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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

साफ करने होते। हमने सामूहिक बरतन बारी-बारीसे माँजनेका निश्चय किया। मुझे कहना चाहिए कि टॉल्स्टॉय फार्म लम्बे अर्सेतक चलनेके बावजूद इन बहनों या भाइयों में से किसीने मांसकी माँग कभी नहीं की। शराब, तम्बाकू और अन्य नशीली चीजोंका निषेध तो वहाँ था ही।

मैं लिख चुका हूँ कि मकान बनाने में भी हमारा आग्रह जितना काम अपने हाथोंसे किया जा सके उतना स्वयं करनेका था । वास्तुकार श्री कैलनबैक थे ही। उन्होंने एक गोरे राजको बुला दिया। एग गुजराती खाती नारायणदास दमानियाने हमें अपनी सेवाएँ बिना कुछ लिये दीं और कुछ दूसरे लोग कम मजदूरी पर बुला दिये। केवल शरीर श्रमका काम हमने अपने हाथोंसे किया। हममेंसे जो लोग शरीरसे फुर्तीले थे उन्होंने बेहद काम किया। खातीगीरीका आधा काम बिहारी नामके एक भले सत्या- ग्रहीने अपने हाथमें लिया। सफाई करने, शहर जाने और वहाँसे सब सामान लाने आदिका काम सिंह जैसे साहसी थम्बी नायडूने अपने जिम्मे रखा ।

इस टुकड़ीमें एक भाई प्रागजी खण्डूभाई देसाई थे। उन्होंने अपने जीवनमें जाड़ा और गरमी कभी नहीं सहे थे। किन्तु वहाँ तो कड़ी ठंड और गरमी पड़ती थी और तेज वर्षा होती थी । हमने पहले तम्बुओंमें रहना शुरू किया था। जबतक मकान न बने तबतक हम उन्हीं में सोये। मकान कोई दो महीनेमें बने होंगे। चूँकि वे चद्दरोंके बनाये जाते थे इसलिए उनको बनानेमें बहुत वक्त नहीं लगता था । लकड़ियाँ जिस आकार की जरूरत होतीं, तैयार चिरी मिल सकती थीं, अतः केवल उनके ठीक नापके टुकड़े काटने रह जाते थे। खिड़कियाँ और किवाड़ भी कम बनाने थे। इसलिए कम समयमें इतने ज्यादा मकान तैयार हो सके। किन्तु शरीर श्रमके इन कामोंमें भाई प्रागजीकी कड़ी कसौटी हुई। जेलके कामसे फार्मका काम बड़ा कड़ा ही था। इसलिए वे एक दिन तो थकान और गरमीसे बेहोश हो गये; किन्तु वे ऐसे न थे जो जल्दी ही हार बैठते । उन्होंने यहाँ अपने शरीरको श्रमका पूरी तरह अभ्यस्त बना लिया और इतनी शक्ति प्राप्त कर ली कि अन्तमें तो वे सबके बराबर ही मेहनत कर लेते थे।

ऐसे ही एक दूसरे व्यक्ति जोसेफ रायप्पन थे। बैरिस्टर तो थे किन्तु उनमें बैरिस्टर होनेका गर्व नहीं था । वे बहुत कड़ी मेहनत नहीं कर सकते थे। रेलके डिब्बेमें से सामानके गट्ठर उतारना और उन्हें गाड़ीमें लादना उनके लिए कड़ा काम था, किन्तु उन्होंने यथाशक्ति वह भी किया।

टॉल्स्टॉय फार्ममें कमजोर लोग मजबूत बन गये और शरीर-श्रमसे सबको लाभ हुआ ।

सभीको किसी न किसी कामसे जोहानिसबर्ग जाना होता। बच्चोंको घूमनेके लिए वहाँ जानेकी इच्छा होती। मुझे भी कार्यवश जाना होता। हमने निश्चय किया कि जिन्हें सामाजिक कामसे जानेकी जरूरत हो उन्हींको रेलसे जानेकी अनुमति दी जाये । कोई भी तीसरे दर्जेके सिवा अन्य किसी दर्जेमें नहीं जा सकता था। जो घूमनेके लिए जाये वह पैदल जाये और अपना नाश्ता साथ बांधकर ले जाये। कोई

१. आत्मकथा, भाग ४, अध्याय ३१ भी देखिए ।