पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 29.pdf/१६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१३९
दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

मैंने ऊपर जिन लोगोंका उल्लेख किया है, वे तो ऐसे लोग हैं जो मेरे विशेष सम्पर्कमें आये थे। उनकी गणना ट्रान्सवालके मुख्य गोरोंमें नहीं की जा सकती। फिर भी कहा जा सकता है कि ट्रान्सवालके गोरोन हमें बहुत सहायता दी थी। प्रतिष्ठा की दृष्टिसे श्री हॉस्केनका स्थान पहला है। वे दक्षिण आफ्रिकाके व्यापार मण्डलोंकी सभाके अध्यक्ष रहे थे और उस समय ट्रान्सवाल विधान सभाके सदस्य थे। मैं उनका परिचय पहले दे चुका हूँ। उनकी अध्यक्षतामें सत्याग्रह आन्दोलनके सहायक गोरोंकी एक स्थायी समिति बनाई गई थी। इस समितिन हमें यथाशक्ति सहायता दी। जब आन्दोलनका रंग पूरी तरह जम गया तब स्थानीय सरकारसे हमारे बातचीतके सम्बन्ध कैसे जारी रह सकते थे ? असहयोगका तत्त्व इसका कारण नहीं था, बल्कि कारण यह था कि जो लोंग सरकारी कानूनोंको तोड़ते थे उनसे सरकार बातचीतका व्यवहार नहीं रख सकती थी। इस कारण उस समय गोरोंकी इस समितिने सरकार और सत्याग्रहियोंको जोड़नेवाली कड़ीका काम किया ।

मैं अल्बर्ट कार्टराइटका परिचय भी पहले करा चुका हूँ। रेवरेंड चार्ल्स फिलिप्स नामके एक दूसरे भले पादरी थे। इनसे भी हमारा सम्बन्ध श्री डोककी तरह थनिष्ठ था और इन्होंने हमारी बहुत सहायता की थी। वे ट्रान्सवालमें बहुत वर्षांतक धर्मोपदेष्टा पादरी (कोंग्रिगेशनल मिनिस्टर) रहे थे। उनकी पत्नी भी हमें सहायता देती थी । एक तीसरे प्रमुख पादरी रेवरेंड ड्यूडनी ड्र थे जिन्होंने पादरीका काम छोड़कर एक अखबार- का सम्पादकत्व स्वीकार किया था। ये ब्लूमफॉन्टीनसे प्रकाशित दैनिक पत्र 'फ्रेन्ड' के सम्पादक थे। इन्होंने गोरोंका तिरस्कार मोल लेकर अपने पत्रमें हिन्दुस्तानियोंका पक्ष पोषण किया था। उनकी गणना दक्षिण आफ्रिकाके प्रसिद्ध वक्ताओंमें की जाती थी। इसी तरहकी मुक्त सहायता देनेवाले 'प्रिटोरिया न्यूज के सम्पादक श्री वेर स्टेंट थे। एक बार प्रिटोरियाके नगरपालिका भवनमें वहाँके मेयरके सभापतित्वमें गोरों- की एक बहुत बड़ी सभा की गई थी। उसका उद्देश्य हिन्दुस्तानियोंके आन्दोलनकी निन्दा करना और खूनी कानूनका समर्थन करना था। श्री वेर स्टेंटने उस सभामें अकेले ही उन गोरोंका विरोध किया। अध्यक्षने उनको बैठ जानेका आदेश दिया, किन्तु उन्होंने उसे नहीं माना। गोरोंने उन्हें मारने-पीटनेकी भी धमकी दी; किन्तु यह वीर पुरुष फिर भी सिंहकी भाँति दहाड़ते हुए नगरपालिका भवनम अड़े रहे। अन्तमें संयोजकोंको सभा प्रस्ताव पास किये बिना ही विसर्जित करनी पड़ी।

मैं ऐसे अन्य गोरोंके नाम भी गिना सकता हूँ जो किसी संस्था तो सम्मिलित नहीं हुए, किन्तु जिन्होंने सहायताका एक भी अवसर हाथसे नहीं जाने दिया। मैं इस प्रकरणको अधिक लम्बा करना नहीं चाहता और इसे तीन महिलाओंका परिचय देकर ही समाप्त कर दूंगा। इनमें से एक थीं कुमारी हॉबहॉउस | ये लॉर्ड हॉहॉउसकी पुत्री थीं। ये बहन बोअर युद्धके समय लॉर्ड मिलनरका विरोध करके ट्रान्सवालमें गई थीं। जिस समय लॉर्ड किचनरने युद्धमें सम्मिलित बोअरोंकी स्त्रियोंको नजरबन्द करने के लिए ट्रान्सवाल और ऑरेंज फ्री स्टेटमें प्रख्यात या कुख्यात नजरबन्द शिविर (कंसेंट्रेशन कैम्प) खोले, उस समय ये वहन बोअर स्त्रियोंमें अकेली ही