है । उगाही भी बहुत बाकी है। हिसाब-किताब ढंगसे नहीं रखा गया है। ग्राहकोंको नाम-पते ठीक नहीं लिखे गये हैं। दूसरी तरहकी अव्यवस्था भी बहुत है। यह बात मैं शिकायतके तौरपर नहीं लिख रहा हूँ। मैं यहाँ लाभ कमानेके लिए नहीं आया हूँ इसलिए जो काम हाथमें लिया है उसे मैं कभी नहीं