पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 29.pdf/१६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१४२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

स्वामीके दण्डसे डरे तो वह सेवक कैसा ? सेवाकी खातिर लोकसेवा करना खाँडेकी धार पर चलने जैसा है। लोकसेवक स्तुति सुननेके लिए तैयार होता है तो वह निन्दा सुननसे कैसे भाग सकता है ? इसलिए मैं तो सभामें नियत समयपर पहुँच गया । समझौता कैसे हुआ, मैंने यह बात लोगों को समझाई। उन्होंने जो प्रश्न किये मैंने उनके उत्तर भी दिये। यह सभा सायंकालके समय लगभग ८ बजे हुई थी। सभाकी कार्यवाही लगभग समाप्त होनेको थी, तभी एक पठान अपना लठ लेकर मंचपर चढ़ आया। तभी बतियाँ बुझ गईं। मैं स्थितिको समझ गया । अध्यक्ष सेठ दाऊद मुहम्मद अपनी मेजपर चढ़ गये और लोगोंको समझाने लगे। मुझे बचाव करनेवाले लोगोंने घेर लिया था। स्वयं मैंने अपने बचावकी कोई कार्यवाही नहीं की थी। किन्तु मैंने बादमें देखा कि जिन्हें आक्रमण होनेका डर था वे सब तैयार होकर आये थे। उनमें से एक आदमी अपने जेबमें रिवाल्वर भी रख कर लाया था। उसने उससे एक खाली फायर भी किया। इसी दर्मियान पारसी रुस्तमजीने आक्रमणकी तैयारियाँ देखकर बिजलीकी तरह तेजीसे दौड़ लगाई और पुलिस सुपरिटेंडेंट अलेक्जेंडरको खबर दी। पुलिस सुपरिंटेंडेंटने अपने सिपाहियोंकी एक टुकड़ी भेज दी और वह इस भीड़- भाड़में से रास्ता बनाकर मुझे अपने बीचमें घर कर पारसी रुस्तमजीके घर ले गई।

दूसरे दिन सुबह पारसी रुस्तमजीने डर्बनके पठानोंको इकट्ठा किया और उनसे कहा कि उनको मुझसे जो भी शिकायतें हों वे उन्हें मेरे सम्मुख रखें। मैं उनसे मिला। मैंने उनको शान्त करनेका प्रयत्न किया, किन्तु मैं उन्हें शान्त कर सका हूँ ऐसा मुझे नहीं लगा । शकका इलाज दलीलोंसे और समझानसे नहीं हो सकता। उनके मनमें तो यह बात बैठ गई थी कि मैंने कोमके साथ दगा की है और जबतक यह मैल उनके मनमें से नहीं निकलता तबतक उन्हें समझानेका मेरा प्रयत्न बेकार था ।

मैं उसी दिन फीनिक्स गया। जिन मित्रोंने पिछली रात मेरी रक्षा की थी उन्होंने साफ-साफ कहा कि वे मुझे अकेला न छोड़ेंगे और स्वयं भी फीनिक्समें ही डेरा डालेंगे। मैंने कहा, “यदि आप मेरे इनकारकी परवाह न करके मेरे साथ चलना चाहें तो मैं आपको रोक नहीं सकता। किन्तु वहाँ तो जंगल है और यदि वहाँ रहनेवाले हम लोग आपको खाना भी न दें तो आप क्या करेंगे?" उनमें से एकन उत्तर दिया, "हमें ऐसा डर दिखानेकी जरूरत नहीं। हम अपना इन्तजाम खुद कर लेंगे। और जब हम चौकीदारी करेंगे तब हमें आपका भण्डार लूटनसे भी कौन रोकेगा ? इस तरह हास्य-विनोद करते हुए हम फीनिक्स पहुँच गये ।

इस टुकड़ीका मुखिया जेक मूडले नामका एक व्यक्ति था जो हिन्दुस्तानियोंमें प्रसिद्ध था। वह नेटालमें तमिल मां-बापके घर जन्मा था। उसने मुक्केबाजीका विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया था और उसका विश्वास था कि इस युद्धमें गोरा या काला कोई भी उसका मुकाबला नहीं कर सकता। उसके साथी भी ऐसा ही मानते थे।

दक्षिण आफ्रिकामें बहुत सालोंसे मेरी यह आदत बन गई थी कि जब वर्षा न होती तब मैं सदा बाहर खुलेमें सोता। मैं इस आदतको इस समय बदलनेको तैयार

१. ५ मार्च, १९०८ को। भाषण उपलब्ध नहीं है।