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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कि जिस बातको बुद्धि स्वीकार करे उसे व्यवहारमें लाना उनके लिए उचित और धर्म होगा। वे इसीलिए अपने जीवनमें एक क्षणमें बिना संकोच महत्त्वपूर्ण परिवर्तन कर सके थे। अतः उन्होंने सोचा कि यदि सर्प आदि जीवोंको मारना अनुचित है तो मुझे उनके प्रति मैत्री सम्बन्ध स्थापित करना चाहिए। इसके लिए उन्होंने पहले विभिन्न जातिके साँपोंकी पहचान करने के लिए साँपोंके सम्बन्धमें पुस्तकें इकट्ठी कीं। उन्होंने उनमें देखा कि सभी साँप विषैले नहीं होते और कुछ साँप तो खेतोंमें फस- लोंके रक्षकका काम करते हैं। हम सबने साँपोंकी पहचान करना सीखा और अन्तमें एक बड़ा अजगर पाला जो हमें फार्ममें ही मिल गया था। श्री कैलनबैक उसे नित्य अपने हाथसे खाना देते। मैंने बड़ी नरमीसे कैलनबैकको यह तर्क दिया, यद्यपि आपका भाव शुद्ध है, फिर भी अजगर तो उसे जान नहीं सकता, क्योंकि आपके प्रेममें भय मिला है। इसे खुला रखकर इससे खेलनेका साहस न आपमें है और न मुझमें। अतः हमें अपने भीतर जिस चीजको लाना है वह है इस तरहका साहस । इसलिए मैं इस अजगरको पालनेमें सद्भाव तो देखता हूँ, किन्तु इसमें अहिंसा नहीं है। हमारा व्यव हार तो ऐसा होना चाहिए कि उसे यह अजगर पहचान सके। सभी प्राणी भय और प्रेमको पहचानते हैं, यह हमारा नित्यका अनुभव है। फिर आप इस साँपको विषैला तो मानते ही नहीं हैं; आपने तो इसे इसका स्वभाव आदि जाननेके लिए बन्धनमें रखा है। यह एक प्रकारकी विलासिता हुई। सच्ची मैत्रीमें तो इसके लिए भी स्थान नहीं है ।

श्री कैलनबैक इस तर्कको समझ गये। किन्तु उनकी इच्छा इस अजगरको तुरन्त छोड़ देनेकी नहीं हुई। मैंने उनपर किसी तरहका दबाव नहीं डाला। इस साँपके व्यवहारमें में भी रस लेता था और बच्चोंको भी उससे बहुत आनन्द मिलता था। सबको कह दिया गया था कि उसे कोई भी दुःख न दे, किन्तु यह कैदी स्वयं ही बाहर निकलनेका रास्ता ढूंढ़ रहा था। दो-चार दिन ही हुए होंगे कि एक दिन प्रातः काल श्री कैलनबैक अपने इस मित्रको देखने गये। या तो पिंजरेका द्वार खुला रह गया होगा या उसने उसे युक्तिसे खोल लिया होगा, कारण कुछ भी हो किन्तु श्री कैलनबैकको उसका पिंजरा खाली मिला । उनको इससे प्रसन्नता हुई और मुझे भी । किन्तु इस प्रयोगके कारण साँप मेरी और उनकी नित्यकी बातचीतका' विषय बन गया था। श्री कैलनबैक एक गरीब जर्मनको फार्ममें लाये थे। वह गरीब होनेके साथ-साथ अपंग भी था। उसका कूबड़ इतना निकल आया था कि वह लाठीका सहारा लिये बिना चल ही नहीं सकता था। किन्तु उसमें साहस असीम था । वह शिक्षित होने के कारण सूक्ष्म विषयोंमें बहुत रस लेता था। फार्ममें वह भी हिन्दुस्तानी- जैसा ही बन गया था और सबसे हिलमिल कर रहता था। उसने निर्भय होकर साँपोंसे खेलना शुरू किया। वह छोटे-छोटे साँपोंको अपने हाथोंमें पकड़ लाता और उन्हें अपनी हथेलीपर रखकर खिलाता भी। यदि फार्म अधिक समयतक चला होता तो उस जर्मनके इस प्रयोगका क्या परिणाम होता, यह तो ईश्वर ही जाने। उस जर्मनका नाम आल्बर्ट था ।