पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 29.pdf/१७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और निश्चिन्त है एवं लोग जेल जाने के लिए भी तैयार हैं। इस उद्देश्यसे सभी स्थानोंसे परवाने भी इकट्ठे किये जा रहे थे ।

जिस विधेयकका उल्लेख हम पिछले प्रकरणमें कर चुके हैं सरकारने उसे पास करनेकी तैयारी शुरू की। ट्रान्सवाल विधानसभाकी बैठक हुई। कोमने वहाँ भी अर्जी' भेजी; किन्तु इसका भी परिणाम कुछ नहीं हुआ । अन्तमें सत्याग्रहियोंकी ओरसे निश्चय- पत्र (अल्टीमेटम) भेजा गया। वैसे अल्टीमेटमका अर्थ है लड़ाईके विचारसे भेजा गया निश्चयपत्र अथवा धमकीका पत्र । 'अल्टीमेटम' शब्दका प्रयोग कौमकी ओरसे नहीं किया गया था; यह नाम तो जनरल स्मट्सने विधानसभामें उस पत्रको दिया जिसे हिन्दुस्तानी कौमने अपना निश्चय बतानेके लिए भेजा था और साथ ही यह भी कहा : "जो लोग सरकारको ऐसी धमकी दे रहे हैं उन्हें सरकारकी शक्तिका अनुमान नहीं है। मुझे तो इसी बातका दुख है कि कुछ आन्दोलनशील व्यक्ति गरीब हिन्दुस्तानियोंको भड़का रहे हैं और यदि ये गरीब लोग उनके जोरपर भड़के तो वे बरबाद हो जायेंगे । " अखबारोंके संवाददाताओंने इस प्रसंगका वर्णन करते हुए लिखा था कि विधानसभाके बहुतसे सदस्य 'अल्टीमेटम' की बात सुनकर बहुत क्रुद्ध हुए, उनकी आँखें लाल हो गईं और उन्होंने जनरल स्मट्सके प्रस्तुत किये हुए विधेयकको 'सर्वसम्मति से और उत्साहपूर्वक पारित कर दिया।

उक्त 'अल्टीमेटम' में इतनी ही बात थी : "हिन्दुस्तानी कोम और जनरल स्मट्सके बीच जो समझोता हुआ था उसका स्पष्ट मुद्दा यह था कि यदि हिन्दुस्तानी ऐच्छिक परवाने ले लें तो विधानसभामें उनको कानूनसम्मत बनानेका विधेयक प्रस्तुत किया जायेगा और एशियाई कानून रद कर दिया जायेगा। यह बात स्पष्ट है कि हिन्दुस्तानी कौमने अधिकारियोंकी दृष्टिमें सन्तोषजनक रूपसे ऐच्छिक परवाने ले लिए हैं, इसलिए अब एशियाई कानून रद किया ही जाना चाहिए। कौमने इस सम्बन्धमें जनरल स्मट्ससे बहुत लिखा-पढ़ी की। उसने न्याय प्राप्तिके लिए दूसरे जो कानूनी उपाय किये जाने चाहिए, वे भी किये; किन्तु अभीतक कौमका प्रयत्न निष्फल हुआ है । विधेयक विधानसभा में पास किया ही जानेवाला है; अतः इस समय कोमकी बेचैनी और भावना सरकारको बताना नेताओंका कर्त्तव्य है । हमें खेदपूर्वक कहना पड़ता है कि यदि समझौते की शर्तके अनुसार एशियाई कानून रद नहीं किया जायेगा और इस सम्बन्धमें किये गये निर्णयकी सूचना एक निश्चित अवधिके भीतर कौमको नहीं दी जायेगी तो कौमने जो परवाने इकट्ठे किये हैं, वह उन्हें जला देगी और फलस्वरूप अपने ऊपर आनेवाले कष्टोंको वह विनयपूर्वक और दृढ़तापूर्वक सहन करेगी।

इस पत्रको 'अल्टीमेटम' माननेका एक कारण तो यह था कि उसमें उत्तरके लिए अवधि रखी गई थी। उसका दूसरा कारण गोरोंका यह सामान्य विचार था कि हिन्दुस्तानी कोम एक असभ्य कोम है । यदि गोरे हिन्दुस्तानियोंको अपनी बरा- बरीका मानते होते तो वे इस पत्रको विनयपत्र मानते और उसपर ध्यान भी देते ।

१. देखिए खण्ड ८, पृष्ठ ४४३-५ ।

२. गांधीजीका तात्पर्य सम्भवतः १४ अगस्त १९०८ को लिखे पत्रसे हैं। देखिए खण्ड ८, पृष्ठ ४४५-६ ।