पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 29.pdf/२२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९९
दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

उनके रहने की व्यवस्था जोहानिसबर्गसे पाँच मील दूर एक पहाड़ीपर बने हुए श्री कैलनबैकके छोटे-से सुन्दर बंगलेमें की गई थी। वहाँका दृश्य ऐसा सुन्दर था, उसकी शान्ति ऐसी सुखद थी और बंगला इतना सादा था, फिर भी इतना कलापूर्ण बना हुआ था कि वह श्री गोखलेको बहुत ही अच्छा लगा। सब लोगोंसे मिलनेकी व्यवस्था शहरमें की गई थी और उसके लिए एक खास दफ्तर किरायेपर लिया गया था। इसमें एक कमरा विशेष रूपसे उनके आराम करनेके लिए था, दूसरा लोगोंसे मिलने-जुलने के लिए और तीसरा आगन्तुकोंके बैठनेके लिए। श्री गोखले जोहानिसबर्गके कुछ प्रसिद्ध सज्जनोंसे निजी रूपसे भेंट करने के लिए भी ले जाये गये थे। प्रमुख गोरोंकी एक निजी सभा भी की गई जिससे श्री गोखले उनका दृष्टिकोण भलीभांति समझ सकें। इसके अतिरिक्त जोहानिसबर्गमें उनके सम्मानमें एक बड़ा भोज भी दिया गया था। उसमें ४०० लोग निमन्त्रित किये गये थे जिनमें लगभग १५० गोरे थे । भोजमें हिन्दुस्तानियोंका प्रवेश टिकटसे था; इसका शुल्क एक गिनी रखा गया था। इस टिकटसे भोजका खर्च निकल आया था। भोज बिल- कुल निरामिष और मद्य-रहित था। भोजन स्वयंसेवकोंने ही बनाया था। इस सबका वर्णन यहाँ कठिन है। दक्षिण आफ्रिकामें हमारे हिन्दू और मुसलमान भाई छुआछूत जानते ही नहीं हैं और एक साथ बैठकर खाते-पीते हैं। निरामिष-भोजी हिन्दुस्तानी अपना निरामिष भोजनका नियम पालते हैं। हिन्दुस्तानियोंमें कुछ ईसाई भी थे। मेरा उनसे भी दूसरोंके बराबर ही प्रगाढ़ परिचय था। वे ज्यादातर गिरमिटिया माँ-बापोंकी सन्तान हैं और उनमें से बहुत से होटलोंमें खाना बनाने और परोसनेका काम करते हैं। इन लोगोंकी सहायतासे ही इतने आदमियोंके खानेका इन्तजाम हो सका था। खाने में कोई पन्द्रह चीजें होंगी। दक्षिण आफ्रिकाके गोरोंके लिए यह बिलकुल नया और अनोखा अनुभव था। इतने हिन्दुस्तानियोंके साथ एक पंक्तिमें खानेके लिए बैठना, निरामिष भोजन करना और बिना मद्यके काम चलाना - ये तीनों अनुभव उनमें से बहुत-सोंके लिए नये थे और इनमें से दो तो सभीके लिए नये थे।

इस समारोहमें गोखलेका वह भाषण हुआ जो दक्षिण आफ्रिकामें उनका सबसे बड़ा और महत्त्वपूर्ण भाषण था । गोखलेने पूरे ४५ मिनटतक भाषण दिया। उन्होंने इस भाषणको तैयार करने में मुझसे पर्याप्त सहायता ली थी। उन्होंने अपने जीवन- का यह नियम बताया कि लोगोंके दृष्टिकोणकी अवहेलना न की जानी चाहिए और उसका जितना ध्यान रखा जा सके उतना रखा जाना चाहिए। उन्होंने इसीलिए मुझसे कहा कि मैं अपने दृष्टिकोणसे उनसे अपने भाषणमें क्या कहलाना चाहता हूँ, यह उन्हें बता दूं। वह भाषण मुझे तैयार करके दे देना था और उसके साथ ही यह शर्त भी थी कि यदि वे उसके एक भी वाक्य या विचारका उपयोग न करें तो मैं कुछ दुःख न मानूं। वह न लम्बा हो और न छोटा, फिर भी उसमें कोई भी महत्त्वकी बात न छूटे। इन सब शर्तोंको पूरा करते हुए मुझे उनके भाषणके नोट तैयार करने पड़े। मैं यह कह दूं कि उन्होंने मेरी भाषाका बिलकुल उपयोग नहीं किया। मैं यह आशा रखता भी कैसे कि अंग्रेजी भाषाके घुरन्धर विद्वान्