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दक्षिण आफ्रिका सत्याग्रहका इतिहास

दी हुई सहायताकी सराहना न की जाती तो यह इस इतिहासकी त्रुटि ही होती । फिर मैंने सभी गोरे सहायकों के नाम तो दिये नहीं हैं, किन्तु जितने नाम दिये हैं उनसे इस प्रकरणमें हमारी ओरसे सभी सहायकोंके प्रति आभार व्यक्त हो जाता है । इसका दूसरा हेतु यह है कि यद्यपि हम किसी कार्य-विशेषका परिणाम स्पष्ट रूपसे नहीं देख सकते, फिर भी जो कार्य शुद्धचित्तसे किया जाता है उसका दृश्य अथवा अदृश्य शुभ परिणाम होता ही है - मैं इस सिद्धान्तके सम्बन्धमें सत्याग्रहीके रूपमें अपनी श्रद्धा प्रकट करना चाहता था। इनके अतिरिक्त इसका तीसरा सबल हेतु यह है कि सद्वृत्तियोंसे अनेक प्रकारकी शुद्ध और निःस्वार्थ सहायता सहज ही आकृष्ट होती है, मुझे यह बात बतानी थी। यदि इस प्रकरणसे यह बात अबतक समझमें न आई हो तो मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि यदि हम सत्याग्रहकी लड़ाईमें सत्यकी रक्षाको ही मुख्य प्रयास मानें तो इन गोरोंकी सहायता प्राप्तिका इसके अतिरिक्त कोई दूसरा प्रयास नहीं किया गया था । वे लोग इस लड़ाईकी ओर इसकी शक्तिसे ही आकृष्ट हुए थे ।

अध्याय २४

विशेष भीतरी कठिनाइयाँ

२२ वें प्रकरणमें हमें कुछ भीतरी कठिनाइयोंका आभास मिला। मेरे ऊपर आक्रमण होने के समय मेरे परिवारके लोग फीनिक्समें रहते थे। इस आक्रमणसे उनका चिन्तित होना स्वाभाविक था, परन्तु वे मुझे देखनेके लिए पैसा खर्च करके फीनिक्ससे जोहानिसबर्ग भागे आयें, यह सम्भव नहीं था। इसलिए ठीक होनेपर मुझे वहाँ जाना था । नेटाल और ट्रान्सवालके बीच कार्यवश मेरा आना-जाना होता ही रहता था। समझौतेको लेकर नेटालमें बहुत भ्रम फैल रहा है, यह बात भी मेरी जानकारीके बाहर नहीं थी । वहाँसे मेरे नाम और दूसरोंके नाम जो पत्र आते उनसे मैं यह बात जान गया था; 'इंडियन ओपिनियन' के नाम आये हुए आलोचनात्मक पत्रोंका ढेर भी मेरे पास पड़ा था । यद्यपि अभीतक सत्याग्रह ट्रान्सवालके हिन्दुस्तानियोंतक ही सीमित रहा था, फिर भी नेटालके हिन्दुस्तानियोंकी सहमति और सहानुभूति तो प्राप्त करनी ही थी । ट्रान्सवालके हिन्दुस्तानी ट्रान्सवालके निमित्तको लेकर समस्त दक्षिण आफ्रिकाके हिन्दुस्तानियोंकी लड़ाई लड़ रहे थे। इसलिए नेटालमें फैले हुए भ्रमको दूर करनेके लिए मेरा डर्बन जाना आवश्यक था । इस कारण में जल्दी से जल्दी अवसर मिलते ही वहाँ गया।

डर्बनमें हिन्दुस्तानियों की सार्वजनिक सभा की गई। मुझे कुछ मित्रोंने पहले ही चेता दिया था, इस सभामें आपके ऊपर आक्रमण किया जायेगा; अतः आप या तो सभामें जाना स्थगित कर दें या अपने बचावकी कोई व्यवस्था कर लें। किन्तु मैं इन दोनोंमें से कोई भी काम नहीं कर सकता था । यदि स्वामी सेवकको बुलाये और सेवक भयके कारण न जाये तो इससे उसके सेवा-धर्मका लोप होगा। यदि सेवक