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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

किया था। दक्षिण आफ्रिकामें भी मैंने ऐसे कुछ लोगोंकी शंकाओंका समाधान किया था। मेरे 'हिन्द स्वराज्य' का जन्म इंग्लैंडमें हुई इस चर्चाके आधारपर ही हुआ । मैंने इसके मुख्य तत्त्वोंके सम्बन्धमें लॉर्ड एम्टहिलके साथ भी चर्चा की थी। इसमें मेरा हेतु यह था कि उनको यह खयाल न हो कि मैंने अपने विचारोंको छुपाकर उनके नाम और उनको सहायताका अनुचित उपयोग अपने दक्षिण आफ्रिकाके कार्यके सम्बन्ध में किया है। इस सम्बन्धमें उनसे मेरी जो बातचीत हुई है उसे मैं कभी नहीं भूलूंगा । उनके परिवारमें कोई सख्त बीमार था। फिर भी उन्होंने मुझसे भेंट की थी और यद्यपि 'हिन्द स्वराज्य' के सम्बन्धमें मेरे विचार उनसे मेल नहीं खाते थे, फिर भी उन्होंने दक्षिण आफ्रिकाकी लड़ाईमें अन्ततक पूरा-पूरा योगदान किया और हमारे सम्बन्धोंकी मधुरता अन्तिम समयतक बनी रही।

अध्याय ३३

टॉल्स्टॉय फार्म - १

इस बार इंग्लैंडसे जो शिष्टमण्डल लौटा वह कोई अच्छा समाचार लेकर नहीं लौट सका । लोग लॉर्ड एम्टहिलकी बातोंका क्या निष्कर्ष निकालेंगे इसकी चिन्ता मुझे कम ही थी। मेरे साथ अन्ततक कौन टिकेगा यह मैं जानता था । सत्याग्रहके सम्बन्धमें मेरे विचार अब अधिक परिपक्व हो गये थे। मैं अबतक उसकी व्यापकता और अलौकिकता अधिक समझ गया था। इससे मेरा चित्त शान्त था। मैंने इंग्लैंडसे लौटते वक्त जहाजमें 'हिन्द स्वराज्य' पुस्तक लिखी। इसका उद्देश्य केवल सत्याग्रहकी उत्कृष्टता बताना था। यह पुस्तक मेरी श्रद्धाका मापदण्ड है। इस कारण मेरे सामने लड़नेवाले सैनिकोंकी संख्याका प्रश्न ही नहीं था ।

किन्तु मुझे पैसेकी चिन्ता रहती थी। लम्बे अरसेतक लड़ाई चलानी थी और पैसा पास नहीं था, यह मेरे लिए एक बहुत ही दुःखजनक बात थी। लड़ाई पैसेके बिना चल सकती है, पैसा बहुत बार सत्यकी लड़ाईको दूषित करता है, ईश्वर सत्या- ग्रहीको – मुमुक्षुको -आवश्यकतासे अधिक साधन कभी नहीं देता - यह बात जितने स्पष्ट रूपमें में आज समझता हूँ उतने स्पष्ट रूपमें मैं तब नहीं समझता था। किन्तु मैं आस्तिक हूँ। ईश्वरने मेरा साथ उस समय भी दिया। उसने मेरा कष्ट दूर किया। यदि मुझे एक ओर दक्षिण आफ्रिकामें जहाजसे उतरते ही कौमको अपनी असफलताका समाचार सुनाना पड़ा तो दूसरी ओर ईश्वरने मुझे पैसेकी तंगीसे मुक्त कर दिया। मैं केपटाउनमें ज्यों ही जहाजसे उतरा त्यों ही मुझे इंग्लैंडसे तार मिला कि सर रतनजी जमशेदजी टाटाने पच्चीस हजार रुपये दिये हैं। इतना रुपया उस समय बहुत काफी था और उससे काम चलने लगा ।

१. देखिए खण्ड १०, पृष्ठ ६-६९ ।

२. देखिए खण्ड १०, पृष्ठ ८५, ८६ और १०३।

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