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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

शालाकी बचें थीं। इन स्थितियोंमें भी कमजोर शरीरके गोखलेजीको हम फार्म पर न लाते, यह कैसे हो सकता था? उसी तरह वे भी फार्मको देखे बिना कैसे रह सकते थे ? मैंने अपने मनमें सोचा कि उनका शरीर एक रातका कष्ट-सहन करने योग्य होगा और वे स्टेशनसे फार्मतक लगभग डेढ़ मील पैदल आ सकेंगे। मैंने उनसे पूछ भी लिया था और उन्होंने सरलतावश बिना विचारे मुझपर विश्वास रखकर वह सब व्यवस्था स्वीकार भी कर ली थी। संयोगसे उसी दिन पानी भी बरस गया। मेरी व्यवस्थामें भी तत्काल कोई फेरफार नहीं किया जा सकता था। इस तरह मैंने उस दिन अपने अज्ञानमय प्रेमके कारण उन्हें जो कष्ट दिया उसे में कभी नहीं भूला। उनकी प्रकृति इतना बड़ा परिवर्तन सहन नहीं कर सकती थी; अतः उन्हें सर्दी लग गई। हम उन्हें खाना खाने के लिए रसोईघरमें नहीं ले जा सकते थे। हमने उनको श्री कैलनबैकके कमरेमें ठहराया था। वहाँ खाना भेजते तो वह ठण्डा हो ही जाता। उनके लिए में विशेष रसा बनाता और भाई कोतवाल विशेष रोटियाँ; किन्तु उनको गरम कैसे रखा जा सकता था? खैर, किसी तरह हमने उन्हें निबटाया । उन्होंने मुझे कहा तो कुछ भी नहीं, किन्तु मुझे उनके चेहरेसे सब मालूम हो गया और मैं अपनी मूर्खता भी समझ गया । जब उन्हें यह मालूम हुआ कि हम सब जमीनपर ही सोते हैं तब उन्होंने अपने लिए बिछाई गई खाट उठवा दी और अपना विस्तर भी जमीनपर ही करा लिया। मैंने यह रात पश्चात्ताप करते हुए काटी । गोखलेकी एक टेव थी जिसे मैं कुटेव कहता हूँ। वे सेवाका काम नौकरसे ही लेते थे। वे ऐसे सफरमें नौकर साथ नहीं रखते थे। श्री कैलनबैकने और मैंने उनसे बहुत प्रार्थना की, हमें अपने पैर दबाने दीजिये; किन्तु वे टससे मस नहीं हुए और हमें अपने पैर छूनेतक नहीं दिये। उन्होंने कुछ खोजते हुए और कुछ हँसते हुए कहा : 'आप सब यही समझते जान पड़ते हैं कि कष्ट और असुविधाएँ सहनेके लिए तो एक आप ही जन्मे हैं और हमारे जैसे लोग तो आपसे सेवा चाकरी करानेके लिए ही पैदा हुए हैं। आप अपनी अतिका दण्ड आज पूरी तरह भोगें । मैं तो आपको अपना स्पर्श भी नहीं करने दूंगा। आप सब नित्यकर्म करनेके लिए दूर जायेंगे और मेरे शौच या पेशाब जानेके लिए कमोड रखेंगे, यह क्यों? मुझे कितना ही कष्ट हो मैं उसे सह लूंगा, किन्तु आपका गर्व दूर करूंगा।" उनके ये शब्द तो वज्र-जैसे थे। इनसे कैलनबैंक और मैं खिन्न हुए, किन्तु हमारे लिए तसल्लीकी बात इतनी ही थी कि उनके मुखपर हँसी थी । अर्जुनने कृष्णको अनजाने बहुत दुःख दिये होंगे, किन्तु क्या कृष्णने उन्हें याद रखा ? गोखलेने तो हमारा सेवाभाव ही याद रखा, हमें सेवा तो करने ही नहीं दी। उन्होंने मोम्बासासे जो प्रेम-भरा पत्र भेजा था वह मेरे हृदय में गहरा अंकित हो गया। उन्होंने कष्ट सहा, किन्तु हम जो सेवा कर सकते थे वह सेवा हमें अन्ततक नहीं करने दी। खाना आदि तो हमारे हाथसे न लेते तो करते क्या ?

दूसरे दिन प्रातः उन्होंने आराम न स्वयं किया और न हमें करने दिया। हम उनके भाषणोंको पुस्तक रूपमें छाप रहे थे, उन्होंने इन सबको सुधारा । उनको ऐसी