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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं मान सकता । यह सर्वथा सम्भव है कि १९०८ में हिन्दुस्तानियोंके प्रति किया गया उनका व्यवहार जानबूझकर किया गया विश्वासघात न हो ।

मैंने यह प्रस्तावना इसलिए दी है कि मैं उनके प्रति न्याय कर सकूं और साथ ही उनके नामके साथ मैंने “विश्वासघात शब्दका जो प्रयोग किया है उसका, और "मुझे इस प्रकरणमें जो-कुछ कहना है उसका, बचाव हो सके।

हम पिछले प्रकरणमें देख चुके हैं कि हिन्दुस्तानियोंने ट्रान्सवालकी सरकारकी दृष्टिसे सन्तोषप्रद ऐच्छिक परवाने ले लिये थे । अब सरकारके लिए खूनी कानून रद करना बच रहता था। यदि वह उसे रद कर देती तो सत्याग्रहकी लड़ाई बन्द हो जाती। इसका अर्थ यह नहीं है कि ट्रान्सवालमें हिन्दुस्तानियोंके विरुद्ध जो भी कानून बने थे वे सभी रद हो जाते अथवा हिन्दुस्तानियोंके सभी कष्ट मिट जाते। इसके लिए तो उन्हें पहलेकी तरह ही कानूनी लड़ाई लड़नी थी । सत्याग्रह तो खूनी कानून रूपी नई घनघोर घटाको हटाने के लिए ही किया गया था। उसे स्वीकार करनेसे कौमकी बदनामी होती और पहले ट्रान्सवालमें से और फिर समस्त दक्षिण आफ्रिकामें से उसका अस्तित्व मिट जाता। किन्तु जनरल स्मट्सने खूनी कानूनको रद करनेके बजाय नया ही कदम उठाया। उन्होंने जो विधेयक' प्रकाशित किया उसके द्वारा खूनी कानून बहाल रखा और ऐच्छिक परवानोंको कानूनी माना। किन्तु उन्होंने उसमें एक धारा यह रखी कि इन परवाने लेनेवालोंपर खूनी कानून लागू नहीं किया जा सकता। इसका अर्थ यह हुआ कि एक ही उद्देश्यके लिए दो कानून साथ- साथ रहें और नये आनेवाले अथवा नये परवाने लेनेवाले हिन्दुस्तानी खूनी कानूनसे नियन्त्रित हों।

इस विधेयकको पढ़कर में तो किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया। मैं अब कौमको क्या जवाब दूंगा। आधी रातके समय होनेवाली उस सभामें जिन पठान भाइयोंने मुझपर तीखे आक्षेप किये थे उनको इससे कैसा अच्छा समर्थन मिला। किन्तु मुझे कहना चाहिए कि इस धक्केसे मेरा सत्याग्रहमें विश्वास दुर्बल नहीं हुआ, बल्कि पुष्ट ही हुआ। मैंने समितिकी बैठक बुलाई और उसमें सब बातें समझाईं। कुछ लोगोंने मुझे ताने भी दिये, " हम तो आपसे कहते ही आये हैं कि आप बहुत भोले हैं। कोई भी कुछ कह देता है और आप उसीपर विश्वास कर लेते हैं। यदि आप अपने निजी कामोंमें ही भोले बनें तो कोई बात नहीं किन्तु आप कौमी मामलोंमें भोलापन बरतते हैं तो उसका नुकसान कौमको उठाना पड़ता है। हमें तो पहले जैसा उत्साह अब फिर आना बहुत कठिन मालूम होता है। हमारी कीम कैसी है, क्या आप यह नहीं जानते ? यह तो सोडा-वाटरकी बोतल है। उसमें घड़ीभर उफान आता है। हमें उसीका उपयोग जितना किया जा सके उतना करना होता है। यह उफान ठंडा हो जाये तो फिर कुछ नहीं रहता।"

शब्दोंके इन बाणोंमें विष नहीं था। मैंने ऐसी तीखी बातें अन्य प्रसंगोंपर भी सुनी थीं। मैंने हँसकर उत्तर दिया, "आप जिसे मेरा भोलापन कहते हैं वह तो


१. विषेषकके पाठके लिए देखिए खण्ड ८, पृष्ठ ४४८-९।