पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 29.pdf/१९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१६५
दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

कौमकी मान्यता थी कि उन्हें वहाँ आनेका अधिकार है। फिर उनको थोड़ा-बहुत अंग्रेजी- का ज्ञान भी था । इसके अतिरिक्त सोराबजीके बराबर पढ़े हुए हिन्दुस्तानियोंके वहाँ आनेसे तो सत्याग्रहका नियमभंग होता ही नहीं था। इसलिए दो प्रकारके हिन्दुस्तानियों- को प्रविष्ट करानेका निश्चय किया गया, एक वे जो पहले ट्रान्सवालमें रह चुके थे और दूसरे वे जिन्होंने अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त की थी अर्थात् जो 'शिक्षित' माने जाते थे ।

सेठ दाऊद मुहम्मद और पारसी रुस्तमजी ये दोनों बड़े-बड़े व्यापारियोंमें से और सुरेन्द्रराय मेढ़, प्रागजी खण्डूभाई देसाई, हरिलाल गांधी और रतनसी सोढा आदि शिक्षितोंमें से थे। सेठ दाऊद मुहम्मद अपनी पत्नीकी भारी बीमारीके बावजूद ट्रान्सवालमें प्रविष्ट हुए थे।

मैं सेठ दाऊद मुहम्मदका यहाँ परिचय दे दूं। वे नेटाल भारतीय कांग्रेसके अध्यक्ष थे। वे दक्षिण आफ्रिकामें आये हुए सबसे पुराने हिन्दुस्तानी व्यापारियोंमें से थे। वे सूरतकी सुन्नी जमातके बोहरा थे। मैंने दक्षिण आफ्रिकामें उनके समान चतुर हिन्दुस्तानी कम ही देखे हैं। उनकी समझनेकी शक्ति बहुत अच्छी थी। उनका अक्षर- ज्ञान कम था; किन्तु उन्होंने अनुभवसे अंग्रेजी और डच बोलना अच्छा सीख लिया था। वे अंग्रेज व्यापारियोंके साथ अपना काम-काज भली-भाँति चला लेते थे। उनकी उदारता प्रसिद्ध थी। उनके घर हर दिन लगभग ५० मेहमान तो खाना खाते ही थे। कौमके लिए किये गये चन्दोंमें उनका नाम अग्रणी लोगोंमें होता था। उनका एक अमूल्य पुत्र रत्न था । वह चरित्रमें उनसे बहुत ऊँचा था। उसका हृदय स्फटिक मणिके समान था। सेठ दाऊदने अपने पुत्रके चारित्रिक विकासमें कभी विघ्न नहीं डाला। यदि यह कहें कि सेठ दाऊद अपने पुत्रकी पूजा करते थे तो अत्युक्ति न होगी। वे चाहते थे कि उनका कोई भी दोष उनके पुत्रमें न आये। उन्होंने उसे इंग्लैंड भेजकर अच्छी शिक्षा दिलाई थी। किन्तु उन्होंने उसे जब वह जवान ही था तभी खो दिया। हुसैनको क्षय-रोगने घेर लिया और उसका प्राणान्त उसीमें हो गया। उनका यह जरू कभी नहीं भरा । हिन्दुस्तानी कौमको हुसैनसे बड़ी-बड़ी आशाएँ थीं। वे उसकी मृत्युके साथ समाप्त हो गईं। हुसैनके लिए हिन्दू और मुसलमान दाईं और बाईं आँख- जैसे थे। उसमें उत्कट सत्यनिष्ठा थी । आज तो दाऊद सेठ भी नहीं रहे। काल किसीको नहीं छोड़ता ।

पारसी रुस्तमजीका परिचय में दे चुका हूँ। पाठक शिक्षित लोगोंमें से बहुतोंको जानते हैं। मैं जब यह प्रकरण लिख रहा हूँ, मेरे पास कोई सहायक साहित्य नहीं है। इस कारण कुछ नाम छूट गये होंगे। इसके लिए जिन भाइयों के नाम छूटे हों वे मुझे क्षमा करें। ये प्रकरण नाम अमर करनेके लिए नहीं लिखे जा रहे हैं, बल्कि सत्याग्रहका मर्म समझाने और यह बतानेके लिए लिखे जा रहे हैं कि हमारी जीत कैसे हुई, सत्याग्रहमें कैसे-कैसे विघ्न आये और वे किस तरह दूर किये जा सके। मैंने जहाँ-कहीं भी नामोंका और नामधारियोंका परिचय दिया है वहाँ मेरा हेतु यही है कि पाठक यह जान जायें कि दक्षिण आफ्रिका निरक्षर समझे जानेवाले लोगोंने भी

१. यह वाक्य अंग्रेजी अनुवादसे लिया गया है।