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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं भी दूसरी बार जेल गया था । फोक्सरस्टकी जेलमें एक बार हम लगभग ७५ कैदी इकट्ठे हो गये थे। हमने अपना भोजन बनानेका काम अपने हाथमें ले लिया। झगड़ोंका निपटारा तो मेरे हाथसे ही हो सकता था। इसलिए रसोइया में ही बना । लोग प्रेमके कारण मेरे हाथकी बनी कच्ची-पक्की, बिना खाँड डाली लपसी भी पी लेते ।

सरकारने सोचा कि यदि में अलग कर दिया जाऊँ तो उससे मुझे भी कुछ कष्ट होगा और कैदी भी पस्त-हिम्मत होंगे। इससे अच्छा अवसर उसे नहीं मिलता। इसलिए वह मुझे प्रिटोरिया ले गई। वहाँ खतरनाक कैदियोंके लिए तनहाईकी कोठ- रियाँ थीं। मैं एक ऐसी ही कोठरीमें बन्द कर दिया गया। मैं उसमें से कसरत करनेके लिए केवल दो बार बाहर निकाला जाता । फोक्सरस्टमें घी दिया जाता था; पर यहाँ तो वह भी नहीं था। मैं इस जेलके सामान्य कष्टोंकी चर्चा करना नहीं चाहता। अतः जिन्हें इनको जाननेकी इच्छा हो वे मेरे दक्षिण आफ्रिकाके जेलके अनुभव पढ़ लें ।

इतना होनेपर भी हिन्दुस्तानियोंने हिम्मत नहीं हारी। इससे सरकार बड़े असमं- जसमें पड़ी। वह जेलमें कितने हिन्दुस्तानियोंको रख सकती थी ? इससे खर्च बढ़ रहा था। अब वह क्या करती ? उसने उस स्थितिका सामना करने के लिए दूसरे उपाय ढूंढ़ना आरम्भ किया।

अध्याय ३१

देशनिकाला

खूनी कानूनमें तीन प्रकारकी सजाएँ थीं; जुर्माना, कैद और देशनिकाला। अदा- लतको ये तीनों सजाएँ एक साथ देनेका अख्तियार था और यह अख्तियार छोटे मजिस्ट्रेटोंको भी दे दिया गया था। पहले देशनिकालेका अर्थ था अपराधीको ट्रान्स- वालकी हदसे बाहर नेटाल या ऑरेंज फ्री स्टेट या डेलागोआबे (पूर्वी आफ्रिका) की हृदमें ले जाकर छोड़ आना । उदाहरणके लिए नेटालकी ओरसे आनेवाले हिन्दुस्तानी फोक्सरस्ट स्टेशनकी हदसे बाहर ले जाकर छोड़ दिये जाते थे। इस तरहके देश- निकालेमें कुछ कष्ट होने के सिवा दूसरी कोई हानि नहीं थी। यह तो केवल एक खेल-तमाशा था और इससे हिन्दुस्तानियोंमें उत्साह ही अधिक बढ़ता था ।

इसलिए स्थानीय सरकारको हिन्दुस्तानियोंको परेशान करनेकी नई युक्ति खोजनी पड़ी। जेलोंमें तो जगह रही नहीं थी। सरकारने सोचा कि यदि हिन्दुस्तानियोंको निर्वासित करके हिन्दुस्तान भेजा जा सके तो वे जरूर डरकर हमारे अधीन हो जायेंगे। उसका यह खयाल कुछ हदतक तो ठीक था ही । सरकारने एक बड़ा जत्था इस तरह हिन्दुस्तान भेजा। इन लोगोंको बहुत परेशानियोंका सामना करना पड़ा।

१. यह वावध अंग्रेजीसे अनूदित है।

२. नये प्रवासी कानूनके खण्ड ६ के अन्तगत; देखिए खण्ड ८, पृष्ठ १२०-२ ।