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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दिया; किन्तु अदालतने मेरा तर्क स्वीकार करके समनको रद कर दिया। इसके तत्काल बाद ही उन्हें निर्देश दिया गया कि वे अगले दिन अर्थात् शुक्रवार १० जुलाई, १९०८ को अदालतमें हाजिर हों ।

मजिस्ट्रेटने १० जुलाईको सोराबजीको सात दिनके भीतर ट्रान्सवालसे चले जानेकी आज्ञा दी । अदालतकी आज्ञा सुननेके बाद सोराबजीने पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट जे० ए० जी० वरनॉनको सूचित किया कि मैं ट्रान्सवालसे जाना नहीं चाहता। इसलिए वे २० जुलाईको फिर अदालत में पेश किये गये और उन्हें मजिस्ट्रेटकी आज्ञा न मानने का जुर्म लगाकर एक महीने की कड़ी कैदकी सजा दी गई।'

किन्तु सरकारने स्थानीय हिन्दुस्तानियोंको गिरफ्तार नहीं किया । उसने देखा कि वह जितनी ज्यादा गिरफ्तारियाँ करती है, हिन्दुस्तानियोंका उत्साह उतना ही ज्यादा बढ़ता है । फिर कुछ मामलों में कानूनी बारीकियोंके कारण हिन्दुस्तानियोंको छोड़ भी दिया जाता था । उनका उत्साह इससे भी बढ़ता । सरकारको जो कानून बनाने थे वे सब बनाये जा चुके थे । बहुत-से हिन्दुस्तानियोंने अपने परवाने जला अवश्य दिये थे, किन्तु वे परवाने लेकर अपना ट्रान्सवालमें रहनेका अधिकार तो सिद्ध कर ही चुके थे । इसलिए सरकारने केवल जेलमें भेजने के खयालसे उनपर मुकदमे चलानेमें कोई फायदा नहीं देखा और यह सोचा कि यदि वह चुप रहेगी तो आन्दोलनकारी आन्दोलन- का कोई द्वार खुला न रहनेपर अपने आप ठंडे पड़ जायेंगे। किन्तु सरकारका यह अनुमान ठीक नहीं था । कौमने सरकारकी खामोशीको तोड़नेके लिए ऐसा नया कदम उठाया कि वह उससे खामोश न रह सकी। आखिरकार सोराबजीपर पुनः मुकदमा दायर कर दिया गया ।

अध्याय ३०

सेठ दाऊद मुहम्मद आदिका लड़ाईमें भाग लेना

जब कौमने देखा कि सरकार कोई कदम न उठाकर कौमको थका देना चाहती है तब उसके लिए दूसरा कदम उठाना जरूरी हो गया। जबतक सत्याग्रहीमें कष्ट सहनका सामर्थ्य रहता है तबतक वह हार नहीं मानता। इसलिए कौम सरकारके इस अनुमानको गलत सिद्ध करनेमें समर्थ हुई ।

नेटालमें ऐसे बहुत-से हिन्दुस्तानी रहते थे जो ट्रान्सवालमें बहुत पहलेसे रहने के अधिकारी थे । उन्हें ट्रान्सवालमें व्यापार करनेके लिए आने की जरूरत नहीं थी; किन्तु

१. इसके बादकी एक पंक्ति और एक अनुच्छेद अंग्रेजीसे अनूदित हैं। मूल गुजराती में यहाँ ये वाक्य भी हैं :

कमकी खुशीका ठिकाना न रहा। खुशी मनानेका पर्याप्त कारण भी था, ऐसा कह सकते हैं। दूसरा समन जारी कर फिर सोराबजीपर मुकदमा चलाने की हिम्मत सरकार कैसे करती ? और उसने हिम्मत न की । तब सोराबजी सार्वजनिक कार्य में जुट गये। पर सदाके लिए छुटकारा नहीं हुआ।

२. देखिए खण्ड ८, पृष्ठ ३४७५१ ।

३. देखिए खण्ड ८, पृष्ठ ३७०-७१ ।

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