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दक्षिण आफ्रिका सत्याग्रहका इतिहास
अध्याय ३२
फिर शिष्टमण्डल

इस तरह सत्याग्रहियोंको जेलमें भेजनेका और निर्वासित करनेका क्रम जारी था। इसमें कमोबेशी तो होती रहती थी। दोनों पक्ष शिथिल भी हो गये थे । सर- कारने देखा कि जेलें भरनेसे संकल्पके धनी सत्याग्रही हारेंगे नहीं और उन्हें निर्वा- सित करनेसे सरकारकी निन्दा होती थी । फिर जो मामले अदालतोंमें जाते उनमें किसी-किसीमें सरकार हार भी जाती। हिन्दुस्तानी भी जोरदार मुकाबला करनेके लिए तैयार नहीं थे। उतने सत्याग्रही रहे भी नहीं थे। कुछ सत्याग्रहियोंने हार मान ली थी। कुछ तो हिम्मत खो बैठे थे और संकल्पवान् सत्याग्रहियोंको मूर्ख मानते थे। ये 'मूर्ख' अपने आपको समझदार मानकर ईश्वरमें और लड़ाईकी तथा अपने साधनों की सत्यतामें पूरी आस्था रखते थे और मानते थे कि अन्तमें जीत तो सत्यकी ही होती है ।

दक्षिण अफ्रिकाकी राजनीति तो एक क्षण भी स्थिर नहीं रहती थी । बोअर और अंग्रेज चाहते थे कि दक्षिण आफ्रिकाके सभी उपनिवेश संघ-बद्ध हो जायें और उनको अधिक स्वतन्त्रता प्राप्त हो जाये । जनरल हर्टजोगकी इच्छा यह थी कि अंग्रे- जोंसे पूरी तरह सम्बन्ध तोड़ दिया जाये । कुछ लोग अंग्रेजोंसे नाम मात्रका सम्बन्ध रखना पसन्द करते थे। अंग्रेज पूरी तरह सम्बन्ध तोड़ना सहन नहीं कर सकते थे । जो कुछ मिलना था वह तो ब्रिटिश संसदकी मार्फत ही मिल सकता था। इसलिए बोअरों और अंग्रेजोंने यह निश्चय किया कि दक्षिण आफ्रिकाका एक शिष्टमण्डल इंग्लैंड जाये और दक्षिण आफ्रिकाके मामलेको ब्रिटिश मन्त्रिमण्डलंके सम्मुख रखे ।

हिन्दुस्तानियोंने देखा कि यदि इन उपनिवेशोंका एकीकरण हो जायेगा संघ बन जायेगा तो उनकी स्थिति जितनी बुरी तब थी उससे भी बुरी हो जायेगी । सभी उपनिवेश सदा हिन्दुस्तानियोंको अधिकाधिक दबाकर रखना चाहते थे । इसलिए यह स्पष्ट था कि ये सब विरोधी इकट्ठे हो जायेंगे तो हिन्दुस्तानियोंको और भी ज्यादा दबायेंगे। यद्यपि हिन्दुस्तानियोंकी आवाज नक्कारखानेमें तृतीकी आवाजकी तरह बहुत कम थी, फिर भी हिन्दुस्तानियों के प्रयत्नों में कोई भी कमी न रहे, यह सोच- कर इस समय फिर हिन्दुस्तानियों का एक शिष्टमण्डल इंग्लैंड भेजनेका निश्चय किया गया। इस बार शिष्टमण्डलमें मेरे साथी पोरबन्दरके मेमन सेठ हाजी हबीब चुने गये थे । वे ट्रान्सवालमें बहुत दिनोंसे व्यापार करते थे । उनका अनुभव बहुत था । उन्होंने अंग्रेजी नहीं पढ़ी थी फिर भी वे अंग्रेजी, डच और जुलू आदि भाषाएँ आसा- नीसे समझ लेते थे। उनकी सहानुभूति सत्याग्रहियोंके साथ थी, किन्तु ये स्वयं पूरे सत्याग्रही नहीं कहे जा सकते थे । हम दोनों भाई केपटाउनसे 'केनिलवर्थ कैंसिल' नामके जिस जहाजमें रवाना हुए थे उसीमें दक्षिण आफ्रिका प्रसिद्ध वयोवृद्ध राजनीतिज्ञ मेरीमैन भी बैठे थे। वे संघ निर्माणके निमित्त बातचीत करने जा रहे थे । जनरल स्मट्स और कुछ अन्य मन्त्री पहले जा चुके थे। नेटालके हिन्तुस्तानियोंका एक अलग