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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करनेवालोंमें ये भी थे और उसमें अन्ततक बने रहे। उस दलको भी सत्याग्रह करना पड़ा था। उसमें बहुत से लोगोंने हार मान ली थी; किन्तु जो लोग अडिग रहे उनमें सबसे पहला स्थान सोराबजीका ही था। मैं यहाँ यह भी कह दूं कि सत्याग्रहमें इस दलकी जीत ही हुई थी ।

सोराबजी बैरिस्टरी पास करके जोहानिसबर्ग आये। वहाँ उन्होंने समाज-सेवा और वकालत दोनों शुरू की। मेरे पास दक्षिण आफ्रिकासे जितने पत्र आते उन सबमें सभी उनकी प्रशंसा ही करते थे : "वे पहले जैसे सादे थे अब भी वैसे ही सादे हैं। उनमें आडम्बर बिलकुल भी नहीं है। वे छोटे बड़े सभीसे मिलते-जुलते हैं । " किन्तु लगता है कि ईश्वर जितना दयालु है उतना ही निर्दयी भी है। सोराबजीको तीव्र क्षय हो गया और वे कुछ ही महीनेमें कौमका नया प्रेम प्राप्त करके उसको रोता हुआ छोड़कर चल बसे । इस प्रकार ईश्वरने कुछ ही समयमें कौमसे दो नररत्न छीन लिए- -एक काछलिया और दूसरे सोराबजी। यदि मुझे इन दोनोंमें से चुनाव करना पड़े कि पहला स्थान किसे दूं, तो मैं कर नहीं सकूँगा। दोनों ही अपने-अपने क्षेत्रमें बेजोड़ थे। जैसे काछलिया जितने पक्के मुसलमान थे उतने ही पक्के हिन्दुस्तानी थे, वैसे ही सोराबजी भी जितने पक्के पारसी थे उतने ही पक्के हिन्दुस्तानी थे।

योजनानुसार सोराबजी ही पहलेसे सरकारको नोटिस देकर कानूनके अन्तर्गत अपने अधिकारकी परीक्षा करनेके लिए ट्रान्सवालमें प्रविष्ट हुए। सरकार इस कदमके लिए बिलकुल तैयार न थी। इसलिए सोराबजीका क्या किया जाये, वह इस सम्ब- न्धमें तुरन्त निश्चय न कर सकी। सोराबजी खुल्लमखुल्ला सरहद पार करके ट्रान्सवालमें घुसे। परवाने देखनेवाला सरहदी अधिकारी उनको जानता था । सोराबजीने उससे कहा : “मैं अपने अधिकारकी परीक्षा करने के लिए समझ-बूझकर ट्रान्सवालमें जा रहा हूँ। आप मेरी अंग्रेजीकी परीक्षा लेनी चाहें तो ले लें और मुझे गिरफ्तार करना चाहें तो गिरफ्तार कर लें।" अधिकारीने उत्तर दिया : आप अंग्रेजी जानते हैं इसका मुझे पता है, इसलिए मुझे परीक्षा तो लेनी ही नहीं है। आपको गिरफ्तार करनेका मुझे हुक्म नहीं मिला है। इसलिए आप खुशीसे जायें। आप जहाँ जायेंगे वहाँ सरकार आपको गिरफ्तार करना चाहेगी तो कर लेगी। "

इस प्रकार सोराबजी आशाके विपरीत जोहानिसबर्ग पहुँच गये। हम सबने अत्यन्त प्रसन्न होकर उनका स्वागत किया। किसीको यह आशा नहीं थी कि सरकार उनको ट्रान्सवालके सरहदी स्टेशन फोक्सरस्टसे तनिक भी आगे बढ़ने देगी। बहुत बार ऐसा होता है कि जब हम विचार करके और निर्भय होकर तत्काल कोई कदम उठाते हैं तब सरकार पहलेसे उसका मुकाबला करनेके लिए तैयार नहीं होती। सभी सर कारोंका ऐसा स्वभाव माना जा सकता है। सामान्य आन्दोलनोंमें सरकारका कोई भी अधिकारी अपने विभागका काम इतने मनसे नहीं करता कि वह अपने प्रत्येक कार्यका विचार करके उसकी आवश्यक व्यवस्था और तैयारी पहलेसे ही कर ले ।

१. विस्तृत विवरणके लिए देखिए खण्ड १२ 'पृष्ठ ५२८-३७ और ५३९ ।

२. २४ जून, १९०८ को; देखिए खण्ड ८, पृष्ठ ३१० ।