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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास


दिया। हम उनके लिए रातको खीर आदि भी पकाते थे । खानेमें मांस तो होता ही न था । किसीने मांस माँगा भी न था । हम उनकी भावनाका सम्मान करनेके लिए एकाहार और प्रदोष करते। हम सूर्यास्त से पहले खाना खा लेते। यह हमारा सामान्य नियम था । मुसलमान लड़के थोड़े ही थे, इसलिए दूसरे लोग सूर्य छुपनेसे पहले खाना खाकर तैयार हो जाते, बस इतना ही अन्तर रहता था । मुसलमान युवकोंने भी रोजे रखते हुए इतना सौजन्य दिखाया था कि उन्होंने किसीको भी विशेष कष्ट नहीं होने दिया। किन्तु इस तरह गैर-मुस्लिम लड़कोंने खानेमें संयम रखकर उनका साथ दिया इसका प्रभाव उन सभीपर बहुत अच्छा हुआ। मुझे स्मरण नहीं आता कि हिन्दू और मुसलमान लड़कोंमें कभी धर्मके कारण झगड़ा या मतभेद हुआ हो प्रत्युत, मेरा अनु- भव तो इससे उलटा ही हुआ और वह यह कि सब अपने-अपने धर्ममें दृढ़ रहकर भी दूसरोंके धर्मका पूरा खयाल रखते और एक-दूसरेको अपने-अपने धर्मके आचरण- में सहायता देते ।

शहरसे इतनी दूर रहनेपर भी बीमारी होनेपर उसके इलाजकी जो सामान्य व्यवस्था रखी जाती है वह बिलकुल नहीं रखी गई थी। उस समय मेरी जैसी श्रद्धा लड़कों और लड़कियोंकी निर्दोषताके सम्बन्धमें थी वैसी ही श्रद्धा बीमारीमें केवल प्राकृतिक चिकित्सा करनेके सम्बन्धमें भी थी। मैं सोचता था कि सादे जीवनमें बीमारी हो ही कैसे सकती है, किन्तु यदि हो तो उसका इलाज किया जा सकता है। मेरी आरोग्य सम्बन्धी पुस्तक मेरे प्रयोगोंकी और उन दिनोंकी मेरी श्रद्धाकी स्मृति पंजिका है। मैं गर्व करता था कि मुझे तो बीमारी हो ही नहीं सकती। मैं मानता था कि केवल पानी, मिट्टीके प्रयोग, उपवास और भोजनमें परिवर्तन करके हर प्रकारके रोग दूर किये जा सकते हैं। हमने फार्ममें किसी भी बीमारीमें दवाका या डाक्टरका उप- योग नहीं किया था। उत्तर हिन्दुस्तानके एक सत्तर सालके बूढ़ेको दमेकी बीमारी और खाँसी थी। उसकी बीमारी भी खानेमें फेरफार और पानीके प्रयोग करनेसे दूर हो गई थी। किन्तु मैं अब ऐसे प्रयोग करनेका साहस खो बैठा हूँ और मैं मानता हूँ कि दो बार स्वयं बीमार होनेके बाद मैंने अपना यह अधिकार भी खो दिया है।

जब यह फार्म चलता था तभी स्वर्गीय गोखले दक्षिण आफ्रिकामें आये थे। उनकी यात्राका वर्णन करनेके लिए तो एक अलग प्रकरण लिखना आवश्यक है; किन्तु उसका एक कड़वा-मीठा संस्मरण है; उसे में यहाँ दे दूं। हमारा रहन-सहन कैसा था यह तो पाठकोंको मालूम हो ही गया है। फार्ममें पलंग-जैसी कोई चीज नहीं थी, किन्तु हमने गोखलेजीके लिए एक खाट कहींसे माँग ली थी। हमारे यहाँ ऐसा कोई कमरा न था जिसमें उन्हें बिलकुल एकान्त मिल सकता । बैठनेके लिए

१. देखिए आत्मकथा, भाग ४ अध्याय ३१ ।

२. यह “ आरोग्यके सम्बन्ध में सामान्य ज्ञान ” शीर्षकसे लेखमालाके रूपमें इंडियन ओपिनियन में प्रकाशित हुई थी। देखिए खण्ड ११ ।

३. अक्तूबर १९१२ में ।