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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

घूमती थीं, उनको दृढ़ रहने के लिए समझाती थीं और उनका साहस बढ़ाती थीं । वे अंग्रेजोंकी बोअर सम्बन्धी नीतिको पूर्णतः अन्यायपूर्ण मानती थीं, इसलिए वे स्व० स्टेडकी भाँति ही ईश्वरसे युद्धमें अंग्रेजों की पराजयको कामना और प्रार्थना करती थीं । बोअरोंकी इतनी बड़ी सेवा करने के बाद जब उन्होंने यह देखा कि बोअर जिस अन्यायके विरुद्ध लड़े थे स्वयं अज्ञानके कारण पथभ्रष्ट होकर हिन्दुस्तानियोंके प्रति वही अन्याय करनेके लिए तैयार हो गये हैं; तब वे इसे सहन नहीं कर सकीं। बोअर जाति उनका बहुत सम्मान करती और उनसे बहुत प्रेम रखती थी। कुमारी हॉबहॉउसका जनरल बोथासे बहुत निकटका सम्बन्ध था । वे उन्हींके यहाँ ठहरती थीं। उन्होंने इस खूनी कानूनको रद कराने के सम्बन्धमें बोअर संस्थाओंमें यथाशक्ति चर्चा की।

दूसरी बहन थीं ऑलिव श्राइनर । मैं इन बहनकी चर्चा पाँचवें प्रकरणमें कर चुका हूँ । ये विदुषी बहन दक्षिण आफ्रिकाके प्रसिद्ध श्राइनर परिवारमें जन्मी थीं । श्राइनर नाम इतना अधिक प्रसिद्ध है कि विवाह के बाद इनके पतिको इनका पारिवारिक नाम ही कायम रखना पड़ा था। इसमें उनका हेतु यह था कि दक्षिण आफ्रिकाके गोरोंमें श्राइनर परिवारके साथ ऑलिवका सम्बन्ध लुप्त न हो। इस सम्बन्धमें उनका अभिमान मिथ्या न था । मेरा खयाल है कि उनसे मेरा परिचय अच्छा था । जैसे विद्वत्ता इन बहनकी भूषण थी वैसे ही सादगी और नम्रता उनका भूषण थीं । उन्होंने अपने हब्शी नौकरों और अपने बीच कभी अन्तर माना ही नहीं। उनकी 'ड्रीम्स' नामकी पुस्तक जहाँ भी अंग्रेजी भाषा बोली जाती है वहाँ सर्वत्र आदरसे पढ़ी जाती है । यह पुस्तक गद्य होनेपर भी काव्यकी श्रेणीमें रखी जाती है। इसके अलावा भी उन्होंने बहुत-कुछ लिखा है । लेखनीपर इतना अधिकार होनेपर भी वे अपने घरमें अपने हाथसे भोजन बनाने, झाड़ने- बुहारने और बर्तन माँजनमें शरमाती या झिझकती नहीं थीं । वे यह मानती थीं कि इस प्रकारके उपयोगी शरीर-श्रम से उनकी लेखनी कुण्ठित नहीं बल्कि प्रखर होगी और उनकी भाषा और भावोंमें एक प्रकारकी विनम्रता और गम्भीरता आयेगी । इन बहनने भी दक्षिण आफ्रिका गोरोंपर अपना प्रभाव हिन्दुस्तानियोंके पक्षमें डालनेका यथाशक्ति उद्योग किया था ।

तीसरी बहन थीं कुमारी मॉल्टेनो । ये दक्षिण आफ्रिकाके पुराने मॉल्टेनो परि- वारकी वयोवृद्ध महिला थीं। इन्होंने भी भारतीयोंकी शक्ति-भर सहायता की थी ।

पाठक पूछेंगे कि इतने सारे गोरोंकी सहायाताका परिणाम क्या निकला ? मेरा उत्तर यह है कि मैंने यह प्रकरण परिणाम बताने के लिए नहीं लिखा। इनमें से कुछ के कामका वर्णन में कर चुका हूँ। यही उसके परिणामका साक्षी भी है । किन्तु इन हितैषी गोरोंके समस्त कार्योंका क्या परिणाम हुआ, यह प्रश्न उठ सकता है। यह लड़ाई ही ऐसी थी कि उसका परिणाम उसीमें आ जाता है । यह लड़ाई आत्माव- लम्बन, आत्म त्याग और ईश्वरपर श्रद्धाकी लड़ाई थी। इन गोरे सहायकों के नामों के उल्लेखका एक हेतु यह है कि यदि दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रह के इतिहासमें इनकी