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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यदि हम इस सिद्धान्तपर दृढ़ न रहते तो मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि हमें जीतके बजाय हार ही मिलती; इतना ही नहीं बल्कि हमें जो सहानुभूति मिल सकी, हम उसे भी खो बैठते। इसके विपरीत जब सत्याग्रहके चालू रहते प्रतिपक्षी स्वयं ही नई कठिनाइयाँ उत्पन्न करता है तो वे अनायास ही सत्याग्रहमें सम्मिलित हो जाती हैं । सत्याग्रही अपनी दिशामें आगे बढ़ता हुआ मार्गमें आनेवाली चीजोंकी उपेक्षा सत्याग्रह- को छोड़े बिना कर ही नहीं सकता। और प्रतिपक्षी तो सत्याग्रही होता ही नहीं, क्योंकि सत्याग्रहके विरुद्ध सत्याग्रह असम्भव ही होता है; इसलिए वह कम या अधिकके बन्धनसे भी नहीं बँधा होता। वह कोई भी नई बात उठाकर सत्याग्रहीको डराना चाहे तो डरा सकता है। किन्तु सत्याग्रही तो भयमुक्त हो जाता है; इसलिए प्रति- पक्षी नई कठिनाइयां खड़ी करता है तो वह उनके विरुद्ध भी अपने इसी मन्त्रका उच्चारण करता है और यह विश्वास रखता है कि बीचमें आनेवाली सभी कठिना- इयोंके विरुद्ध उसके इस मन्त्रका उच्चारण फलदायी होगा। इसलिए सत्याग्रह ज्यों-ज्यों लम्बा होता है - अर्थात् उसे प्रतिपक्षी ज्यों-ज्यों लम्बा करता है, त्यों-त्यों प्रतिपक्षीको अपनी दृष्टिसे हानि ही उठानी पड़ती है और सत्याग्रहीका अधिकाधिक लाभ ही होता है। इस नियम के अन्तर्गत दूसरे उदाहरण हम इस लड़ाईके इतिहास में ही देखेंगे।

अध्याय २९

सोराबजी शापुरजी अडाजानिया

अब जब प्रवासी प्रतिबन्धक कानून भी इस लड़ाईमें सम्मिलित कर लिया गया तब नये शिक्षित प्रवासियोंको यहाँ लानेके अधिकारकी परीक्षा करना भी सत्याग्रहियोंके लिए जरूरी हो गया। समितिने निश्चय किया कि यह परीक्षा किसी सामान्य हिन्दु- स्तानीके मार्फत न कराई जाये। यह सोचा गया कि प्रवासी प्रतिबन्धक कानूनमें प्रतिबन्ध- की ऐसी शर्तोंको, जिनसे हमारा विरोध नहीं था, पूरा कर सकनेवाला मनुष्य ट्रान्स- वालमें लाकर जेल-महलमें बिठा दिया जाये । हमें सिद्ध यह करना था कि सत्याग्रह मर्यादा धर्म है। इस कानूनकी एक धारामें नये प्रवासी के लिए यूरोपकी कोई भी एक भाषा जाननेकी शर्त थी। इसलिए समितिने सोचा कि यहाँ कोई ऐसा हिन्दुस्तानी प्रवासी . लाया जाये जिसे अंग्रेजी आती हो; किन्तु जो पहले ट्रान्सवालमें न रहा हो। इसके लिए कुछ हिन्दुस्तानी नवयुवकोंने अपने नाम प्रस्तावित किये, किन्तु उनमें से इस अधिकारको परीक्षाके लिए सोराबजी शापुरजी अडाजानियाके नामका ही प्रस्ताव स्वीकार किया गया ।

पाठक नामसे ही देख सकते हैं कि सोराबजी पारसी थे। समस्त दक्षिण आफ्रिकामें पारसियोंकी संख्या १०० से अधिक न होगी। पारसियोंके सम्बन्धमें मैंने जो मत हिन्दुस्तानमें व्यक्त किया है, उनके बारेमें मेरा वही मत दक्षिण आफ्रिकामें भी बना था। दुनिया भरमें पारसी एक लाखसे अधिक न होंगे। इतनी छोटी जाति अपनी प्रतिष्ठाकी रक्षा कर रही है, अपने धर्मपर आरूढ़ है और दानशीलतामें दुनियाकी