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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

साहबको न लें तो अच्छा हो । वे कीमको लजायेंगे।' मैंने इस चेतावनीकी परवाह नहीं की। इमाम साहबकी शक्तिको आँकनेवाला मैं कौन था ? इमाम साहब कभी नंगे पैर न चलते थे और शौकीन आदमी थे। उन्होंने एक मलायी स्त्रीसे ब्याह किया था। वे अपना घर बहुत सजा-बजा रखते थे और बग्धीके बिना कहीं नहीं जाते थे । यह सब सच था, किन्तु उनके मनकी बात कौन जानता था ! यही इमाम साहब चार दिनकी कैद काटकर आये और फिर जेल गये। वे वहाँ आदर्श कैदीके रूपमें रहे। उन्होंने वहाँ सदा मशक्कत करके खाना खाया और जो मनुष्य नित्य नये-नये खानोंका आदी था उसने वह आदत छोड़कर मक्कीके आटेकी पतली लपसी पीकर ईश्वरका धन्यवाद माना । अवश्य ही उन्होंने हिम्मत नहीं हारी; बल्कि सादगी अख्तियार की । उन्होंने कैदीके रूपमें पत्थर तोड़े, झाड़ लगाई और दूसरे कैदियोंके साथ कवायदकी कतारमें खड़े हुए। अन्तमें फीनिक्समें उन्होंने पानी भरा और छापेखानेमें अक्षर भी जोड़े। फीनिक्स आश्रम में रहनेवाले लोगोंके लिए कम्पोजकी कला सीखना जरूरी था । अतः इमाम साहबने अपना कर्त्तव्य-कर्म यथासम्भव सीख लिया था। इस समय वे हिन्दुस्तान में अपना हिस्सा अदा कर रहे हैं ।

किन्तु जो लोग जेलमें जाकर शुद्ध हुए ऐसे तो बहुतसे लोग हैं।

जोजेफ रायप्पन बैरिस्टर और केम्ब्रिज विश्वविद्यालयके स्नातक थे। वे नेटालमें गिरमिटिया माँ-बापके घर जन्म लेकर भी पूरे साहब बन गये थे। वे तो घरमें भी बिना बूट पहने नहीं चलते थे । इमाम साहबके लिए वजू करते वक्त पैर धोना और नमाज नंगे पैर पढ़ना लाजिमी था । बेचारे रायप्पन तो इतना भी नहीं करते थे। वे अपनी बैरिस्टरी छोड़कर और बगलमें साग-सब्जीकी छाबड़ी लेकर फेरी करके गिर- फ्तार हुए। उन्होंने भी जेल काटी। रायप्पनने मुझसे पूछा कि क्या मैं तीसरे दर्जेमें यात्रा करूँ ? मैंने उन्हें उत्तर दिया, "यदि आप पहले या दूसरे दर्जेमें यात्रा करेंगे तो फिर मैं तीसरे दर्जेमें यात्रा करनेके लिए किसे कहूँगा ? जेलमें कौन जानेगा कि आप बैरिस्टर है ? " जोजेफ रायप्पनके लिए इतना उत्तर पर्याप्त था। वे भी जेल गये ।

जेलमें सोलह वर्षसे कम आयुके भी कई तरुण गये थे । मोहनलाल मानजी घेलानी नामका एक लड़का तो चौदह वर्षका ही था । '

अधिकारियोने जेलमें हिन्दुस्तानियोंको कष्ट देनेमें कोई कमी नहीं रखी । उन्होंने उनसे टट्टियाँ साफ करवाई; हिन्दुस्तानी कैदियोंने हँसी-खुशी वे भी साफ की। उन्होंने उनसे पत्थर तुड़वाये । इन कैदियोंने अल्लाह या रामका नाम लेकर पत्थर भी तोड़े। वहाँ उनसे तालाब खुदवाये गये और पथरीली मिट्टी खुदवाई गई। इससे उनके हाथोंमें घट्ठे पड़ गये और किसी-किसीको असह्य कष्टके कारण मूर्छा भी आ गई; किन्तु उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।

कोई यह न समझे कि जेलमें आपसी झगड़े नहीं होते थे अथवा एक दूसरेसे ईर्ष्या-द्वेष नहीं था । ज्यादा झगड़े तो भोजनके सम्बन्धमें होते हैं; किन्तु हमने उनसे भी मुक्ति प्राप्त कर ली थी ।

१. यह एक वाक्य अंग्रेजो अनुवादसे लिया गया है।