पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 29.pdf/२१७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९१
दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास


इन प्रयोगोंके परिणामस्वरूप हमारा साँपोंका भय कुछ कम हो गया, किन्तु फिर भी कोई यह न समझे कि फार्ममें किसीको भी साँपोंका भय नहीं रहा था अथवा साँपोंको मारनेकी पूरी मनाही थी । किसी काममें हिंसा है या पाप है यह मानना एक बात है और उसके अनुसार आचरण करनेका सामर्थ्य होना दूसरी बात । जिसमें साँपोंका भय मौजूद है और जो स्वयं मरनेके लिए तैयार नहीं है वह संकट आनेपर साँपको जीवित न छोड़ेगा । फार्ममें एक ऐसी घटना होनेका मुझे स्मरण है। फार्ममें बहुत साँप निकलते थे, इसकी कल्पना तो पाठकोंने कर ही ली होगी। हम जब उस जगह पहुँचे थे तब वहाँ मनुष्य कोई भी नहीं रहता था और वह कुछ समय पहलेसे निर्जन थी। एक दिन श्री कैलनबैंकके कमरेमें ही एक साँप दिखाई दिया। वह ऐसी जगह बैठा था जहाँसे उसे निकालना अथवा पकड़ना प्रायः असम्भव था। फार्मके एक विद्यार्थीने उसे देखा। उसने मुझे बुलाया और पूछा, 'अब क्या किया जाये ? " उसने मुझसे उसे मारनेकी अनुमति मांगी। वह मेरी अनुमतिके बिना उस साँपको मार सकता था, किन्तु सामान्यतः विद्यार्थी या दूसरे लोग ऐसा कोई काम मुझसे पूछे बिना नहीं करते थे। मैंने उसे मारनेकी अनुमति देना धर्म समझा और वैसी अनुमति दे दी। यह प्रकरण लिखते समय भी मुझे नहीं लगता कि मैंने यह अनुमति देकर कुछ भी अनुचित किया था। मुझमें इतनी शक्ति नहीं थी कि मैं स्वयं उस साँपको पकड़ लेता अथवा किसी अन्य उपायसे फार्मके लोगोंको अभय कर देता। मैं अपने भीतर वैसी शक्ति आज भी नहीं ला सका हूँ ।

पाठक यह तो समझ ही सकते हैं कि फार्ममें सत्याग्रहियोंका ज्वार-भाटा आता रहता होगा। वहाँ कोई-न-कोई जेल जानेवाले और जेलसे छूटकर आनेवाले सत्याग्रही भी सदा होते थे। एक बार दो ऐसे सत्याग्रही आ गये जिन्हें मजिस्ट्रेटने निजी मुच- लकेपर छोड़ा था और जिन्हें दूसरे दिन सजा सुननेके लिए अदालत जाना था। वे बैठे बातें कर रहे थे। तभी उनकी अन्तिम गाड़ी आनेका समय हो गया और गाड़ी पकड़ना सन्दिग्ध हो गया। दोनों ही सत्याग्रही जवान और कसरती थे। वे और हममें से उनको पहुँचानेवाले कुछ लोग भागे। मैंने रास्ते में गाड़ीके आनेकी सीटी सुनी। जब गाड़ीने रवाना होनेकी सीटी दी तब हम स्टेशनकी हृदके पास पहुँच चुके थे। उन दोनों भाइयोंने अपनी चाल और भी तेज कर दी। मैं कुछ पीछे रह गया। तभी गाड़ी चल दी। स्टेशन मास्टरने उन दोनोंको भागता देखकर चलती गाड़ी रोक दी और उनको उसमें बिठा दिया। मैंने स्टेशनपर पहुँचकर स्टेशन मास्टरका आभार माना। मैंने इस वर्णनको देकर दो बातें बताई हैं, एक सत्याग्रही जेल जाने और अपनी प्रतिज्ञा पूरी करनेके लिए कितने उत्सुक रहते थे और दूसरी उन्होंने स्थानीय अधिकारियोंसे अपने सम्बन्ध कैसे मधुर बना लिये थे। यदि ये युवक गाड़ी न पकड़ सके होते तो दूसरे दिन अदालतमें हाजिर न हो सकते। उनका कोई दूसरा जामिन नहीं था। स्वयं उनसे भी कोई पैसा जमा नहीं कराया गया था। वे केवल अपनी भलमनसीके भरोसेपर छोड़े गये थे। सत्याग्रहियोंकी इतनी साख बन गई थी कि मजिस्ट्रेट उनकी जेल जानेकी आतुरताके कारण उनसे जमानत लेना जरूरी न