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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

छोड़ेंगा, यह आप निश्चित मानें। किन्तु मैं आपको यह नोटिस अभीसे दिये देता हूँ कि आपको लम्बे अर्सेतक घाटा पूरा करते रहना होगा।

मदनजीत ग्राहक बनाने और छापेखानेकी व्यवस्थाके सम्बन्धमें मुझसे बातचीत करनेके लिए जोहानिसबर्ग आ गये थे। मैं उसमें हर महीने थोड़ा-बहुत घाटा देता रहता था, इसलिए मैं यह जानना चाहता था कि मुझे कहाँतक घाटा उठाना होगा। मैं पाठकोंको बता चुका हूँ कि मदनजीतको छापेखानेका अनुभव आरम्भसे ही नहीं था; इसलिए मैं सोचता रहता था कि यदि मैं उनके साथ किसी ऐसे आदमीको रख सकूं जिसे इस कामका अनुभव हो तो अच्छा रहे। इसी बीच प्लेग फैल गया। मदनजीत इस सेवाके काममें बहुत कुशल और निर्भीक मनुष्य थे। इसलिए मैंने उनको इसमें लगा दिया था। अतः जब वेस्टका यह अनपेक्षित प्रस्ताव सामने आया तब मैंने उसे स्वीकार किया। मैंने उनको यह भी समझा दिया था कि उनको वहाँ जब- तक प्लेग है तभीतकके लिए नहीं, बल्कि स्थायी रूपसे रह जाना चाहिए। इसीलिए मेरे पास उनकी उक्त रिपोर्ट आई थी।

पाठक जानते हैं कि अखबार और छापाखाना अन्तमें फीनिक्स चले गये थे। वहाँ वेस्टकी गुजारेकी रकम १० पौंडसे तीन पौंड मासिक हो गई और ये सब परि- वर्तन उनकी पूर्ण सहमतिसे ही हुए। उनकी आजीविका कैसे चलेगी, मैंने उन्हें ऐसी चिन्ता करते कभी नहीं देखा। उन्होंने धर्मग्रन्थोंका अध्ययन नहीं किया था, फिर भी मैं जानता हूँ कि वे अत्यन्त कर्त्तव्यपरायण व्यक्ति थे। वे स्वतन्त्र स्वभावके मनुष्य थे। वे जिस बातको जैसा समझते उसको वैसा ही कहते थे। वे कालेको सांवला नहीं काला ही कहते थे। उनका रहन-सहन बहुत ही सादा था। जब उनसे मेरा परि- चय हुआ तब वे अविवाहित थे और ब्रह्मचर्यका पालन करते थे, यह मैं जानता हूँ । कुछ वर्ष बाद वे अपने माता-पिताको देखने के लिए इंग्लैंड गये और वहाँसे विवाह करके वापस आये। वे मेरी सलाहसे अपनी पत्नी, सास और अपनी एक कुमारी बहनको अपने साथ ले आये थे। ये सब लोग फीनिक्समें बहुत ही सादगीसे और हर तरहसे हिन्दुस्तानियोंके साथ घुलमिल कर रहते थे । कुमारी एडा वेस्ट (जिन्हें हम देवी बहन कहते थे ) अब ३५ वर्षकी होंगी, किन्तु वे अब भी कुमारी ही हैं और बहुत ही पवित्र जीवन बिताती हैं। उन्होंने भी कुछ कम सेवा नहीं की थी। उन्होंने फीनिक्समें रहनेवाले बच्चोंको रखने, उन्हें अंग्रेजी पढ़ाने, सार्वजनिक रसोईघर में खाना पकाने, मकानकी सफाई, हिसाब-किताब रखने, कम्पोज करने और छापेखानमें दूसरे काम करनेमें कभी आगा-पीछा नहीं किया। वे इस समय फोनिक्समें नहीं हैं और इसका कारण एकमात्र यही है कि मेरे हिन्दुस्तान चले आने के बाद छापेखानेसे उनका वह थोड़ा-सा खर्च भी नहीं निकल पाता था। वेस्टकी सासकी उम्र अब ८० सालसे ज्यादा होगी। उन्हें सिलाईका काम बहुत अच्छा आता है। यह वृद्धा भी इस आश्रममें सीने-पिरोनेके काममें पर्याप्त सहायता देती थी। उसे फीनिक्समें सब दादी (ग्रैनी) कहते और मानते थे। वेस्टकी पत्नी के सम्बन्धमें तो कुछ कहनेकी जरूरत ही नहीं। जब फीनिक्सके बहुतसे लोग जेल चले गये तब वेस्ट परिवारने