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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

ही नहीं सकता। उन्होंने एशियाई कानूनको रद करनेकी बात कही थी, यह मुझे ठीक-ठीक याद है। मैं जो कुछ कर सकता हूँ, वह करूंगा। किन्तु आप तो जानते ही हैं कि यह आदमी जब निश्चय कर लेता है तब इसपर किसीका कोई बस नहीं चलता। वे अखबारोंके लेखोंको तो गिनते ही नहीं, इसलिए मुझे बहुत भय है कि मेरी सहायता आपके काम नहीं आ सकेगी।" मैं हॉस्केन और दूसरे लोगोंसे भी मिला। हॉस्केनने जनरल स्मट्सको पत्र लिखा। उन्हें भी बहुत ही असन्तोषजनक उत्तर मिला। मैंने "यह दगा तो नहीं है" शीर्षकसे' 'इंडियन ओपिनियन' में लेख भी लिखे; किन्तु जनरल स्मट्स उनकी भी क्या परवाह करते? आप तत्त्ववेत्ता अथवा निष्ठुर मनुष्यके सम्बन्धमें कितने ही कटु विशेषणोंका प्रयोग करें, उसपर उनका प्रभाव नहीं पड़ता। वह तो अपने मनका काम करनेमें ही जुटा रहता है। मैं नहीं जानता कि जनरल स्मट्सके सम्बन्धमें इन दोनों में से किस विशेषणका प्रयोग किया जा सकता है। उनकी वृत्तिमें एक प्रकारकी दार्शनिकता है, यह तो मुझे स्वीकार करना ही चाहिए। मुझे याद है कि जिस समय हमारा पत्र-व्यवहार चलता था और मैं अखबारोंमें लेख लिखता था उस समय मैंने उन्हें निष्ठुर ही माना था। किन्तु उस समयतक तो लड़ाईकी पहली अवस्था ही थी । वह इस लड़ाईका दूसरा वर्ष था और लड़ाई ८ वर्ष चली। मैं इस बीचमें उनसे बहुत बार मिला हूँ। हमारे बीच बादमें जो बातें हुई उनसे मुझे ऐसा लगता था कि दक्षिण आफ्रिकामें जनरल स्मट्सकी धूर्तताके सम्बन्ध में जो सामान्य मान्यता है उसमें परिवर्तन किया जाना चाहिए। मुझे दो बातें स्पष्ट दिखाई दीं कि उन्होंने अपनी राजनीतिक सम्बन्धमें कुछ सिद्धान्त बना लिये हैं और जो बिलकुल अनैतिक भी नहीं है, किन्तु इसके साथ मैंने यह भी देखा कि उनके राजनीति-शास्त्रमें चालाकीके और अवसर आनेपर सत्याभासके प्रयोगके लिए स्थान है।

अध्याय २६

लड़ाईकी पुनरावृत्ति

एक ओर जनरल स्मट्ससे समझौतेकी शर्त पूरी करनेके लिए अनुनय-विनय और दूसरी ओर कौमको फिर जाग्रत करनेका काम भी उत्साहपूर्वक किया जा रहा था। यह अनुभव किया गया कि सभी जगहोंपर लोग लड़ाईको फिर चालू करने और जेल जानेके लिए तैयार हैं। सभी जगहोंपर सभाएँ करना आरम्भ कर दिया गया था । इन सभाओंमें सरकारके साथ जो पत्र-व्यवहार चल रहा था उसके विषयमें सम- झाया जाता था। 'इंडियन ओपिनियन' में तो सप्ताहकी डायरी दी ही जाती थी, ताकि कौमको सारी स्थिति मालूम रहे । सभीको यह बात समझा दी गई थी कि ऐच्छिक परवाने निष्फल होनेवाले हैं। यदि खूनी कानून रद न किया जाये तो हमें उनको जला ही देना होगा, जिससे स्थानीय सरकार यह समझ सके कि कौम अडिग

१. देखिए खण्ड ८, पृष्ठ २४०।