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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

मेरे स्वभावका एक अंग है। यह भोलापन नहीं है, बल्कि विश्वास है; और विश्वास करना तो मेरा और आप सबका धर्म है। फिर यदि आप इसे दोष मानें तो भी, यदि मेरी सेवासे कुछ लाभ उठाया जा सकता है तो आपको मेरे दोषका नुकसान भी सहन करना चाहिए। आप मानते हैं कि कौमका उत्साह सोडा-वाटरके उफान जैसा है किन्तु मैं ऐसा नहीं मानता । कौममें तो मैं और आप भी हैं। यदि आप मेरे उत्साह के साथ ऐसा विशेषण लगायें तो मैं उसमें अवश्य ही अपना अपमान मानूंगा और मुझे विश्वास है कि आप स्वयंको भी अपवाद ही मानते होंगे। यदि न मानते हों और अपने ही पैमानेसे कौमको नापते हों तो आप कौमका अपमान करते हैं। ऐसी बड़ी लड़ाइयोंमें उतार-चढ़ाव तो आते ही रहते हैं। कितनी ही सफाई की हो फिर भी विरोधी पक्ष विश्वासका भंग करना चाहे तो उसे इससे कौन रोक सकता है ? इस संस्था में ऐसे बहुत से लोग हैं जो मेरे पास दावेके लिए अपने रुक्के लाते हैं। रुक्के लिखनेवाले दस्तखत करके अपने हाथ कटा देते हैं, इससे अधिक सावधानी क्या की जा सकती है ? तिसपर भी उनपर अदालतमें दावे दायर करने पड़ते हैं। वे उनके विरुद्ध खड़े होते हैं और बहुत तरहसे अपना बचाव करते हैं। डिग्रियाँ होती हैं और कुकियाँ निकाली जाती हैं। ऐसी अशोभनीय घटनाएँ फिर न हो सकें इसके लिए क्या सावधानी हो सकती है ? इसलिए मेरी सलाह तो यही है कि जो उलझन पैदा हो गई है उसे हम धीरजसे सुलझायें। हमें फिर लड़ना पड़े तो हम क्या कर सकते हैं, अर्थात् दूसरे लोग क्या करेंगे इसका विचार न करके प्रत्येक सत्याग्रहीको यही विचार करना चाहिए कि स्वयं वह क्या करेगा अथवा क्या कर सकता है। मुझे तो ऐसा लगता है कि यदि हम इतने लोग सच्चे रहें तो दूसरे भी सच्चे ही रहेंगे और यदि उनमें कोई निर्बलता आ गई होगी तो वे हमारे उदाहरणसे अपनी निर्बलताको दूर कर शक्ति प्राप्त कर सकेंगे । "

मुझे लगता है कि लड़ाई फिर छिड़ सकनेके सम्बन्धमें जिन्होंने नेक इरादेसे तानोंके रूपमें अपनी शंका प्रकट की थी उनका समाधान हो गया। इस अवसरपर काछलिया अपना जौहर हर रोज अधिकाधिक दिखा रहे थे । वे सभी मामलोंमें कमसे-कम शब्दोंमें अपना निश्चय प्रकट करते और उसपर अडिग रहते। मुझे ऐसा एक भी प्रसंग याद नहीं आता जब उन्होंने कमजोरी बताई हो अथवा अन्तिम परिणाम के सम्बन्धमें शंका प्रकट की हो । फिर वह समय निकट आ गया। जब ईसप मियाँ तूफानो समुद्रमें हमारे कर्णधार रहनेके लिए तैयार नहीं हुए, उस समय सभीने एक स्वरसे कर्णधारके रूपमें काछलियाका स्वागत किया और उस समयसे लेकर अन्तिम क्षणतक उन्होंने अपने हाथसे पतवार नहीं छोड़ी। जिन कष्टोंको शायद ही कोई आदमी सहन कर सकता, उनको उन्होंने निश्चिन्त और निर्भय होकर सहन किया। लड़ाईमें आगे चलकर ऐसा वक्त भी आया जब जेलमें जाकर बैठना आसान काम हो गया - लगभग आराम करने जैसा काम हो गया; पर बाहर रहकर सब बातोंको बारीकी से जाँचना, उनकी व्यवस्था करना और बहुतसे लोगोंको समझाना, यह सब बहुत कठिन काम बन गया।