पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 29.pdf/२२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९७
दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

दक्षिण आफ्रिका कैसा है इसका अनुभव गोखलेको इंग्लंडमें ही हो गया था । भारतमन्त्रीने दक्षिण आफ्रिकाकी सरकारको गोखलेकी स्थिति और साम्राज्यमें उनके स्थान आदिकी सूचना दे दी थी। किन्तु जहाजी कम्पनीसे उनका टिकट लेने अथवा कैबिन सुरक्षित करवानेकी बात किसे सूझ सकती थी ? गोखले अस्वस्थ तो रहते ही थे, इसलिए उन्हें जहाजमें अच्छे केबिनकी और एकान्तकी जरूरत थी। उन्हें ऐसा टका-सा जवाब मिला, "हमारे पास ऐसा कैबिन कोई नहीं है। "" मुझे ठीक याद नहीं कि इसकी सूचना श्री गोखलेने या किसी दूसरे मित्रने इंडिया ऑफिसको दी । भारत कार्यालयने कम्पनीके निर्देशकको पत्र लिखा ओर जहाँ कैबिन था ही नहीं वहाँ श्री गोखलेको अच्छे से अच्छा कैबिन मिल गया ! इस प्रारम्भिक कटुताका परि •णाम मीठा हुआ । जहाजके कप्तानको निर्देश दे दिया गया कि वे गोखलेका पूरा ख्याल रखें। इसलिए गोखलेकी यात्राके दिन सुख और शान्तिमें बीते । गोखले जितने गम्भीर थे उतने ही आनन्दी और विनोदी भी थे। वे जहाजके खेलकूदोंमें पूरा भाग लेते थे और इससे जहाजके यात्रियोंमें बहुत लोकप्रिय हो गये थे । दक्षिण आफ्रिकाकी सरकारने गोखलेसे अनुरोध किया था कि वे उसका आतिथ्य ग्रहण करें और उसकी ओरसे रेलका राजकीय सैलून स्वीकार करें। उन्होंने प्रिटोरियामें सरकारका आतिथ्य ग्रहण करने और सैलून स्वीकार करनेका निश्चय मुझसे सलाह करके किया था ।

उन्हें जहाजसे केपटाउन बन्दरगाहमें उतरना था। वे २२ अक्तूबर १९१२ को वहाँ उतरे । उनको तन्दुरुस्ती जितनी नाजुक मैं समझता था उससे ज्यादा नाजुक थी । वे एक विशेष आहार ही ग्रहण कर सकते थे और उनका शरीर अधिक श्रमका भार उठाने योग्य न था। मेरा बनाया हुआ कार्यक्रम उनके लिए असह्य था। मैंने उसमें जितना हो सका उतना फेरफार तो किया हो । वैसे उन्होंने फेरफार न हो सके तो स्वास्थ्य के लिए जोखिम मोल लेकर भी उसपर चलनेकी तैयारी दिखाई थी। मैंने उनसे सलाह किये बिना यह कठिन कार्यक्रम बना दिया था। मुझे अपनी इस मूर्खता- पर बहुत पश्चात्ताप हुआ । मैंने उसमें कुछ फेरफार तो किये किन्तु उसका अधि कांश तो जैसा था वैसा ही रखना पड़ा। गोखलेको पूरा एकान्त देनेकी आवश्यकता है, मैं यह नहीं समझ सका था। मुझे इस एकान्तकी व्यवस्था करनेमें सबसे अधिक कठिनाई हुई; किन्तु मुझे नम्रतापूर्वक सत्यकी खातिर इतना तो कहना ही पड़ेगा कि चूंकि मुझे बीमारोंकी और बड़ोंकी सेवा-शुश्रूषा करनेका अभ्यास और चाव था, इसलिए अपनी मूर्खता जान लेनेके बाद इतनी व्यवस्था करना सम्भव हो गया जिससे उन्हें पर्याप्त एकान्त और शान्ति मिल जाये। इस पूरी यात्रामें उनके मन्त्रीका काम स्वयं मैंने ही किया था। स्वयंसेवक ऐसे थे जो अंधेरी रातमें भी उत्तर लाकर उन्हें दें इसलिए सेवकोंके अभावमें उन्हें कोई तकलीफ या दिक्कत उठानी पड़ी हो उसका मुझे खयाल नहीं आता। इन स्वयंसेवकोंमें श्री कैलनबैक भी एक थे ।

सबसे अच्छी सभा केपटाउनमें ही होगी यह तो स्पष्ट ही था । श्राइनर परि- वारकी बात मैं प्रारम्भिक प्रकरणों में लिख चुका हूँ। मैंने इस परिवारके मुख्य व्यक्ति श्री

१. देखिए खण्ड ११, पृष्ठ ३२९ तथा परिशिष्ट २० ।