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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास
अध्याय २५'
जनरल स्मट्सका विश्वासघात (?)

पाठकोंको आन्तरिक कठिनाइयोंका कुछ आभास मिल गया। इसमें बहुत कुछ तो मुझे अपनी कहानी ही देनी पड़ी है। ऐसा करना अनिवार्य था क्योंकि सत्याग्रह सम्बन्धमें मेरी कठिनाइयाँ सत्याग्रहियोंकी कठिनाइयाँ भी बन गई थीं।

इस प्रकरणका शीर्षक देते समय मुझे लज्जाका अनुभव हुआ है और ऐसा ही अनुभव इस प्रकरणको लिखते समय भी हो रहा है; क्योंकि इसमें मनुष्यके स्वभावकी कुटिलताका दिग्दर्शन हुआ है। जनरल स्मट्स १९०८ में भी दक्षिण आफ्रिकाके योग्य- तम नेता माने जाते थे । आज भी वे संसार-भरमें नहीं तो ब्रिटिश साम्राज्य-भरमें एक उच्च प्रकारके व्यवहार कुशल मनुष्य माने जाते हैं। वे बहुत योग्य हैं इस सम्बन्धमें भी मुझे अपने मनमें कोई शंका नहीं है। वे जैसे कुशल वकील हैं वैसे ही कुशल सेनापति और राजनीतिज्ञ भी है। दक्षिण आफ्रिकामे अन्य राजनीतिश आये और चले गये; किन्तु यह मनुष्य १९०७ से लेकर अबतक दक्षिण आफ्रिकामें राज- काजकी बागडोर अपने हाथमें सँभाले है । अब भी दक्षिण आफ्रिकामें कोई दूसरा मनुष्य उनकी स्पर्धामें खड़ा नहीं रह सकता। इन पंक्तियोंको लिखते वक्त मुझे दक्षिण आफ्रिकाको छोड़े नौ वर्ष हो गये हैं। मैं नहीं जानता कि आज दक्षिण आफ्रिकाके लोग उनको क्या विशेषण देते हैं। जनरल स्मट्सका मुख्य नाम जॉन है और उन्हें दक्षिण आफ्रिकाके लोग "स्लिम जैनी " कहकर याद करते हैं । यहाँ 'स्लिम 'का अर्थ 'फिसल- नेवाला', 'पकड़में न आ सकनेवाला ' है। गुजरातीमें उससे मिलते-जुलते अर्थवाला शब्द 'खन्धो' (धूर्त) है, या नरम विशेषण बरतें तो विपरीत अर्थमें 'चालाक' है । मुझे बहुत से अंग्रेज मित्रोंने कहा था, 'आप जनरल स्मट्ससे सावधान रहें। यह बहुत घाघ आदमी है। उसे बात पलटते देर नहीं लगती। अपने कहे शब्दोंका ठीक अर्थ वही समझ सकता है। वह बहुत बार इस तरहसे बात करता है कि दोनों पक्ष उसके शब्दोंका अपने अनुकूल अर्थ निकाल सकते हैं। फिर अवसर आनेपर वह दोनों पक्षोंके अर्थको एक ओर रखकर अपना एक तीसरा ही अर्थ करता है, और उसीके अनुसार व्यवहार करता है और उसके समर्थनमें ऐसे चतुराई-भरे तर्क देता है कि एक क्षणके लिए दोनों पक्षोंको यह विश्वास हो जाता है कि भूल हमारी ही होनी चाहिए और जनरल स्मट्स जो अर्थ करता है वही ठीक है। " मुझे इस प्रकरणमें एक ऐसे ही विषयका वर्णन करना है। जब यह घटना घटी उस समय भी मैंने उसे विश्वासघात माना था और वंसा कहा था। मैं अब भी उसे कौमकी दृष्टिसे विश्वासघात मानता हूँ। फिर भी मैंने शीर्षकमें इस शब्दके बाद प्रश्नसूचक चिह्न लगाया है। इसका कारण यह है कि हो सकता है, इस कार्यमें उनकी नीयत वास्तवमें विश्वासघातकी न रही हो । यदि उसमें उनकी नीयत ऐसी न हो तो वह विश्वासघात कैसे माना जा सकता है । १९१३-१४में मुझे जनरल स्मट्सका जो अनुभव हुआ था मैंने उसे उस समय कटु नहीं माना था और आज भी जब में उसका विवेचन अधिक तटस्थतासे कर सकता हूँ, उसे कटु

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