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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

१६६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय कैसा पराक्रम किया था और वहाँ हिन्दू, मुसलमान, पारसी और ईसाई आदि किस प्रकार एक हो सके थे और व्यापारियों और शिक्षितोंने अपना कर्त्तव्य किस प्रकार पूरा किया था। मैंने जहाँ गुणीका परिचय दिया है, वहां वस्तुतः उस व्यक्तिकी स्तुति नहीं की है, बल्कि उसके गुणोंकी ही स्तुति की है ।

इस प्रकार जब दाऊद सेठ अपनी सत्याग्रही सेना लेकर ट्रान्सवालकी सीमापर पहुँचे तब सरकार तैयार थी । वह इतने बड़े दलको ट्रान्सवालमें प्रवेश करने देती तो उसकी हँसी होती; इसलिए उसके सम्मुख एकमात्र मार्ग उनको गिरफ्तार करना ही था । अतः वे लोग गिरफ्तार कर लिये गये और १८ अगस्त १९०८ को मजिस्ट्रेटके सामने पेश किये गये। उसने उन्हें सात दिन के भीतर ट्रान्सवालसे चले जानेकी आज्ञा दी। उन्होंने इस आज्ञाका उल्लंघन किया, अतः वे २८ अगस्तको प्रिटोरियामें फिर गिरफ्तार कर लिए गये और बिना मुकदमा चलाये निर्वासित कर दिये गये । ३१ अगस्तको वे फिर ट्रान्सवालमें आ गये और अन्ततः ८ सितम्बरको उन्हें फोक्सरस्टमें ५० पौंड जुर्मानेकी अथवा ३ महीनेकी कड़ी कैदकी सजा सुनाई गई। यह कहनेकी जरूरत नहीं कि उन्होंने खुशी-खुशी जेल जाना स्वीकार किया।

इससे ट्रान्सवालके भारतीयोंका उत्साह बहुत बढ़ा। वे यह सोचकर जेल जानेका मार्ग ढूंढ़ने लगे कि ट्रान्सवालके हिन्दुस्तानी नेटालसे सहायतार्थ आये हुए हिन्दुस्तानियों- को छुड़ा नहीं सकते तो आखिर उनका साथ तो दें। उनके सम्मुख गिरफ्तार होनेके कई रास्ते थे। यदि कोई अधिवासी अपना परवाना न दिखाता तो उसे व्यापारका परवाना नहीं मिलता। यदि वह व्यापारके परवाने के बिना व्यापार करता तो वह अप- राध माना जाता। नेटालसे ट्रान्सवालकी सीमामें आना होता तो परवाना दिखाना जरूरी था। उसे न दिखानेपर भी गिरफ्तारी होती । परवाने जलाये जा चुके थे। इसलिए रास्ता साफ था। उन्होंने इन दोनों रास्तोंको अख्तियार किया। कुछ बिना परवाने फेरी करके गिरफ्तार होने लगे और कुछ सरहद पार करनेपर परवाना दिखानेसे इनकार करके ।

कहा जा सकता है कि लड़ाईका रंग अब जम गया। सभीकी परीक्षा हो रही थी । नेटालसे दूसरे लोग आये । जोहानिसबर्गमें भी धर-पकड़ शुरू हुई। स्थिति ऐसी हो गई थी कि जो चाहता वह गिरफ्तार हो सकता था । जेलें भरी जाने लगीं।

तब क्या सोराबजी आजाद रह सकते थे ? वे भी गिरफ्तार कर लिए गये ! जो लोग नेटालसे आये उन सभीको तीन-तीन महीनेकी कैद मिली और जो ट्रान्सवालमें फेरी करके गिरफ्तार हुए उन्हें ४ दिनसे लेकर ३ महीनेतक की ।

जो लोग इस तरह गिरफ्तार हुए उनमें इमाम साहब अब्दुल कादिर बावजीर भी थे। वे बिना परवाने फेरी करके गिरफ्तार हुए थे। और उन्हें २१ जुलाई १९०८ को चार दिनकी कड़ी कैदकी सजा दी गई थी। उनका शरीर इतना दुर्बल था कि लोग उनके गिरफ्तार होनेपर हँसे । कुछ लोगोंने मुझसे आकर कहा, 'भाई, इमाम

१. इसके बादका अनुच्छेद अंग्रेजीसे अनूदित है।

२. देखिए खण्ड ९, पृष्ठ १२-१३ ।