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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जब सब लोग गिरफ्तार कर लिये गये और नेताओंमें एक काछलिया ही बाहर रह गये तब इस बहनने लाखों रुपयेका हिसाब रखा और भिन्न-भिन्न प्रकृतिके व्यक्तियोंसे काम लिया। काछलिया भी उसका सहारा मानते और उसकी सलाह लेते। हम सब लोगोंके जेल चले जानेपर 'इंडियन ओपिनियन' का काम श्री डोकने सँभाला; किन्तु ये श्वेतकेशी और अनुभवी वयोवृद्ध भी 'इंडियन ओपिनियन' के लिए लिखे गये लेखोंको कुमारी श्लेसिनको दिखाकर ही अन्तिम रूप देते थे। उन्होंने मुझसे कहा था, “यदि कुमारी श्लेसिन न होती तो मैं नहीं जानता कि अपने कामसे मैं स्वयं अपनेको ही किस प्रकार सन्तुष्टकर पाता। मैं उसकी सहायता और उसके सुझावोंका मूल्य नहीं आँक सकता। कई बार स्वयं मैंने भी उसके बताये हुए परिवर्तन और परिवर्धन उचित समझकर स्वीकार किये हैं। पठान, पटेल, गिरमिटिये, सभी धन्धों और सभी अवस्थाओंके हिन्दुस्तानी उसको घेरे रहते, उससे सलाह लेते और जैसा वह कहती वैसा करते ।

दक्षिण आफ्रिकामें गोरे और हिन्दुस्तानी रेल-गाड़ी के डिब्बोंमें प्राय: साथ-साथ नहीं बैठते थे। ट्रान्सवालमें तो उनके साथ-साथ बैठनेका निषेध ही था । सत्याग्रहियोंका नियम तीसरे दरजेमें ही सफर करनेका था। इसके बावजूद कुमारी श्लेसिन जानबूझकर हिन्दुस्तानियोंके ही डिब्बेमें बैठती और रोकनेवाले गार्डोंसे हुज्जत भी करती । वह किसी दिन गिरफ्तार हो जायेगी, यह भय मुझे था और स्वयं उसके मनमें भी गिरफ्तार होनेकी हौंस थी। उसकी योग्यता, आन्दोलनके सम्बन्धमें उसका पूर्ण ज्ञान और सत्याग्रहियोंके हृदयोंपर उसका अधिकार - ये तीनों बातें ट्रान्सवाल सरकारके ध्यानमें थीं; किन्तु फिर भी ट्रान्सवाल सरकारने कुमारी इलेसिनको गिरफ्तार नहीं किया और इस प्रकार इस हदतक उसने नीति और शिष्टताका त्याग नहीं किया।

कुमारी श्लेसिनने अपना मासिक वेतन ६ पौंडसे बढ़ाने की इच्छा या माँग कभी नहीं की। मैंने उसकी कुछ जरूरतोंको देखकर उसको १० पौंड वेतन देना शुरू किया; किन्तु उसने इसे भी आनाकानी करते हुए ही स्वीकार किया और इससे अधिक वेतन लेनेसे तो साफ इनकार ही कर दिया। उसने कहा, “इससे ज्यादाकी मुझे जरूरत ही नहीं है। यदि मैं इससे ज्यादा लूँ तो मैं जिस निष्ठासे आपके पास आई हूँ वह झूठी सिद्ध होगी।" उसके इस उत्तरसे मैं चुप हो गया । पाठक शायद यह जानना चाहेंगे कि कुमारी इलेसिनने शिक्षा कहाँतक पाई थी। उसने केप विश्वविद्यालयसे इंटरमीडिएटकी परीक्षा उत्तीर्णकी थी और आशुलिपिमें प्रथम श्रेणीका प्रमाणपत्र प्राप्त किया था। इस आन्दोलनसे मुक्त होनेपर उसने उसी विश्वविद्यालयकी स्नातक परीक्षा उत्तीर्णकी और इस समय वह ट्रान्सवालकी किसी कन्याशालामें प्रधान अध्या- पिका है ।

हर्बर्ट किचिन एक शुद्ध हृदयके अंग्रेज थे। वे बिजलीका काम जानते थे और बोअर युद्धमें हमारे साथ काम करते थे। वे कुछ समयतक 'इंडियन ओपिनियन' के सम्पादक भी रहे थे। उन्होंने ब्रह्मचर्यका आजन्म पालन किया था ।