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दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह इतिहास

गरीब और संख्यामें कम हैं । किन्तु वे सभी मरनेके लिए तैयार हैं। उनकी लड़ाई व्यवहार और सिद्धान्त दोनोंकी है। यदि दोनोंमें से कोई एक वस्तु छोड़नी पड़े तो वह व्यवहारको छोड़ देंगे और सिद्धान्त के लिए लड़ेंगे। हमें जनरल बोथाकी शक्तिका अन्दाज है । किन्तु हम अपनी प्रतिज्ञाको उससे अधिक बड़ी समझते हैं इसलिए प्रतिज्ञा- की खातिर बरबाद होने के लिए तैयार हैं। हम धीरज रखेंगे। हमारा विश्वास है कि हम अपने निश्चयपर अटल रहेंगे तो हमने जिस ईश्वरको साक्षी करके प्रतिज्ञा की है, वह उसे पूरा करेगा ।

मैं आपकी स्थितिको भलीभाँति समझता हूँ । आपने हमारे लिए बहुत-कुछ किया है। यदि आप अब हम मुट्ठीभर सत्याग्रहियोंका अधिक साथ न दे सकें तो हमें इससे गलतफहमी नहीं होगी। हम अपने प्रति किये गये आपके उपकारको भी नहीं भूलेंगे। पर हम आपकी सलाहको स्वीकार नहीं कर सकते; आशा है, आप भी हमें इसके लिए क्षमा करेंगे। आप जनरल बोथाको हम दोनोंने जो कुछ कहा है वह खुशी से बता दें और उन्हें यह कह दें कि हम जो थोड़ेसे लोग हैं वे अपनी प्रतिज्ञा का पालन अवश्य करेंगे और हमें " आशा है कि हमारी कष्ट सहनकी शक्ति अन्तमें उनके हृदयको भी बेध देगी और वे एशियाई कानूनको रद कर देंगे ।"

लॉर्ड एम्टहिलने उत्तर दिया :

'आप यह न समझें कि मैं आपका साथ देना छोड़ दूँगा । मुझे भी अपने सौजन्यकी रक्षा तो करनी ही है । अंग्रेज एक बार हाथमें लिये हुए कामको एकाएक छोड़ते नहीं हैं । आपकी लड़ाई न्यायसंगत है। आप शुद्ध साधनोंसे लड़ रहे हैं। मैं आपका साथ कैसे छोड़ सकता हूँ ? किन्तु आप मेरी स्थिति समझ सकते हैं । कष्ट तो आपको ही सहने हैं। इसलिए यदि समझौतेकी कुछ भी गुंजाइश हो तो आपको समझौता करनेकी सलाह देना मेरा धर्म है; किन्तु जब कष्ट सहन करनेवाले आप लोग अपनी प्रतिज्ञाके लिए जितने भी कष्ट सहने पड़ें उतने सहने के लिए तैयार हैं तो मैं आपको कैसे रोक सकता हूँ? मैं तो आपको बधाई ही दूंगा । अतः मैं आपकी समितिका अध्यक्ष तो बना ही रहूँगा और जितनी सहायता दे सकूंगा उतनी सहायता भी देता ही रहूँगा; किन्तु आपको यह ध्यान रखना चाहिए कि मैं लॉर्डसभाका एक सामान्य-सा सदस्य माना जाता हूँ। मेरा प्रभाव बहुत नहीं है। फिर भी जितना है, मैं उसका प्रयोग आपके निमित्त ही करता रहूँगा, आप इसमें कोई सन्देह न करें।"

उनके इन प्रोत्साहन भरे शब्दोंको सुनकर हम दोनोंको बहुत प्रसन्नता हुई ।

सम्भव है, यहाँ पाठकोंका ध्यान एक मीठी बातकी ओर न गया हो। मैंने ऊपर बताया कि सेठ हाजी हबीब और मेरे बीच मतभेद था । फिर भी हम दोनोंके बीच इतनो मिठास और परस्पर इतना विश्वास था कि सेठ हाजी हबीबको अपना विरोधी मत मेरी मार्फत ही व्यक्त करनेमें झिझक नहीं मालूम हुई । वे मुझपर विश्वास कर सकते थे कि मैं उनके विचार लॉर्ड एम्टहिलके सम्मुख ठीक-ठीक रखूंगा ।

मैं यहाँ पाठकोंको एक अप्रस्तुत प्रसंग भी बताऊँ । इंग्लंडमें रहते हुए उन दिनों मेरी बातचीत बहुतसे अराजकतावादियोंसे हुई। वहाँ मैंने उन सबके तर्कोंका खण्डन