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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आदमी अपने पाँचों रुपये दे दे तो हम यही मानेंगे कि पाँच रुपया देनेवाले आदमीने अधिक दिया। फिर भी पच्चीस रुपये देनेवाला बहुत बार पाँच रुपये देनेवालेके सामने घमंड करता है। किन्तु हम यह समझते हैं कि उसके घमंड करनेका कोई कारण नहीं है। इसी तरह जो आदमी कमजोरीके कारण आगे नहीं बढ़ सकता, किन्तु अपनी पूरी शक्तिका उपयोग कर चुकता है वह उस आदमीसे अधिक योग्य है जो परिमाणको देखते हुए अधिक शक्ति लगाता है, किन्तु वस्तुतः शक्ति लगानेसे मन चुराता है। इसलिए जो लोग लड़ाई कड़ी होनेपर उससे निकल गये, देशसेवा तो उन्होंने भी की है। अब ऐसा समय आया जब अधिक साहस और अधिक कष्ट-सहनकी जरूरत थी । किन्तु ट्रान्सवालके हिन्दुस्तानी इसमें भी पीछे नहीं रहे और लड़ाई चलानेके लिए कमसे-कम जितने लोग जरूरी थे उसमें उतने तो रहे ही ।

किन्तु लोगोंकी परीक्षा इस तरह दिनपर-दिन कड़ी होने लगी। हिन्दुस्तानी ज्यों-ज्यों ज्यादा जोर लगाते त्यों-त्यों सरकार भी ज्यादा ताकतसे काम लेती । खतर- नाक कैदियोंके लिए अथवा जिन कैदियोंको खास तौरसे दबाना होता है उनके लिए सभी मुल्कोंमें, कुछ खास कैदखाने रखे जाते हैं। ऐसी व्यवस्था ट्रान्सवालमें भी थी । ऐसा एक कैदखाना डॉपक्लूफमें था। उसका जेलर भी कड़ा था और वहाँ मशक्कत भी कड़ी कराई जाती थी। किन्तु वैसी मशक्कतको करनेवाले लोग भी निकल आये । ये मशक्कत करनेके लिए तैयार थे; लेकिन अपमान सहनेके लिए तैयार न थे । जेलरने उनका अपमान किया, इसलिए उन्होंने अनशन आरम्भ कर दिया। उनकी शर्त यह थी: 'जबतक यह जेलर न हटाया जायेगा अथवा हम दूसरी जेलमें नहीं भेजे जायेंगे तबतक हम खाना नहीं खायेंगे।" यह अनशन शुद्ध था। अनशन करनेवाले लोग ऐसे नहीं थे जो छुपे-छुपे कुछ खा-पी लेते । पाठकोंको जानना चाहिए कि ऐसे मामलोंमें जो आन्दोलन हिन्दुस्तान में हो सकता है, उसके लिए ट्रान्सवालमें बहुत अवकाश न था। फिर वहाँ जेलोंके नियम भी कड़े थे। वहाँ ऐसे समय में भी कैदियोंसे सद्- व्यवहारकी प्रथा नहीं थी । सत्याग्रहीको जेलमें जानेपर प्रायः अपनी चिन्ता स्वयं ही करनी पड़ती। यह लड़ाई गरीबोंकी थी और गरीबोंके तरीकेसे ही चल रही थी, इसलिए ऐसी प्रतिज्ञाकी जोखिम बहुत बड़ी थी। फिर भी ये सत्याग्रही दृढ़ रहे । उनका उस समयका वह कार्य आजकी अपेक्षा अधिक स्तुत्य माना जायेगा, क्योंकि उस समय तक लोग अनशनके अभ्यस्त नहीं हुए थे। किन्तु वे सत्याग्रही अडिग रहे और उनको जीत मिली। सात दिन अनशन करनेके बाद उनको दूसरी जेलमें भेजनेकी आज्ञा दे दी गई।

१. विस्तृत विवरणके लिए देखिए खण्ड १०।