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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

कार कर लेती तो मानों कौमके हाथसे परवानोंकी होली जलानेके इस शुभ कार्यको करनेका अवसर ही निकल जाता । ऐसा हर्ष उचित माना जाये अथवा अनुचित, यह निश्चय करना बहुत कठिन है। जिन लोगोंने तालियोंकी गड़गड़ाहटसे उत्तरका स्वागत किया था उसका हेतु समझे बिना उसके औचित्य अथवा अनौचित्यका निर्णय नहीं किया जा सकता। किन्तु इतना तो कहा जा सकता था कि यह हर्ष-प्रदर्शन सभाके उत्साहका एक अच्छा लक्षण था । सभा इस बातसे एक हदतक अपनी शक्तिको समझने में समर्थ हुई थी।

सभा आरम्भ हुई। अध्यक्षने सभाको सावधान किया। उन्होंने उसे सब स्थिति समझाई। सभा इस अवसरके अनुरूप प्रस्ताव पारित किये गये। जो विभिन्न स्थितियाँ हमारे सामने आई थीं मैंने उन्हें स्पष्ट करके समझाया और कहा : "जिन लोगोंने अपने परवाने जलानेके लिए दिये हैं यदि उनमें से कोई अपना परवाना वापस लेना चाहे तो ले सकता है। केवल परवाना जलाना कोई अपराध नहीं है। इतना करने भरसे जेल जानेके लिए उत्सुक लोगोंको जेल नहीं मिलेगी। परवाना जलाकर तो हम केवल अपना यह निश्चय प्रकट करते हैं कि हम खूनी कानूनके आगे नहीं झुकेंगे और हम अपने पास परवाने दिखानेका अधिकार भी नहीं रखना चाहते। किन्तु जो मनुष्य आज परवाना जलानेकी क्रिया में सम्मिलित हो वह दूसरे ही दिन जाकर नया परवाना ले तो, ऐसा करने से कोई उसका हाथ नहीं पकड़ेगा। जिसका विचार ऐसा कुकर्म करनेका हो अथवा जिसे परीक्षाके समय टिक सकनेकी अपनी शक्तिमें शंका हो, उसके लिए अब भी समय है कि वह अपना परवाना वापस ले ले; वह निस्सन्देह उसे वापस ले सकता है। इस समय परवाना वापस लेनेमें लज्जित होने का कोई कारण नहीं है। मैं तो इसे एक प्रकारका साहस ही मानूँगा। किन्तु बादमें परवानेकी नकल लेनेमें लज्जा, अपयश और कोमकी हानि है। फिर इस समय कौमको यह भी समझ लेना चाहिए कि यह लड़ाई सम्भवतः लम्बी चलेगी। हममें से कुछ लोग अपनी प्रतिज्ञासे डिग गये हैं, यह भी हम जानते हैं, अतः कौमकी गाड़ीको खींचनेके लिए जो लोग बाकी बचे हैं उन्हें उस हदतक ज्यादा जोर लगाना पड़ेगा, यह भी साफ है। इसीलिए मेरी सलाह है कि हमें इतनी बातोंका विचार करनेके बाद ही आज परवाने जलानेका साहस करना चाहिए।"

मेंरे भाषणके बीचमें ही सभामें इस तरहकी आवाजें आ रही थीं। परवाने वापस नहीं लेना चाहते; आप इनकी होली जलाएँ ।' अन्तमें मैंने कहा कि यदि किसीको प्रस्तावका विरोध करना हो तो वह खड़ा हो जाये; किन्तु कोई भी खड़ा न हुआ। इस सभामें मीर आलम भी मौजद था। उसने घोषणा की कि मुझपर हमला करके उसने गलती की थी। यह कहकर उसने अपना असल परवाना जलानेके लिए दिया। उसने ऐच्छिक परवाना तो लिया ही नहीं था। मैंने मीर आलमका हाथ पकड़ा और उसे प्रसन्नतासे दबाते हुए कहा कि मेरे मनमें तो तुम्हारे प्रति कभी रोष था ही नहीं। मीर आलमके इस कार्यसे सभामें हर्षका पार न रहा।

१. गांधीजीके भाषणके लिए देखिए खण्ड ८, पृष्ठ ४५०-५४ ।