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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

ही भाषण दिये और में उनका विशेष रूपसे नियुक्त भाषान्तरकार रहा। हमें यथा- सम्भव मातृभाषामें और व्याकरणशुद्ध अंग्रेजीकी अपेक्षा व्याकरणकी भूलोंसे भरी टूटी-फूटी हिन्दीमें ही बोलना चाहिए, मैं यह बात उनके मनमें बैठा सका या नहीं, यह मैं नहीं जानता। किन्तु इतना जानता हूँ कि उन्होंने दक्षिण आफ्रिकामें मुझे खुश रखनेके लिए ही मराठीमें भाषण दिये। मैंने यह देखा कि भाषण देने के बाद उनका जो परिणाम हुआ वह उनको पसन्द आया था और जहाँ सिद्धान्तका प्रश्न न हो वहाँ सेवकोंको खुश रखना एक अच्छी बात है, इसे श्री गोखलेने दक्षिण आफ्रिका- में अपने अनेक अवसरोंपर किये गये व्यवहारसे स्पष्ट कर दिया था।

अध्याय ३७

गोखलेका प्रवास - २

हमें जोहानिसबर्गसे प्रिटोरिया जाना था। प्रिटोरियामें गोखलेको संघ सरकारका निमन्त्रण था। उसके अनुसार उन्हें ट्रान्सवाल होटलमें तय की हुई जगहमें ठहरना था। श्री गोखलेको यहाँ संघ सरकारके जिन मन्त्रियोंसे मिलना था उनमें जनरल बोथा और जनरल स्मट्स भी थे। जैसा ऊपर बताया, मेरा नियम यह था कि मैं उन्हें हर रोज सुबह दिनका कार्यक्रम बता देता अथवा वे पूछते तो रातको ही सूचित कर देता । मन्त्रियोंसे मिलना बहुत जिम्मेदारीका काम था । हम दोनोंने निश्चय किया था कि मुझे उनके साथ नहीं जाना चाहिए और इस तरहकी मांग भी नहीं करनी चाहिए। मेरी मौजूदगीसे मन्त्रियों और गोखलेके बीच कुछ-न-कुछ व्यवधान पड़ता और वे जी खोलकर स्थानीय हिन्दुस्तानियोंकी, और चाहे तो मेरी, जो भी भूलें मानते हों, न बता सकते। यदि वे कुछ और कहना चाहते हों तो उसे भी खुलकर न कह सकते। किन्तु इससे गोखलेकी जिम्मेदारी दूनी होती थी। समस्या यह थी कि यदि उनसे कोई तथ्यकी भूल हो अथवा उनके सामने कोई नया तथ्य प्रस्तुत किया जाये और उसका उत्तर उनसे न बन पड़े अथवा हिन्दुस्तानियोंकी ओरसे कोई बात मेरी अथवा दक्षिण आफ्रिकाके किसी जिम्मेदार हिन्दुस्तानी नेताकी अनुपस्थितिम मंजूर करनी हो तो क्या होगा। किन्तु इसका हल श्री गोखलेने ही तत्काल निकाल लिया। मुझे उनके लिए अथसे लेकर इतितक हिन्दुस्तानियोंकी स्थितिका संक्षिप्त विवरण तैयार करना और हिन्दुस्तानी लोग कहांतक झुकनेके लिए तैयार हैं यह लिखकर देना था। उसके अलावा यदि कोई प्रश्न उठे तो गोखले उसके सम्बन्धमें अपना अज्ञान स्वीकार कर लें, यह बात तय हुई और इसके साथ ही हम निश्चिन्त हो गये । अब काम केवल इतना करना रहा कि ऐसा विवरण तैयार कर दिया जाये और वे उसे पढ़ लें। किन्तु वह सब पढ़ने लायक वक्तकी गुंजाइश तो थी नहीं। मैं उसे कितना ही छोटा लिखता, फिर भी चारों उप-निवेशोंके हिन्दुस्तानियोंकी स्थितिका अठारह वर्षका इतिहास दस-बीस सफे लिखे

१. अंग्रेजी में यहाँ वाक्य इस प्रकार है: "जोहा निसवर्ग से गोखले नेटाल गये और वहां से प्रिटोरिया। "