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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

फीनिक्सका सारा कामकाज मगनलाल गांधीके सहयोगसे चलाया । पत्र और छापाखाने- का बहुत-सा काम वेस्ट करते थे। मैं और दूसरे लोग जब वहाँ नहीं रहे तब वे ही डर्बनसे गोखलेको तार आदि भी भेजते । अन्तमें वे भी गिरफ्तार कर लिये गये (वे जल्दी ही छोड़ भी दिये गये थे । ) ; अतः श्री गोखलेको बहुत चिन्ता हुई और उन्होंने एन्ड्रयूज और पियर्सनको दक्षिण आफ्रिका भजा ।

दूसरे गोरे सज्जन थे रिच । मैं उनके सम्बन्धमें लिख चुका हूँ। वे भी संघर्षसे पहले मेरे दफ्तर में आ गये थे । वे मेरी अनुपस्थितिमें मेरा काम सँभाल सकेंगे, इस विचारसे बैरिस्टरी पास करने इंग्लैंड चले गये थे । इंग्लैंडमें दक्षिण आफ्रिकी ब्रिटिश भारतीय समितिकी पूरी जिम्मेदारी उन्हींपर थी ।

तीसरे व्यक्ति थे पोलक । वेस्टकी तरह पोलकसे भी भोजनगृहमें अनायास ही परिचय हुआ था। वे भी 'ट्रान्सवाल क्रिटिक' पत्रके उप-सम्पादकका स्थान छोड़कर एक क्षणमें ही 'इंडियन ओपिनियन' में आ गये थे। सभी जानते हैं कि उन्होंने हिन्दुस्तानियोंके संघर्षके सम्बन्धमें इंग्लैंड और हिन्दुस्तानका दौरा किया था। रिचके इंग्लैंड चले जानेपर मैंने उन्हें फीनिक्ससे अपने दफ्तरमें बुला लिया था । वे वहाँ मेरे 'आर्टिकल्ड क्लर्क' रहे और फिर स्वयं भी वकील बन गये। उन्होंने बादमें विवाह कर लिया था । पोलककी पत्नीको भी हिन्दुस्तानके लोग जानते हैं । इस महिलाने भी संघर्ष सम्बन्धी कार्योंमें अपने पतिकी पर्याप्त सहायता की और विघ्न तो उसमें कभी डाला ही नहीं। ये दोनों यद्यपि इस समय असहयोग आन्दोलनमें हमारे साथ काम नहीं कर रहे हैं, फिर भी वे हिन्दुस्तानकी यथाशक्ति सेवा कर रहे हैं ।

इसके बाद आते हैं हरमान कैलनबँक । इनसे भी मेरा परिचय लड़ाईसे पहले हुआ था । ये जातिके जर्मन हैं और यदि अंग्रेजों और जर्मनोंके बीच युद्ध न होता तो वे आज हिन्दुस्तान में होते । उनका हृदय विशाल है और वे बेहद भोले हैं। उनकी भावनाएँ बहुत ही तीव्र हैं । वे वास्तुशिल्पी हैं। ऐसा कोई भी काम नहीं जिसे करनेमें उन्होंने आपत्ति की हो। मैं अपना जोहानिसबर्गका घर समेट लेनेके बाद उन्हींके साथ रहता था। मेरा खर्च भी तब वे ही उठाते थे । घर तो उनका अपना था ही। जब मैं खानेके खर्च में अपना हिस्सा देता तब वे नाराज होते और यह कहकर मुझे उसे देनेसे रोकते कि उन्हें फजूलखर्चीसे बचानेवाला भी तो मैं ही हूँ । उनके इस कथनमें सचाई थी । किन्तु मुझे यहाँ इन गोरे सज्जनोंके साथ अपना निजी सम्पर्क नहीं बताना है । जब गोखले आये थे तब वे जोहानिसबर्ग में हिन्दुस्तानियों की ओरसे कैलऩबैंककी कोठी में ठहराये गये थे । गोखलेको यह मकान बहुत पसन्द आया था। कैलनबैक उनको विदा करने के लिए मेरे साथ जंजीबारतक गये थे । पोलकके साथ वे भी गिरफ्तार हुए थे और उन्होंने भी कैद भोगी थी। जब मैं दक्षिण आफ्रिकाको छोड़कर इंग्लैंडमें गोखलेसे मिलकर हिन्दुस्तान आ रहा था तब कैलनबँक मेरे साथ थे । उन्हें तब युद्धके कारण हिन्दुस्तान आनेका परिपत्र नहीं दिया गया था और वे इंग्लैंडमें अन्य जर्मनोंके साथ बन्द कर लिये गये थे । युद्ध समाप्त होनेपर वे फिर जोहानिसबर्ग चले गये और उन्होंने वहाँ अपना धन्धा फिर आरम्भ कर दिया। जब जोहानिसबर्ग में सत्याग्रही