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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

डब्ल्यू० पी० श्राइनरसे इस सभाकी अध्यक्षता करनेकी प्रार्थना की और उन्होंने वह स्वीकार कर ली ।' बहुत बड़ी सभा हुई। इसमें बड़ी संख्या में हिन्दुस्तानी और गोरे आये । श्री श्राइनरने मधुर शब्दोंमें गोखलेका स्वागत किया और दक्षिण आफ्रिका हिन्दुस्तानियोंके प्रति सहानुभूति प्रकट की । गोखलेका भाषण संक्षिप्त, परिपक्व, विचार- पूर्ण, दृढ़ताका द्योतक और विनययुक्त था । उससे हिन्दुस्तानियोंको बहुत प्रसन्नता हुई और गोखलेने गोरोंका मन मुग्ध कर लिया, अतः कहा जा सकता है कि गोखलेने जिस दिन दक्षिण आफ्रिकाकी भूमिपर पाँव रखा, उसी दिन वहाँ विविध जातियोंके लोगोंके हृदय में प्रवेश पा लिया ।

उन्हें केपटाउनसे जोहानिसबर्ग जाना था। यह रेलसे दो दिनकी यात्रा थी । ट्रान्सवाल लड़ाईका कुरुक्षेत्र था । केपटाउनसे जोहानिसबर्ग जाते हुए पहले ट्रान्सवालका बड़ा सरहदी स्टेशन क्लार्क्सडॉप आता है और फिर पोचेफ्स्ट्रम और क्रूगर्सडॉर्पे पड़ते हैं। इनमें हिन्दुस्तानियोंकी आबादी खासी थी, इसलिए क्लार्क्सडॉर्प, पोचेफ्स्ट्रम और क्रूगर्सडॉर्पमें उनको रुकना और वहाँकी सभाओंमें जाना था, इसे ध्यान में रखते हुए क्ला- वर्क्सडॉर्पसे ही स्टेशन ट्रेनकी व्यवस्था कर ली गई थी। इन शहरोंमें सभाओंकी अध्य- क्षता उनके मेयरोंने की थी । प्रत्येक स्थानमें एक घंटे से अधिक समय नहीं लगाया गया था । गाड़ी जोहानिसबर्ग में नियत समयपर पहुँच गई। एक मिनिटका भी अन्तर नहीं पड़ा। स्टेशनपर विशेष गलीचे आदि बिछाये गये थे । वहाँ एक मंच भी बनाया गया था । सभामें जोहानिसबर्गके मेयर श्री एलिस और अन्य गोरे आये थे । उन्होंने गोखलेको जबतक वे जोहानिसबर्ग में रहें तबतक काम में लेनेके लिए अपनी मोटर दी थी । गोखलेको मानपत्र स्टेशनपर ही दिया गया था । उन्हें मानपत्र तो सर्वत्र ही दिये जाते । जोहानिसबर्ग में जो मानपत्र दिया गया, वह रोडेशियाकी साग- वानकी तख्तीपर जड़ी जोहानिसबर्गकी खानसे निकले सोनेकी हृदयके आकार की पट्टी पर खोदा गया था। सोनेकी पट्टीपर हिन्दुस्तान और श्रीलंकाका नक्शा था। उसकी बाजुओंमें दो सोनेकी पट्टियाँ और थीं जिनमें से एकपर ताजमहलका दृश्य था और दूसरीपर कोई अन्य विशिष्ट दृश्य । सब लोगोंसे गोखलेका परिचय कराना, मानपत्र पढ़ना, उसका उत्तर देना और अन्य मानपत्र स्वीकार करना, ये सभी काम २० मिनटके भीतर निपटा दिये गये थे । मानपत्र इतना छोटा था कि उसे पढ़ने में पाँच मिनटसे ज्यादा न लगे होंगे। उसका गोखलेने जो उत्तर दिया., उसमें भी ५ मिनटसे ज्यादा वक्त न लगा होगा । स्वयंसेवकोंकी व्यवस्था इतनी सुन्दर थी कि प्लेटफार्मपर जितने आदमियोंको बिठानेकी बात सोची गई उससे अधिक नहीं आये थे । कोलाहल बिल- कुल नहीं था । बाहर लोगोंकी बेहद भीड़ थी, फिर भी किसीको वहाँ आने में या बाहर जाने में कोई दिक्कत नहीं हुई।

१. देखिए खण्ड ११, पृष्ठ ३३२-४; इसके अनुसार सभाकी अध्यक्षता मेयर हैरी हैडसने की थी। श्राइनर सभाके एक प्रमुख वक्ता थे।

२. अक्तूबर २८, १९१२ को । इससे पूर्व अक्तूबर २५ और २६ को किम्बर्लेमें गोखलेके सम्मानार्थ एक सभा और सम्मान-भोजका आयोजन किया गया था। देखिए खण्ड ११, पृष्ठ ३३४-३७ ।