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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


समझाया। इसका परिणाम अच्छा हुआ। उसके बाद मैंने कभी मजाक किये जानेकी बात नहीं सुनी। इससे इन लड़कियोंकी हानि बिलकुल नहीं हुई; किन्तु उनको लाभ कितना हुआ, यह ईश्वर जाने । मुझे आशा है कि युवकोंको यह घटना आज भी याद होगी और वे अपनी दृष्टिको शुद्ध रखते होंगे ।

मैं ये प्रयोग अनुकरणके लिए नहीं लिख रहा हूँ। यदि कोई भी शिक्षक ऐसे प्रयोगोंका अनुकरण करेगा तो बहुत बड़ी जोखिम मोल लेगा। मैंने इस प्रयोगका उल्लेख यह बताने के लिए किया है कि मनुष्य किसी स्थिति-विशेषमें किस हदतक जा सकता है और सत्याग्रहकी लड़ाई कितनी शुद्ध थी। उसकी शुद्धिमें ही उसकी विजयका मूल था । यह प्रयोग करने के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षक विद्यार्थियोंका माँ और बाप बन जाये । वह ऐसा प्रयोग अपना सिर हथेलीपर रखकर ही कर सकता है। फिर उसके पीछे कठिन तपस्या भी होनी चाहिए।

इस कार्यका प्रभाव फार्म निवासियोंके तमाम रहन-सहन और व्यवहारपर पड़े बिना न रहा, कमसे-कम खर्चमें गुजारा करना हमारा उद्देश्य था, इसलिए हमने अपनी पोशाकमें भी फेरफार किया। दक्षिण आफ्रिकाके शहरोंमें हमारा पुरुषवर्ग सामान्यतः यूरोपीय ढंगकी पोशाक ही पहनता था, सत्याग्रहियोंकी पोशाक भी वैसी ही थी । फार्ममें इतने कपड़ोंकी जरूरत नहीं थी। हम सब मजदूर बन गये थे, इसलिए हमने पोशाक भी मजदूरोंकी अख्तियार की, किन्तु वह थी यूरोपीय ढंगकी अर्थात् उसमें मजदूरोंकी जैसी पतलून-कमीज होती। हमने इसमें जेलका अनुकरण किया था। सभी लोग मोटे नीले कपड़ेकी बनी सस्ती पतलून और कमीजें काममें लेते। स्त्रियोंमें से ज्यादातर सिलाईका काम बहुत अच्छा कर सकती थीं, अतः उन्होंने सिलाईका पूरा काम अपने हाथमें ले लिया।

खानेमें चावल, दाल, शाक और रोटी होती और कभी-कभी खीर बनाई जाती । यह खानेका सामान्य नियम था । यह सब चीजें एक ही बर्तनमें परोस दी जाती थीं। वरतन थालीकी जगह जेलके तसले-जैसा रखा गया था और खानेके लिए लकड़ीके चम्मच हाथसे बना लिये थे। खाना इस तरह तीन वक्त दिया जाता, सुबह ६ बजे रोटी और गेहूँकी काफी, ११ बजे दाल, भात और साग और शामको ५॥ बजे गेहूँका दलिया और दूध अथवा रोटी और गेहूँकी काफी ।' रातकें ९ बजे सबको सो जाना होता था । खानेके बाद ७|| बजे प्रार्थनाकी जाती । प्रार्थनामें भजन गाये जाते और कभी 'रामायण' पढ़ी जाती, कभी कोई इस्लामी धर्मपुस्तक । भजन अंग्रेजी, हिन्दी और गुजरातीके होते। कभी किसी एक ही भाषाके भजन गाये जाते और कभी तीनों भाषाओंके ।

फार्ममें बहुतसे सदस्य एकादशीका व्रत रखते थे। वहाँ भाई पी० के० कोतवाल आ गये थे। उन्हें उपवास आदिकी समुचित विधि आती थी । उनका अनुकरण करके बहुतोंने चातुर्मास किया। उन्हीं दिनोंमें रोजे भी पड़ते थे। हमारे साथ मुसल- मान युवक भी थे। हमें लगा कि उन्हें रोजे रखनेके लिए प्रेरित करना हमारा धर्म

१. देखिए खण्ड ११, पृष्ठ ४८० ।