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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

लगाया था वे मुझे भली-भाँति जानते थे। इस कारण उनपर जैसा जनरल स्मट्सने समझा था उससे उल्टा ही असर हुआ। उन्होंने मेरा अथवा उस लड़ाईका साथ नहीं छोड़ा; इतना ही नहीं, बल्कि सहायता देनेमें और अधिक उत्साह दिखाया और बादमें तो कौमने भी यह देख लिया कि प्रवासी प्रतिबन्धक कानून सत्याग्रहमें सम्मिलित न किया जाता तो हमें भारी मुसीवतका सामना करना पड़ जाता ।

मैंने अपने अनुभवसे यह सीखा है कि वह नियम, जिसे मैं विकासका नियम कहता हूँ, प्रत्येक शुद्ध लड़ाईपर लागू होता है। किन्तु मैं उसे सत्याग्रहके सम्बन्ध में सिद्धान्त-रूप ही मानता हूँ। जैसे गंगा नदो ज्यों-ज्यों आगे बढ़ती है त्यों-त्यों उसमें बहुतसी नदियाँ आकर मिलती जाती हैं और मुहानेतक पहुँचने-पहुँचते उसका पाट इतना चौड़ा हो जाता है कि दायें-बायें जिधर भी देखें किनारा दिखाई ही नहीं दे सकता और पोतमें बैठे यात्रीको विस्तारकी दृष्टिसे समुद्रमें और उसमें कोई अन्तर नहीं जान पड़ता, वैसे ही सत्याग्रहकी लड़ाई ज्यों-ज्यों आगे बढ़ती है त्यों-त्यों उसमें बहुत-सी दूसरी चीजें आकर मिलती जाती हैं और उससे उत्पन्न परिणाम में भी विकास होता जाता है। सत्याग्रहका यह परिणाम अनिवार्य है, मैं ऐसा मानता हूँ । इसका कारण उसके मूल तत्वमें ही मौजूद है, क्योंकि सत्याग्रहमें कमसे-कम ही अधिक- से अधिक होता है, अर्थात् उस कमसे-कममें से कुछ घटानेकी कोई गुंजाइश तो होती ही नहीं है; इसलिए उससे पीछे नहीं हटा जा सकता और विकासकी क्रिया ही उसके लिए स्वाभाविक हो सकती है। दूसरी लड़ाइयाँ शुद्ध हों तो भी उनमें माँगमें कमी करनेकी गुंजाइश पहलेसे ही रख ली जाती है। इसीसे मैंने उनमें विकासका नियम निरपवाद-रूपसे लागू होने में शंका प्रकट की है। अब मुझे यह बात समझानी रहती है कि जब कमसे-कम ही अधिकसे-अधिक भी है तब विकासका नियम कैसे लागू हो सकता है। जैसे गंगा नदी विकासकी खोजमें अपनी गति नहीं छोड़ती वैसे ही सत्याग्रही भी तलवारकी धार-जैसा अपना मार्ग नहीं छोड़ता। किन्तु जैसे गंगा नदीका प्रवाह ज्यों-ज्यों आगे बढ़ता जाता है त्यों-त्यों दूसरे नदी-नालोंको अपने भीतर समेटता जाता है, वैसी ही बात सत्याग्रहकी गंगाके सम्बन्धमें भी कही जा सकती है।

प्रवासी प्रतिबन्धक कानूनको सत्याग्रहमें सम्मिलित करनेके बाद उसको ध्यानमें रखते हुए सत्याग्रह के सिद्धान्त से अनभिज्ञ हिन्दुस्तानियोंने आग्रह किया कि ट्रान्सवालके हिन्दुस्तानियोंके विरुद्ध जितने भी कानून हैं वे सब भी सत्याग्रहमें सम्मिलित किये जायें। कुछ लोगोंने यह भी कहा कि इस लड़ाईके चालू रहते इसमें नेटाल, केप कालोनी और ऑरेंज फ्री स्टेट आदि सभी उपनिवेशोंके हिन्दुस्तानियों को निमन्त्रित किया जाये और दक्षिण आफ्रिकाके हिन्दुस्तानियोंके विरुद्ध बनाये गये प्रत्येक कानूनके विरुद्ध सत्याग्रह किया जाये। इन दोनों बातोंसे सिद्धान्तका भंग होता था। मैंने उनको साफ-साफ बताया कि हमने जो स्थिति सत्याग्रह आरम्भ करते समय स्वीकार नहीं की थी यदि हम उसे अनुकूल अवसर देखकर इस समय स्वीकार करें तो यह अप्रामाणिक होगा । हमारी शक्ति चाहे कितनी ही हो तो भी जिन मांगोंको लेकर सत्याग्रह किया गया है, उन मांगोंके स्वीकार हो जानेपर वह बन्द किया ही जाना चाहिए।