पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 29.pdf/२११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१८५
दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

मेरा प्रयोग यह था । मैं लुच्चे माने जानेवाले लड़कोंको और निर्दोष सयानी लड़कियोंको नहानेके लिए साथ-साथ भेजता था। मैंने लड़कों और लड़कियोंको संयम धर्म भली-भांति समझा दिया था। वे सभी मेरे सत्याग्रहसे परिचित थे। उन सबके प्रति मेरा प्रेम एक माताके बराबर ही था, यह मैं तो जानता ही था, परन्तु स्वयं उन बच्चोंका विश्वास भी यही था । पाठकोंको याद होगा कि वहाँ पानीका एक झरना था। वह भोजनालयसे कुछ दूरीपर था। उस जगह उनको मिलने देना और उनसे निर्दोष रहनेकी आशा रखना अनुचित था क्या ? जैसे माँकी आँख अपनी बेटीपर रहती है वैसे ही मेरी आँख भी इन लड़कियोंपर रहती थी। नहानेका एक वक्त तय था । उसके लिए वक्तपर सब लड़के और लड़कियाँ साथ-साथ जाते । समुदायमें जो एक प्रकारकी सुरक्षितता होती है वह वहाँ भी थी। उन्हें कोई एकान्त तो मिलता न था। फिर प्रायः उसी समय वहाँ मैं भी पहुँच जाता ।

सब लोग एक खुले बरामदेमें सोते थे। लड़के और लड़कियाँ मेरे आसपास लेटे होते। उनके बिस्तरोंमें मुश्किलसे तीन फुटका अन्तर होता। हाँ, विस्तरोंके क्रममें सावधानी अवश्य रखी जाती, किन्तु दूषित मनके लिए यह सावधानी क्या कर सकती थी ? मैं अब देखता हूँ कि इन लड़के और लड़कियोंके सम्बन्धमें तो ईश्वरने ही लाज रखी थी। लड़के और लड़कियाँ इस तरह निर्दोष भावसे मिलजुल सकते हैं, इस विश्वासको लेकर मैंने यह प्रयोग किया था और माँ-बापने मुझपर असीम विश्वास रखकर मुझे यह प्रयोग करने दिया था ।

एक दिन इन लड़कियोंने अथवा किसी लड़केने मुझे बताया कि एक युवकने दो लड़कियोंसे मजाक किया है। मैं इससे कांप उठा। मैंने पूछताछ की। बात सच्ची थी। मैंने युवकोंको समझाया किन्तु इतना काफी न था । मैं चाहता था कि दोनों लड़कियोंके शरीरपर कोई ऐसा चिह्न हो जिससे प्रत्येक युवक यह समझ ले और जान ले कि इन लड़कियोंपर कुदृष्टि की ही नहीं जा सकती और लड़कियाँ भी समझ लें कि कोई उनकी पवित्रतापर हाथ नहीं लगा सकता। विकारी रावण सीताको छू भी नहीं सका था। राम तो दूर थे। मैंने रात-भर जगकर सोचा, “इन लड़कियोंको क्या चिह्न दूं जिससे ये अपने आपको सुरक्षित समझें। दूसरे उन्हें देखकर निर्विकार रहें। " मैंने सुबह उठकर लड़कियोंसे प्रार्थना की। उन्हें सहज भावसे समझाकर उनसे कहा कि वे मुझे अपने सुन्दर लम्बे बाल काटनेकी अनुमति दे दें। हम फार्ममें दाढ़ी बनाने और बाल काटनेका काम आपसमें कर लेते थे। इसलिए मेरे पास कैंची रहती थी। मेरी बात पहले उन लड़कियोंकी समझमें नहीं आई। मैंने बड़ी स्त्रियोंको सब कुछ समझा दिया था। उन्हें मेरी बात सहन तो नहीं हुई; किन्तु उन्हें मेरा उद्देश्य पसन्द आया । अतः उनकी सहायता मुझे प्राप्त थी। दोनों लड़कियोंका रूप भव्य था। शोक ! उनमें से एक आज मौजूद नहीं है। वह तेजस्विनी थी। दूसरी लड़की अभी जीवित है और अपना घरबार सँभालती है। अन्तमें बात दोनोंकी समझमें आ गई। मैं जिस हाथसे इस प्रसंगको लिख रहा हूँ उसी हाथसे मैंने उन लड़कियोंके बालोंपर कैंची चला दी। मैंने उसके बाद वर्गमें सबको इस कार्यका विश्लेषण करके