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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वहाँ रहनेवालोंमें कोटुम्बिक भावना आई, सत्याग्रहियोंको शुद्ध आश्रय-स्थान मिला, उनमें अप्रामाणिकता और दम्भका अवकाश न रहा; मूंग और कंकड़ अलग-अलग छाँटे जा सके। ऊपरकी घटनाओंमें जो भोजन-सम्बन्धी प्रयोग आये हैं वे आरोग्यकी दृष्टिसे किये गये थे, किन्तु मैंने इस फार्ममें ही अपने ऊपर एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रयोग किया और उसके मूलमें पूर्णतः आध्यात्मिक दृष्टि थी ।

हमें निरामिष-भोजीके रूपमें दूध पीनेका अधिकार है या नहीं, मैंने इस सम्ब- न्धमें बहुत विचार किया और बहुत साहित्य भी पढ़ा । किन्तु फार्ममें रहते हुए मुझे एक ऐसी पुस्तक अथवा पत्र-पत्रिका मिली जिसमें मैंने यह पढ़ा कि कलकत्तेमें गायों और भैंसोंका दूध बूंद-बंद निकाल लिया जाता है। उसीमें फूंकेकी निर्दयतापूर्ण और भयंकर क्रियाका विवरण भी था। एक बार में श्री कैलनबैकसे यह चर्चा कर रहा था कि दूध पीनेकी आवश्यकता है या नहीं। मैंने इसी प्रसंगमें उनसे इस क्रियाकी बात भी कही। मैंने दूध छोड़नेके कुछ अन्य आध्यात्मिक लाभ बताये और यह भी कहा कि यदि दूधका त्याग किया जा सके तो अच्छा हो । श्री कैलनबैक बहुत साहसी थे, अतः वे दूध छोड़नेका प्रयोग करनेके लिए तुरन्त तैयार हो गये। उन्हें मेरी बात बहुत पसन्द आई। हम दोनोंने उसी दिनसे दूध पीना छोड़ दिया, केवल मेवे और ताजे फल लेना आरम्भ किया और पकाई हुई चीजें खाना बन्द कर दिया। इस प्रयोगका परिणाम क्या हुआ यह इतिहास यहाँ देनेकी जगह नहीं, किन्तु इतना कह दूं कि मैंने पाँच वर्षतक केवल फल खाकर निर्वाह किया। उससे मुझे न तो कम- जोरी मालम हुई और न किसी तरहका रोग हुआ । प्रत्युत इस बीच मुझमें शरीर- श्रम करनेकी शक्ति इतनी अधिक रही कि मैं एक बार दिनमें पैदल ५५ मील जा सका था। उन दिनों ४० मील पैदल चलना तो मेरे लिए सहज बात थी। मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि इस प्रयोगके आध्यात्मिक परिणाम बहुत सुन्दर हुए थे। मुझे यह प्रयोग अंशतः छोड़ना पड़ा, इसका मुझे सदा दुःख रहा और यदि में राजनैतिक कार्यो- की अपनी वर्तमान झंझटोंसे मुक्त हो सकूँ तो मेरी आकांक्षा है कि मैं इस आयुमें शरीरके लिए जोखिम लेकर भी आध्यात्मिक परिणामोंकी खोजके लिए आज यह प्रयोग फिर करके देखूं । डाक्टरों ओर वैद्योंमें आध्यात्मिक दृष्टिका अभाव भी मेरे मार्गमें विघ्नकारी हुआ है।

किन्तु अब ये मधुर और महत्त्वपूर्ण संस्मरण समाप्त किये जाने चाहिए। ऐसे कठिन प्रयोग आत्मशुद्धिकी लड़ाईमें ही किये जा सकते ह । टॉल्स्टॉय फार्म अन्तिम युद्धके लिए आध्यात्मिक शुद्धि और तपस्याका स्थान सिद्ध हुआ। मुझे इसमें पूरा सन्देह है कि यदि ऐसा स्थान हमें न मिलता अथवा हम न ढूंढ़ते तो हमारी यह लड़ाई आठ सालतक चल सकती या नहीं, अधिक पैसा मिल सकता या नहीं, और अन्त में उसमें जिन हजारों लोगोंने हिस्सा लिया वे हिस्सा लेते या नहीं। हमने टॉल्स्टॉय फार्मका ढिंढोरा पीटनेका नियम नहीं रखा था। फिर भी जो चीज लोगोंकी सहानु-

१. देखिए आत्मकथा, भाग ४, अध्याय ३० ।