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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

समझते थे। इसीलिए इन युवक सत्याग्रहियोंको गाड़ी निकल जाने के भयसे बहुत दुःख हुआ था और वे हवाकी तरह तेज भागे थे। कहा जा सकता है कि सत्याग्रहके आरम्भ- में अधिकारियोंने सत्याग्रहियोंको कुछ दुःख दिये थे। यह भी कहा जा सकता है कि कहीं-कहीं जेल अधिकारी बहुत कठोर थे । किन्तु लड़ाई आगे बढ़ने के साथ- साथ हमने देखा कि कुल मिलाकर अधिकारियोंकी कटुता कम हुई; उनमें से कुछमें मिठास आई और जहाँ उनसे अधिक समयतक सम्पर्क रहा वहाँ वे इस स्टेशन मास्टरकी तरह सहायता भी करने लगे। पाठक यह न मान लें कि सत्याग्रही किसी तरह की रिश्वत देकर अधिकारियोंसे सुविधाएँ प्राप्त कर लेते थे। इस तरह अनुचित रीतिसे सुविधाएँ लेनेका उन्होंने कभी खयाल भी नहीं किया था। किन्तु सभ्यतासे सुविधाएँ दी जायें तो उन्हें प्राप्त करना कौन नहीं चाहेगा? सत्याग्रही ऐसी सुविधाएँ बहुत जगहोंपर प्राप्त कर सके थे । यदि स्टेशन मास्टर प्रतिकूल हो तो वह नियमोंकी हदमें रहकर भी बहुत-सी कठिनाइयां पैदा कर सकता है। ऐसी कठिनाइयोंके विरुद्ध शिकायत भी नहीं की जा सकती। इसके विपरीत यदि वह अनुकूल हो तो नियमोंके भीतर रहता हुआ भी बहुत-सी सुविधाएँ दे सकता है। हम इस तरहकी सुविधाएँ इस फार्मके पासके स्टेशन लॉलीके अधिकारी से प्राप्त कर पाते थे और इसका कारण सत्याग्रहियोंका सौजन्य, धैर्य और कष्टसहनका सामर्थ्य था ।

यहाँ एक अप्रासंगिक घटनाका उल्लेख करना अनुचित न होगा। मुझे धार्मिक, आर्थिक और स्वास्थ्यकी दृष्टिसे भोजन सम्बन्धी सुधार और प्रयोग करनेका शौक लग- भग ३५ सालसे है। मेरा यह शौक अभी कम नहीं हुआ है। इन प्रयोगोंका प्रभाव मेरे आसपासके लोगोंपर तो पड़ता ही है। इन प्रयोगोंके साथ-साथ में दवाओंकी मदद लिए बिना प्राकृतिक उपायोंसे, जैसे पानी और मिट्टीसे, रोग दूर करने के प्रयोग भी करता था। जब में वकालत करता था तब मुवक्किलोंसे मेरा सम्बन्ध कौटुम्बिक जैसा हो जाता था। इसलिए वे मुझे अपने सुख-दुःखमें भागी बनाते थे। कुछ मेरे आरोग्य-सम्बन्धी प्रयोगोंका परिचय मिलनेपर इस सम्बन्धमें मेरी सहायता भी लेते थे। ऐसी सहायता लेनेवाले लोग कभी-कभी टॉल्स्टॉय फार्मपर चढ़ाई कर देते। इन्हीं लोगोंमें एक लुटावन नामका उत्तर भारतका बूढ़ा मुवक्किल था। वह पहले गिरमिटमें यहाँ आया था। उसकी उमर ७० सालसे ज्यादा होगी। उसे बहुत सालसे दमे और खाँसीका रोग था। उसने वैद्योंकी पुड़ियाँ, और डाक्टरोंकी शीशियाँ बहुत आजमाई थीं। उस समय मुझे अपने उपचारोंमें असीम विश्वास था। मैंने इस शर्तपर उसपर अपने प्रयोग करना स्वीकार कर लिया कि वह मेरी सारी शर्तें मानेगा और फार्ममें रहेगा। यह तो कैसे कहा जा सकता कि मैंने उसका इलाज करना स्वीकार कर लिया । उसने मेरी शर्तें स्वीकार कर लीं। उसे तम्बाकू पीनेका बहुत व्यसन था । वह तम्बाकू पीना छोड़ देगा, मेरी शर्तोंमें एक शर्त यह भी थी। मैंने लुटावनको एक दिनका उपवास कराया । फिर हर रोज बारह बजे धूपमें कूनेका बाथ देना शुरू किया। उन दिनों वहां ऐसा मौसम था कि धूपमें बैठा जा सकता था। उसके खानेमें ये चीजें होतीं, थोड़ा भात, कुछ जैतूनका तेल, शहद और शहदके साथ कभी-कभी खीर, मीठी