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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

फिर उसके पास एक ही काम नहीं होता, बल्कि बहुतसे काम होते हैं, अतः उनमें उसका ध्यान बँट जाता है। इसके अतिरिक्त उसमें सत्ताका मद होता है, अतः वह उसके कारण निश्चिन्त रहता है। और यह विश्वास कर लेता है कि किसी भी आन्दोलनको दवा देना अधिकारियोंके लिए बायें हाथका खेल है। इसके विपरीत यदि आन्दोलनकारी अपने ध्येयको जानता हो, साधनको जानता हो और उसकी योजना सुनिश्चित हो तो वह पूरी तरह तैयार होता है। फिर उसे रात-दिन एक ही कामकी चिन्ता करनी होती है, इसलिए यदि वह दृढ़तासे सच्ची कार्यवाही कर सकता है तो सरकारसे सदा आगे ही आगे रहता है। बहुत से आन्दोलनोंके असफल होनेका कारण सरकारका असाधारण बल नहीं होता, बल्कि संचालकोंमें ऊपर बताये हुए गुणोंका अभाव होता है ।

सारांश यह है कि सरकारकी उपेक्षाके कारण अथवा हमारी सुविचारित योजनाके कारण सोराबजी जोहानिसबर्गतक पहुँच सके। इस तरहके मामलेमें एक अधिकारीका क्या कर्त्तव्य होता है, स्थानीय अधिकारीको इसका कोई खयाल न तो स्वयं था और न उसे इस सम्बन्धमें अपने उच्च अधिकारीका कोई निर्देश ही मिला था । सोराबजीके इस तरह आने से कौमका उत्साह बहुत बढ़ा और कुछ युवकोंको तो यह भी लगा कि अब सरकार हार गई और कुछ समयमें ही समझौता कर लेगी। किन्तु ऐसी कोई बात न थी। इन युवकोंने यह बात तुरन्त ही सिद्ध होती देखी। इतना ही नहीं, बल्कि उन्होंने यह भी देखा कि समझौतेसे पहले तो शायद बहुतसे युवकोंको अपना बलिदान देना होगा ।

सोराबजीने जोहानिसबर्गके पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्टको यह सूचना दी, "मैं यहाँ आ गया हूँ। मैं प्रवासी प्रतिबन्धक कानूनके अनुसार ट्रान्सवालमें रहना अपना अधिकार मानता हूँ। मुझे अंग्रेजी भाषाका सामान्य ज्ञान है और यदि अधिकारी मेरी परीक्षा लेना चाहें तो मैं उसके लिए तैयार हूँ।" उन्हें अपने इस पत्रका कोई उत्तर नहीं मिला अथवा यह कहें कि इसके उत्तरमें उन्हें कुछ दिन बाद अदालतमें जानेका समन मिला ।

सोराबजीका मुकदमा ८ जुलाई १९०८ को पेश हुआ। अदालत हिन्दुस्तानी दर्शकोंसे ठसाठस भर गई। मुकदमा शुरू होने से पहले अदालतके अहातेमें आये हुए हिन्दुस्तानियोंको इकट्ठा करके उनकी एक तात्कालिक सभा की गई। उसमें सोराबजीने एक ओजस्वी भाषण देते हुए प्रतिज्ञा की कि जबतक जीत नहीं मिलती तबतक जितनी बार जेल जाना पड़ेगा में उतनी बार जेल जानेके लिए तैयार रहूँगा और चाहे कितने ही कष्ट आयें मैं उनको सहन करूंगा।" अरसा लम्बा बीत चुका था; मैंने इस बीच सोराबजीको भली-भाँति पहचान लिया था और मैं समझ गया था कि सोराबजी अवश्य ही शुद्ध रत्न सिद्ध होंगे। मुकदमेकी कार्रवाई शुरू हुई। मैं वकीलके रूपमें खड़ा हुआ । सोराबजीके समनमें कुछ दोष थे। मैंने उनके आधारपर उसको रद करनेकी मांग की। सरकारी वकीलने अपना तर्क

१. मुकदमेंके विस्तृत विवरणके लिए देखिए खण्ड ८, पृ४ ३३७-४०