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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

शिष्टमण्डल उस समय इंग्लैंड गया हुआ था । उसका सम्बन्ध सत्याग्रहसे नहीं था, प्रत्युत नेटालके हिन्दुस्तानियोंकी कुछ कठिनाइयोंसे था ।

उस समय लॉर्ड क्रू उपनिवेश मन्त्री थे और लॉर्ड मॉर्ले भारत मन्त्री । उनसे बहुत बातें हुईं। हम बहुत से लोगोंसे मिले और जिन समाचारपत्र सम्पादकोंसे अथवा लोकसभा या सामन्त-सभाके सदस्योंसे मिल सकते थे उनमें से किसीसे मिले बिना नहीं रहे ।' मैं कह सकता हूँ कि लॉर्ड एम्टहिलने हमें बहुत सहायता दी। वे श्री मेरीमैन, जनरल बोथा और अन्य आफ्रिकी नेताओंसे मिलते थे और अन्तमें हमारे लिए जनरल बोथाका एक सन्देश लाये । उन्होंने कहा : जनरल बोथा आपकी भावनाओंको समझते हैं । वे आपकी छोटी-मोटी माँगें माननेके लिए तैयार हैं, किन्तु वे एशियाई कानूनको रद करनेके लिए और दक्षिण आफ्रिकामें आनेवाले नये प्रवासियोंके कानूनमें फेरफार करनेके लिए तैयार नहीं। वे कानूनमें रखे गये काले और गोरेके बीचके भेदको मिटानेकी आपकी माँग मंजूर करनेसे इन्कार करते हैं । जनरल बोथा इस भेदको सिद्धान्त के रूप में मानते हैं और फिर वे यह माँग मंजूर भले ही कर लें, दक्षिण आफ्रिका गोरे उसे कभी सहन न करेंगे। जनरल स्मट्सकी राय भी यही है जो जनरल बोथाकी है। दोनोंका कहना है कि उनका यह निर्णय और प्रस्ताव अन्तिम है। यदि आप इससे अधिक माँगेंगे तो दुःखी होंगे और आपकी कौम भी दुखी होगी । इसलिए आप जो भी निर्णय करें सोच-विचार कर करें। जनरल बोथाने मुझे कहा है कि मैं आपको उनका यह सन्देश दे दूं और इस सम्बन्धमें आपका दायित्व आपको स्पष्ट बता दूँ ।"

लॉर्ड एम्टहिलने यह सन्देश देनेके बाद कहा : " आप देखें तो जनरल बोथा आपकी सब व्यावहारिक माँगें मंजूर कर रहे हैं और इस दुनियामें लेना-देना तो करना ही पड़ता है। हम जो कुछ चाहते हैं वह सब तो हमें मिल नहीं सकता । इसलिए आपको मेरी निजी सलाह है कि आप इस प्रस्तावको स्वीकार कर लें । यदि आप सिद्धान्तको लेकर लड़ना चाहें तो बादमें लड़ सकेंगे। आप दोनों इस सम्बन्धमें विचार कर लें और उसके बाद जो भी उत्तर देना हो, वह दें। "

यह सुनकर मैंने सेठ हाजी हबीबकी ओर देखा । उन्होंने कहा : 'आप मेरी ओरसे कहें कि मैं समझौतेका समर्थन करनेवाले पक्षकी ओरसे बोल रहा हूँ। मुझे जनरल बोथाका प्रस्ताव स्वीकार है । यदि वे हमें इतना दे देंगे तो हम फिलहाल सन्तोष मानेंगे और सिद्धान्तके लिए पीछे लड़ते रहेंगे । अब कौम ज्यादा बरबाद हो, यह मुझे पसन्द नहीं । मैं जिस पक्षकी ओरसे बोल रहा हूँ वह संख्यामें और पैसेमें भी बड़ा है ।"

मैंने इन वाक्योंका शब्दशः अनुवाद कर दिया। फिर मैंने अपने सत्याग्रही पक्षकी ओरसे कहा : "आपने जो कष्ट किया है उसके लिए हम दोनों आपके आभारी हैं। मेरे साथीने जो कुछ कहा है, वह ठीक है । वे संख्यामें और धनमें अधिक बलवान् पक्षकी ओरसे बोलते हैं। मैं जिन लोगोंकी ओरसे बोलता हूँ वे इनकी अपेक्षाकृत

१. विस्तृत विवरणके लिए देखिए खण्ड ९ ।