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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

भूतिकी पात्र थी उसने लोगोंमें सहानुभूति प्राप्त की और लोगोंने माना कि जिस कामको करनेके लिए वे स्वयं तैयार नहीं हैं और जिसे स्वयं कष्टकर मानते हैं उस कामको फार्मवासी कर रहे हैं। उन लोगोंका यह विश्वास १९१३ में, जब यह लड़ाई बड़े पैमानेपर फिर शुरू हुई, उसके लिए बहुत बड़ी पूंजी जैसा बन गया | ऐसी पूँजीके प्रतिफलका हिसाब नहीं किया जा सकता। इसका प्रतिफल कब मिलता है कोई यह भी नहीं कह सकता। किन्तु वह मिलता अवश्य है, इसमें मुझे तो सन्देह नहीं है और आशा है, कोई दूसरा भी सन्देह नहीं करेगा।

अध्याय ३६

गोखलेका प्रवास-१

सत्याग्रही इस तरह टॉल्स्टॉय फार्ममें अपना जीवन बिता रहे थे और उनके भाग्यमें जो कुछ लिखा था उसे भोगनेकी तैयारी कर रहे थे। यह लड़ाई कब खत्म होगी इसका उन्हें कुछ पता न था। उन्हें इसकी चिन्ता भी नहीं थी। उनकी प्रतिज्ञा एक ही थी कि वे काले कानूनके आगे न झुकेंगे और ऐसा करते हुए जो भी कष्ट उठाने पड़ेंगे, उठायेंगे। सैनिकके लिए तो लड़ना ही जीतना है, क्योंकि वह उसीमें सुख मानता है और चूँकि लड़ना उसके अपने हाथकी बात होती है, इसलिए उसकी हार-जीत और उसका सुख-दुःख उसीपर निर्भर होते हैं। यह भी कह सकते हैं कि दुःख और पराजय-जैसे शब्द उसके कोषमें नहीं होते । 'गीता 'के शब्दोंमें कहें तो उसके लिए सुख-दुःख और हार-जीत समान होते हैं ।

इक्के-दुक्के सत्याग्रही जेलमें जाते रहते थे। अन्य किसी अवसरपर फार्मको बाह्य प्रवृत्तियों को देखकर कोई भी यह खयाल नहीं कर सकता था कि वहाँ सत्याग्रही रहते होंगे अथवा वहाँ किसी लड़ाईकी तैयारी चल रही होगी । वहाँ प्राय: कोई-न-कोई नास्तिक आ जाता था। वह हमारा मित्र होता तो हमपर दया दिखाता और यदि हमारा आलोचक होता तो हमारी निन्दा करता । “आप आलसके वशमें होकर इस जंगलमें पड़े-पड़े रोटियाँ खा रहे हैं, जेल जाते-जाते थक गये हैं, इसलिए इस सुन्दर फलोंके बगीचेमें रहकर नियमित जीवन बिता रहे हैं और शहरकी झंझटोंसे मुक्त होकर सुख भोग रहे हैं। " ऐसी आलोचना करनेवालेको कैसे समझाया जाता कि सत्याग्रही अनुचित रूपसे नीति भंग करके जेल नहीं जा सकता। उसे कौन समझाता कि सत्याग्रहीकी दैनंदिनको शान्ति और संयममें उसकी लड़ाईकी तैयारी अन्तहित होती है। उसे कौन समझाता कि सत्याग्रही मनुष्यकी सहायताका विचारतक छोड़ देता है और केवल ईश्वरका ही आश्रय लेता है। अन्तमें ऐसा हुआ कि ऐसी स्थितियाँ उत्पन्न हो गईं जिनकी किसीने कल्पनातक न की थी, अथवा कहना चाहिए कि ऐसी स्थितियाँ ईश्वरने उत्पन्न कर दीं। जिसकी आशा भी नहीं थी वैसी सहायता भी मिल गई। हमारी परीक्षा तब हुई जब हम उसकी कल्पना भी नहीं कर रहे थे; और अन्तमें हमें ऐसी प्रत्यक्ष जीत भी मिली जिसको दुनिया समझ सके ।