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दक्षिण अफ्रीकाके सत्याग्रह इतिहास

कैदियोंके परिवारोंको एक जगह रखनेका निश्चय किया गया तब कैलनबैकने अपना ११०० बीघेका फार्म कौमको बिना किराया लिये दिया था। इसका विवरण पाठक आगे पढ़ेंगे ।

अब मैं एक पवित्र लड़कीका परिचय दूं। उसे गोखलेने जो प्रमाणपत्र दिया था उसे मैं पाठकोंके सम्मुख रखे बिना नहीं रह सकता। इस लड़कीका नाम कुमारी इलेसिन था। गोखलेकी लोगोंको पहचाननेकी शक्ति अद्भुत थी । हमें डेलागोआ-बेसे जंजीबारतक शान्तिसे बातचीत करनेका अच्छा अवसर मिल गया था। श्री गोखलेने दक्षिण आफ्रिकाके हिन्दुस्तानी और गोरे नेताओंका भी पर्याप्त परिचय प्राप्त किया था । अतः उन्होंने उनमें से मुख्य-मुख्य लोगोंका सूक्ष्म विश्लेषण भी किया। मुझे ठीक- ठीक याद है कि उन्होंने कुमारी इलेसिनको हिन्दुस्तानियों और गोरों, सबमें मिलाकर पहला स्थान दिया था। उन्होंने कहा था, "मैंने उसके समान अन्तःकरणकी निर्मलता, और दृढ़ता बहुत कम लोगोंमें देखी है। हिन्दुस्तानियोंके संघर्ष में बिना किसी लाभके ऐसा सम्पूर्ण समर्पण देखकर मैं तो आश्चर्यचकित हो गया हूँ। इसके अतिरिक्त, इन सब गुणोंके साथ उसकी कार्यकुशलता और तत्परता उसे इस संघर्ष में एक अमूल्य सेविका बना देती है। मुझे कहने की जरूरत तो नहीं है, किन्तु मैं फिर भी कहता हूँ कि आप उसे अवश्य अपने साथ बनाये रखें।"

एक स्कॉच कुमारी, जिसका नाम डिक था, मेरी स्टेनो-टाइपिस्ट थी । वह बहुत एक स्कॉच कुमारी, जिसका नाम डिक था, मेरी स्टेनो-टाइपिस्ट थी । वह बहुत ही वफादार और नीतिमान थी। मुझे अपने जीवनमें बहुतसे कटु अनुभव हुए हैं; किन्तु मेरा सम्बन्ध बहुतसे उच्च चरित्रके अंग्रेजों और हिन्दुस्तानियोंसे भी हुआ है और में इसे सदा अपना सौभाग्य मानता आया हूँ । जब कुमारी डिकके विवाहका समय आया तब उसे हमसे अलग होना पड़ा। उस समय श्री कैलनबैक कुमारी श्लेसिनको मेरे पास लाये थे और मुझसे कहा था, "इस लड़कीकी माँने इसे मुझे सौंपा है। यह चतुर है और प्रामाणिक है किन्तु इसके स्वभावमें शरारत और स्वतन्त्रता बहुत है। सम्भव है, यह उद्धत भी हो । यदि आप उसे निभा सकें तो अपने पास रखें। मैंने इसे आपके पास वेतनकी दृष्टिसे नहीं रखा।" मैं तो अच्छे स्टेनो-टाइपिस्टको २० पौंड मासिकतक देनेको तैयार था। मैं कुमारी श्लेसिनकी योग्यता तबतक नहीं जानता था। श्री कैलनबकने कहा, इसे फिलहाल ६ पौंड वेतन दें।" मुझे यह वेतन स्वीकार करनेमें क्या अड़चन हो सकती थी ?

कुमारी श्लेसिनकी शरारतका अनुभव तो मुझे तुरन्त ही हो गया; किन्तु उसने मेरा मन एक महीने में ही जीत लिया। रात हो या दिन, उसे किसी भी समय काम दे दीजिये । उसके लिए कोई भी काम अशक्य अथवा कठिन नहीं था। उस समय उसकी आयु १६ वर्षकी थी। उसने अपनी शुद्धचित्तता और सेवा-परायणतासे मेरे मुवक्किलों और सत्याग्रहियोंका मन मोह लिया था। यह लड़की मेरे दफ्तरकी और इस लड़ाईकी नीतिकी चौकीदार और निगहबान हो गई थी। यदि उसे किसी कार्यकी नीति-सम्मतताके सम्बन्धमें तनिक भी शंका होती तो वह मुझसे बिलकुल खुलकर वादविवाद करती और मैं जबतक उसकी नीति सम्मतताके सम्बन्धमें उसको आश्वस्त न कर देता तबतक वह सन्तुष्ट न होती।