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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

समितिके पास जलानेके लिए दो हजारसे ज्यादा परवाने आ चुके थे। उनका बंडल ऊपर बताई हुई कड़ाहीमें रखा गया, उसपर मिट्टीका तेल छिड़का गया और उसके बाद मैंने दियासलाईसे उसमें आग लगाई। सभामें बैठे सब लोग खड़े हो गये और जबतक जलानेकी यह क्रिया चली तबतक वह मैदान तालियोंसे गूंजता रहा। जो परवाने अभीतक लोगोंने अपने पास रख छोड़े थे वे भी मंचपर बरसने लगे और उक्त कड़ाही में ही डाल दिये गये। जब उन लोगोंसे यह पूछा गया कि उन्होंने अपने परवाने होली जलाने से पहले क्यों नहीं दिये तब उनमें से एकने कहा, "हमारा खयाल था कि यदि हम उन्हें होली जलते वक्त देंगे तो ज्यादा अच्छा होगा और दूसरोंपर उसका ज्यादा असर होगा।" कुछ अन्य लोगोंने शुद्ध मनसे स्वीकार किया : “हमारी हिम्मत नहीं होती थी । अन्तिम समयतक हमारा खयाल यही था कि शायद परवाने न जलाये जायें । किन्तु जब हमने होली जलती देखी तब हम अपने आपको न रोक सके। हमने सोचा, जो सबका होगा सो हमारा भी हो जायेगा।" हमें इस तरहकी मनकी शुद्धताका अनुभव इस लड़ाईके प्रसंगमें अनेक बार हुआ था ।

इस सभामें अंग्रेजी अखबारोंके संवाददाता भी आये थे। उनके ऊपर भी इस समस्त दृश्यका बहुत असर पड़ा और उन्होंने इस सभाका अपने पत्रोंके लिए बहुत सजीव वर्णन भेजा। इंग्लैंडके "डेली मेल" पत्रके जोहानिसबर्ग स्थित संवाददाताने भी अपने पत्रको इस सभाका वर्णन भेजा था। उसमें उसने परवानोंकी होलीकी तुलना बोस्टन बंदरगाहको अंग्रेजी चायको पेटियाँ समुद्र में डुबानेको उस घटनासे की थी जिसके द्वारा अमेरिकाके अंग्रेजोंने अपना इंग्लैंडकी अधीनतामें न रहनेका निश्चय व्यक्त किया था। दक्षिण आफ्रिकामें एक ओर था तेरह हजार हिन्दुस्तानियोंका असहाय समुदाय और दूसरी ओर था ट्रान्सवालका शक्तिशाली राज्य । अमेरिकामें एक ओर सब बातों में कुशल गोरे थे और दूसरी ओर ब्रिटिश साम्राज्य था । इन दोनोंकी स्थितियोंकी तुलना करके देखें तो मुझे नहीं लगता कि 'डेली मेल' के सम्वाददाताने हिन्दुस्तानियोंके सम्बन्धमें कुछ अतिशयोक्ति की थी । हिन्दुस्तानी कौमके पास सत्य और ईश्वरपर श्रद्धाके अतिरिक्त कोई दूसरा हथियार न था। इसमें कोई सन्देह नहीं कि यह हथियार श्रद्धालु मनुष्यके लिए सबसे बड़ा हथियार है, किन्तु जबतक जन-समाजमें यह दृष्टि नहीं आती तबतक १३००० निहत्थे हिन्दुस्तानी अमेरिकाके शस्त्रबलसे लैस गोरोंकी तुलनामें तुच्छ ही माने जायेंगे। किन्तु ईश्वर तो निर्बलका ही बल है; इसलिए संसारका इसे तुच्छ मानना ठीक ही है ।

१. ट्रान्सवाल लीडरमें दिये गये विवरणके अनुसार कोई १३०० पंजीयन प्रमाणपत्र और ५०० व्यापारिक परवाने जलाये गये। देखिए खण्ड ८, पृष्ठ ४५० को पादटिप्पणी २ ।

२. उपलब्ध विवरणों तथा अंग्रेजी अनुवादके अनुसार यहाँ ईसप मियाँका नाम होना चाहिए।